भोपाल गैस कांड: हजारों यात्रियों को बचाने के लिए शहीद हो गए थे 45 रेल कर्मचारी
भोपाल गैस कांड के दौरान ट्रेनों को भोपाल पहुंचने से पहले रोकने के लिए रेल कर्मचारी मुंह पर कपड़ा बांधकर हांफते हुए ड्यूटी पर डटे रहे थे।
नईदुनिया, भोपाल। गैस रिसाव के बाद 3 दिसंबर 1984 की तड़के लोग जान बचाकर बदहवास हालत में या तो दम तोड़ रहे थे या भोपाल से जान बचाकर बाहर भाग रहे थे, लेकिन भोपाल स्टेशन पर पदस्थ स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे और हरिशंकर शर्मा जैसे 45 रेल कर्मचारी जान जोखिम में डालकर मुंह पर कपड़ा बांधे हांफते हुए ड्यूटी पर डटे रहे। ताकि बीना और इटारसी की तरफ से आने वाली ट्रेनों को भोपाल पहुंचने से पहले ही रोका जा सके। इस काम में स्टेशन प्रबंधक और डिप्टी एसएस कामयाब भी हुए।
बीना की तरफ से आने वाली ट्रेनों को विदिशा, निशातपुरा, सलामतपुर और इटारसी की तरफ से आने वाली ट्रेनों को मिसरोद, मंडीदीप, औबेदुल्लागंज व बुदनी के आसपास रोक दिया गया। इस तरह दो दर्जन ट्रेनों को भोपाल आने से पहले रोक दिया गया। इन ट्रेनों में हजारों यात्री थे जिनकी जान बच गई। यदि ये ट्रेनें नहीं रुकवाई गई होतीं तो भोपाल पहुंचने के बाद ये यात्री जहरीली गैस की चपेट में आने से दम तोड़ देते।
स्टेशन प्रबंधक की मौत उसी दिन बाकी ने बाद में तोड़ा दम
अपना फर्ज निभाते हुए स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे उसी रात शहीद हो गए थे, जबकि बाकी 44 कर्मचारियों में से कुछ त्रासदी के एक सप्ताह बाद और कुछ सालों के इलाज के बाद भी गंभीर बीमारियों से जूझते रहे और फिर वे भी शहीद हो गए। इन सभी की याद में भोपाल स्टेशन परिसर में एक स्मारक बनाया गया हैं, जिसमें सभी 45 कर्मचारियों के नामों का उल्लेख है।
मालूम था लोग मर रहे हैं फिर भी पिता जी ड्यूटी करने गए
रेलवे में गार्ड की नौकरी करने वाले एसके शर्मा बताते हैं कि 3 दिसंबर 1984 की सुबह 7 बजे से दोपहर 1 बजे तक उनके पिता हरिशंकर शर्मा की शिफ्ट थी। चारों तरफ कोहराम मचा था, लोग सड़कों पर दम तोड़ रहे थे। तब भी उनके पिता भोपाल डी-केबिन में ड्यूटी करने पहुंचे। हांफते हुए उन्होंने पूरे समय ड्यूटी की और स्टेशन प्रबंधक के निर्देशानुसार ट्रेनों को रुकवाया। रेलवे में डिविजनल चीफ टिकट इंस्पेक्टर संजय तिवारी बताते हैं कि 2 दिसंबर 1984 की रात 11.30 बज रहे थे।
वेस्ट रेलवे कॉलोनी के मकान नंबर 124-डी में परिवार सो रहा था लेकिन रेलवे में गार्ड पिता केके तिवारी की चहल-पहल बढ़ गई थी। वह पूरी रात वायरलैस पर स्टेशन प्रबंधक और साथी रेल कर्मचारियों से संपर्क में थे। इस तरह उन्होंने भोपाल में गैस रिसाव की जानकारी दोनों तरफ से ट्रेनें लेकर भोपाल आ रहे साथी लोको पायलट, गार्ड तक पहुंचाई और ट्रेनों को बाहर रोकने में मदद की। गैस का असर इतना भयावह था कि दूसरे ही दिन उनका देहांत हो गया।
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