‘प्लास्टिक मुक्त भारत’ की राह पकड़कर सिंदौड़ा ने पाई मंजिल, मिला राष्ट्रीय पुरस्कार
मध्य प्रदेश के गांव सिंदौड़ा ने प्लास्टिक को खदेड़कर बनाई पहचान पाया राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदेश का पहला सिंगल यूज्ड प्लास्टिक मुक्तगांव बना।
जितेंद्र यादव, इंदौर। पहले मन से प्लास्टिक को निकाला। फिर घर, आंगन, स्कूल, खलिहान और दुकान से इसको बाहर का रास्ता दिखाना शुरू किया। अब हालत यह है कि गलती से भी कोई प्लास्टिक का उपयोग कर लेता है, तो बच्चे उसे टोक देते हैं। यह है मध्य प्रदेश के पहले सिंगल यूज्ड प्लास्टिक मुक्तगांव सिंदौड़ा की सफलता की कहानी...।
कैसे पाई यह सफलता?
बाजार से सब्जी या दुकान से सामान लाना हो तो कपड़े का थैला ले जाते हैं। न तो दुकानदार पन्नी का इस्तेमाल करता है और न गांव वाले। दूध लेने जाना हो तो केटली या कोई बर्तन ले जाते हैं। यहां तक कि स्कूली बच्चों की कॉपी-किताबों पर भी प्लास्टिक के कवर की जगह अब कागज के कवर नजर आते हैं। गांव के सभी घरों पर प्लास्टिक मुक्त घर का लोगो चस्पा है।
सिंगल यूज्ड प्लास्टिक से मुक्तिपाने का संकल्प
इंदौर जिले का यह गांव धार रोड पर मुख्य मार्ग से कुछ अंदर है। करीब 1800 की आबादी है। दो अक्टूबर को गांव ने सिंगल यूज्ड प्लास्टिक से मुक्तिपाने का संकल्प लिया। नतीजा आज सामने है। इस पंचायत को केंद्रीय जल शक्तिमंत्रालय ने पुरस्कार प्रदान किया है। दैनिक जागरण के सहयोगी और मप्र के अग्रणी समाचार-पत्र नईदुनिया ने गांव सिंदौड़ा पहुंचकर जाना कि सफलता की यह कहानी कैसे लिखी गई।
स्वच्छ भारत मिशन की ब्लॉक को-ऑर्डिनेटर
इस काम में ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और जिला पंचायत की साझी पहल रही। जीवन ज्योति संस्थान, प्रयास जैसी कुछ संस्थाओं और शिक्षा संस्थानों सहित राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्रों ने भी भरपूर सहयोग किया। लेकिन सबसे अहम भूमिका निभाई खुद गांव के लोगों ने। गांव को इस मुकाम तक लाने में पहला बीज रोपा स्वच्छ भारत मिशन की ब्लॉक को-ऑर्डिनेटर धर्मजीत सिंह ने। उन्होंने ग्राम पंचायत को इस काम के लिए प्रेरित किया। लगातार बैठकें कीं गईं। प्लास्टिक के नुकसान और इससे होने वाली बीमारियों के बारे में बातें की गईं। तब सभी ने मिलकर योजना बनाई।
पॉलीथिन की थैलियों का उपयोग न करें
योजनानुसार स्वच्छ आंगन प्रतियोगिता, कपड़े की थैलियां, बर्तन बैंक जैसे अभियान शुरू किए गए। बच्चों और महिलाओं को जागरूकता अभियान का जिम्मा सौंपा गया। गांव की दुकानों पर जाकर दुकानदारों को समझाया कि वे सामान देने के लिए पॉलीथिन की थैलियों का उपयोग न करें। समझदार दुकानदार तो मान गए, लेकिन जो नहीं माने उनको जुर्माना भी किया। जो लोग, चोरी छिपे उपयोग करते, बच्चे उनकी जासूसी करपंचायत में आकर बता देते। अंतत: गांव में डोंडी पिट गई कि अब कोई प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेगा। सरपंच प्रतिनिधि नीलेश पाटीदार, पूर्व सरपंच रामप्रसाद पाटीदार और बाबूलाल जाट कहते हैं, इस बदलाव से गांव का नाम रोशन हुआ है। सरकारी स्कूल के 5वीं कक्षा के छात्र रोहित, अनिल, आरती, सावनी इतने जानकार हो चुके हैं कि प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में बेझिझक बताते हैं।
गांव में कई जागरूकता रैलियां निकालीं
बदलाव के इस यज्ञ में सबसे बड़ी आहुति डाली गांव की महिलाओं ने। उन्होंने स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव में बर्तन बैंक शुरू किया। अब गांव के किसी भी भोज या समारोह में प्लास्टिक के डिस्पोजल पत्तल, दोने या गिलास का उपयोग नहीं होता। स्कूलों ने भी मोर्चा संभाला। शिक्षकों ने बच्चों को साथ लेकर गांव में कई जागरूकता रैलियां निकालीं। गांव के बाहर एक कूड़ाघर भी बनाया गया है, जहां गीलेसूखे और प्लास्टिक कचरे के लिए अलग-अलग व्यवस्था है।
पहले हम केवल अपनी सहूलियत देखते थे, अब प्लास्टिक के खतरे को समझ चुके हैं, हमारी भी आदत बदल गई है। दुकान में पन्नी नहीं रखते। कुछ कंपनियों का खाने-पीने और रोजमर्रा का जो सामान प्लास्टिक पैकिंग में आ रहा है, उनसे भी कह रहे हैं कि यह बंद करो वरना आपका सामान नहीं खरीदेंगे।
- कमल सिंह, स्थानीय दुकानदार