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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या पर हुई गर्मागरम बहस,जज को लेना पड़ा माइक का सहारा

इस पर जस्टिस अशोक भूषण को अदालत का नजरिया समझाने के लिए सामने लगी माइक का सहारा लेना पड़ गया।

By Mohit TanwarEdited By: Published: Sat, 12 Aug 2017 08:52 AM (IST)Updated: Sat, 12 Aug 2017 01:00 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या पर हुई गर्मागरम बहस,जज को लेना पड़ा माइक का सहारा
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या पर हुई गर्मागरम बहस,जज को लेना पड़ा माइक का सहारा

माला दीक्षित, नई दिल्ली। शुक्रवार को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रहे कोर्ट का नजारा अलग था। रामलला विराजमान और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जल्दी सुनवाई की मांग हो रही थी। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, मुहम्मद हाशिम और निर्मोही अखाड़ा मामला तैयार नहीं होने के आधार पर जल्द सुनवाई का विरोध कर रहे थे। खचाखच भरी अदालत में विशेष पीठ को अपनी दलीलों से सहमत करने के लिए वकीलों की आवाज तेज होने लगी। इस पर जस्टिस अशोक भूषण को अदालत का नजरिया समझाने के लिए सामने लगी माइक का सहारा लेना पड़ गया।

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सुनवाई तो दोपहर दो बजे शुरू होनी थी। लेकिन, डेढ़ बजे ही अदालत खचाखच भर गई। लोग लंच टाइम में भी जमे रहे। उन्हें लग रहा था कि अगर बाहर चले गए तो भीड़ में दोबारा नहीं घुस पाएंगे। ठीक दो बजे न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर ने कोर्ट में प्रवेश किया।

सुनवाई की शुरुआत उत्तर प्रदेश की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने की। उन्होंने कहा कि पहले हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपीलों पर सुनवाई हो। उसके बाद बाकी अर्जियां सुनी जाएं। कोर्ट को जल्दी सुनवाई की तिथि तय करनी चाहिए। लेकिन, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील अनूप जार्ज चौधरी, कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अभी दस्तावेजों का अनुवाद नहीं हुआ है। संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पाली, फारसी, गुरुमुखी समेत आठ भाषाओं में इसके दस्तावेज हैं।

हाई कोर्ट के फैसले में उनका हवाला है। पहले उनका अनुवाद कराया जाए। इन वकीलों की तेज आवाज के बीच रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन और यूपी के मेहता ने सुझाव दिया कि जो पक्षकार जिस दस्तावेज का हवाला देना चाहता है, वही उसका अनुवाद कराए। पीठ को सुझाव ठीक लगा। लेकिन, चौधरी का कहना था कि दूसरा पक्ष सवाल उठाएगा तो क्या होगा।

पीठ ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो कोर्ट उस अनुवाद को विशेषज्ञ के पास भेजेगा। अनुवाद को लेकर बहस बढ़ी, तो मेहता ने कहा कि मुकदमा 1949 में शुरू हुआ और अब 2017 है। और हम अभी दस्तावेजों के अनुवाद पर बहस कर रहे हैं। जब कोर्ट ने पूछा कि अनुवाद में कितना समय लगेगा, तो रामलला की ओर से सिर्फ चार सप्ताह मांगा गया। सुन्नी बोर्ड ने चार महीने का समय मांगा। निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि वे अभी अंदाज से भी नहीं बता सकते कि कितना समय लगेगा। पीठ ने इस दलील पर एतराज जताया और पक्षकारों को अनुवाद के लिए 12 सप्ताह का समय दिया।

रामलला ने निर्मोही अखाड़े की अपील का किया विरोध

वैद्यनाथन ने निर्मोही अखाड़े की अपील का विरोध करते हुए कहा कि ये तो पुजारी हैं। इनका जमीन पर मालिकाना हक से क्या लेना-देना? लेकिन, अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि वे उनसे पहले से इस मामले का मुकदमा लड़ रहे हैं।

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