Move to Jagran APP

World Population Day 2019- बढ़ती जा रही शहरों की आबादी, घटते जा रहे मूलभूत संसाधन

विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर यदि हम देखें तो देश की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है।यदि ऐसे ही रहा तो साल 2027 में हम चीन को पीछे छोड़ देंगे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 11 Jul 2019 12:15 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jul 2019 12:33 PM (IST)
World Population Day 2019- बढ़ती जा रही शहरों की आबादी, घटते जा रहे मूलभूत संसाधन
World Population Day 2019- बढ़ती जा रही शहरों की आबादी, घटते जा रहे मूलभूत संसाधन

[अंकित सिकरवार]।World Population Day 2019- कोई भी अंतरराष्ट्रीय दिवस जनता को चिंता के विभिन्न मुद्दों पर शिक्षित करने, राजनीतिक इच्छाशक्ति को मजबूत करने और संसाधनों को जुटाने के एक अवसर के रूप में देखा जाता है। 11 जुलाई विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन आम लोगों में यह इतना प्रसिद्ध नहीं है। ऐसे में जनसंख्या के मुद्दे के बारे में आम लोगों को जागरूक करना बहुत आवश्यक है।

loksabha election banner

वल्र्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट्स-2019 रिपोर्ट के अनुसार भारत 2027 में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। जब भारत गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, पर्यावरण क्षरण, प्रदूषण और कई अन्य चुनौतियों के बोझ तले दबा हुआ है तब जनसंख्या के मामले में दुनिया में अव्वल होना भारत के विकास के सामने कई सवाल खड़े करता है। भारत में तेजी से जनसंख्या वृद्धि के सबसे चुनौतीपूर्ण परिणामों में से एक है शहरीकरण। शहरीकरण कई मायनों में समाज के लिए अच्छा है, लेकिन जब शहरीकरण की प्रक्रिया उचित योजना के बिना आगे बढ़ती है तो यह एक अभिशाप में बदल जाती है।

बढ़ती शहरी आबादी 

भारत में शहरीकरण तेज गति से हो रहा है। 1960 में 18 प्रतिशत की तुलना में अब लगभग 34 प्रतिशत भारतीय शहरों में रहते हैं। हालांकि भारत में शहरी विकास दर काफी धीमी रही है, लेकिन अब इसमें तेजी आने लगी है। इससे भारत के शहरों के सामने कई गंभीर चुनौतियां पैदा हो रही हैं। बेहतर अवसरों का स्नोत होने के बावजूद भारत के शहर अत्यधिक असमानता, गरीब और अतिभारित बुनियादी ढांचे तथा असंगत सार्वजनिक सेवाओं से परेशान हैं।

दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों में जनसंख्या वृद्धि उनके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे तेज रही है जो आधिकारिक प्रशासनिक सीमाओं से परे के क्षेत्र हैं। अधिकांश लोग शहरों में रहने के लाभों को जानते हैं और यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षो में शहरी क्षेत्र अधिक आबादी को आकर्षित करेंगे। इन स्थितियों में भारत की शहरी चुनौतियों पर तथ्यों के साथ चर्चा करना और समझना महत्वपूर्ण हो जाता है।

छोटे कमरे में लाखों सपने

अधिकांश लोग रोजगार की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन करते हैं। जब वे शहर में प्रवेश करते हैं तो छोटे स्तर के रोजगार पाते हैं। इस तरह की नौकरियों से ये लोग शहरों में उपयुक्त आवास नहीं ले सकते हैं जहां रहने की लागत काफी अधिक है। इसलिए वे मलिन बस्तियों में आवास खोजने के लिए मजबूर होते हैं। मलिन बस्तियों में स्थितियां विकट होती हैं। ऐसी बस्तियां छोटे, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में, हवाई अड्डों, रेलवे लाइनों तथा उद्योगों, नदियों और अन्य जल निकायों एवं बाजारों के पास बनाई जाती हैं।

यहां पीने का साफ पानी मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है। कोई उचित सीवेज या अपशिष्ट निपटान प्रणाली नहीं होने के कारण कचरा बस्तियों के पास जमा हो जाता है। यहां उचित स्वच्छता सुविधाएं भी नहीं होती हैं और ज्यादातर लोग सार्वजनिक रूप से शौच करते हैं। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार देश में 65 मिलियन से अधिक लोग झुग्गियों में रहते हैं, जो कि ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के दोगुने से अधिक है।

लगातार दो साल के कमजोर मानसून के बाद 330 मिलियन लोग यानी देश की एक चौथाई आबादी सूखे से प्रभावित है। लगभग 50 प्रतिशत भारत सूखे जैसी स्थिति से जूझ रहा है। इस वर्ष विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में स्थिति गंभीर रही है। गांवों में जलसंग्रह की व्यवस्था अभी भी किसी न किसी रूप में कायम है, लेकिन शहर की बढ़ती आबादी के सामने सारी व्यवस्था असहाय हो जाती है।

वायु प्रदूषण 

2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन में पाया गया कि दुनिया के बीस सबसे प्रदूषित शहरों में से चौदह भारत के हैं। इससे लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। ऐसा अनुमान है कि 2016 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण 9 लाख से अधिक मौतें हुई थीं। वायु प्रदूषण भौगोलिक सीमाओं को नहीं पहचानता है। जिस तरह ग्रामीण इलाकों से प्रदूषित हवा शहरों में जाती है, वैसे ही शहर भी ग्रामीण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। इस प्रकार प्रदूषण-विरोधी प्रयासों के लिए विभिन्न स्तरों पर समन्वित होना महत्वपूर्ण है।

सामाजिक असमानता  

भारत के 10 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों के नवीनतम वार्ड स्तर की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि हमें शहरों को देखने के तरीकों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। इनमें से अधिकांश शहर, अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के साथ शहर के कुछ क्षेत्रों में उच्च स्तरीय आवासीय अलगाव प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा इन स्थानों पर नल के पानी जैसे सार्वजनिक वस्तुओं की पहुंच भी बहुत कम है। इस असमानता को कम करने के लिए देश की सामाजिक कल्याण नीतियों को कारगर बनाने की आवश्यकता है।

आगे का रास्ता  

समस्याएं समाधान के साथ उत्पन्न होती हैं। वर्तमान भारत में बहुत सारे छोटे और मध्यम शहर हैं जो बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। नीति निर्माताओं को बड़े मेट्रो शहरों में चल रही योजनाओं में खामियों का मूल्यांकन करना चाहिए और प्रभावी योजना के साथ छोटे शहरों के विकास का प्रबंधन करना चाहिए। न्यू मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट के शोध के अनुमानों के अनुसार भारत के शहर 2030 तक 70 प्रतिशत नई नौकरियों का उत्पादन कर सकते हैं जो पूरे देश में प्रति व्यक्ति आय में लगभग चार गुना वृद्धि कर सकते हैं।

शहरीकरण के मुद्दों को हल करने का सबसे प्रभावी तरीका गांवों और छोटे शहरों की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से व्यवहार्य बनाना है। शहरी सुधार और ग्रामीण विकास के बीच अंतराल होने पर कोई भी राष्ट्र पूरी तरह से विकसित नहीं हो सकता है। सरकार को सामाजिक और पर्यावरणीय पहलू के प्रभावों पर विचार किए बिना एक शहर विकसित करने के लिए उत्सुक नहीं होना चाहिए।

जब भारत गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, प्रदूषण और कई अन्य चुनौतियों के बोझ तले दबा हुआ है तब जनसंख्या के मामले में दुनिया में अव्वल होना इसके विकास के सामने कई सवाल खड़े करता है

[सीनियर रिसर्च फेलो, अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान केंद्र, मुंबई]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.