देश में बढ़ते सड़क हादसे चिंताजनक, क्या संयुक्त राष्ट्र से किया वादा पूरा कर सकेगा भारत?
भारत में सड़क दुर्घटनाओं और इस कारण मृतकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। दरअसल हमारे देश में अधिकांश सड़कों का निर्माण अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं होता।
[ऋतुपर्ण दवे]। देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं सभी के लिए चिंता का कारण हैं। कहने को वर्ष 2016 की तुलना में 2017 में इसमें थोड़ी कमी जरूर आई, लेकिन 2018 के बढ़े हुए आंकड़ों ने फिर परेशानी बढ़ा दी। सवाल यह है कि हम कब तक आंकड़ों को देखकर चिंता जताते रहेंगे? हादसों को रोकने की खातिर भी तो कुछ ठोस उपाय करना होगा। केवल हाथ पर हाथ धरे रहने से कुछ हासिल होने वाला नहीं। जिस तरह 2019 में अब तक सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, उसने मोदी सरकार की दूसरी पारी में इस पर चिंता बढ़ाई होगी, क्योंकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर रखे हैं जिसमें 2020 तक सड़क हादसों में होने वाली मृत्यु दर को आधा करने का वचन है। ऐसे में इस लक्ष्य को इतने कम समय में कैसे हासिल कर पाएंगे?
लापरवाही कहें या रफ्तार का कहर या फिर खराब सड़कें, देश भर में सड़क दुर्घटनाएं कम नहीं हो रही हैं, जो इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की रेटिंग को भी प्रभावित करती हैं। देश की संसद भी इससे चिंतित है, लेकिन उपायों को लेकर कुछ खास होता दिख नहीं रहा। केवल आंकड़ों को देखें तो भारत में बीता एक दशक करीब 12 लाख जिंदगियां लील चुका है तथा सवा करोड़ से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल और दिव्यांग की श्रेणी में आ चुके हैं। हाल ही में यमुना एक्सप्रेस वे पर आगरा जिले में हुए बस हादसे से चिंता फिर बढ़ गई है। इस हादसे में एक बस पुल से नीचे जा गिरी और 29 लोगों की जान चली गई।
उत्तर प्रदेश यातायात निदेशालय के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। इस वर्ष पहली छमाही में इस एक्सप्रेस वे पर 95 सड़क दुर्घटनाओं में 94 लोगों की जान जा चुकी है और 120 लोग बुरी तरह से घायल हुए हैं। दिल्ली- आगरा की दूरी को कम समय में तय करने के लिए यह एक्सप्रेस वे बनाया गया। लेकिन आरटीआइ के आंकड़े बताते हैं कि नौ अगस्त 2012 यानी उद्घाटन के बाद से 31 जनवरी 2018 तक इसमें 5,000 दुर्घटनाओं में 883 लोगों ने जान गंवा दी है। इसमें यदि गंभीर रूप से घायल लोगों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा दस हजार को पार कर जाता है।
ऐसा ही हादसा जून माह में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में हुआ जिसमें 44 लोगों की मौत हो गई जबकि 30 से अधिक यात्री घायल हो गए। यह हादसा हाइवे पर नहीं, पहाड़ी रास्ते पर हुआ जिसमें एक खचाखच भरी बस 500 मीटर नीचे नदी में जा गिरी जिसने पहाड़ी रास्तों पर अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था को उजागर किया। हिमाचल प्रदेश में ही बीते एक दशक में करीब 30,993 सड़क हादसे हुए हैं जिनमें 11,561 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं देश भर की बात करें तो 2018 में सड़कों पर 1.4 लाख लोगों ने अपनी जान सड़क दुर्घटना में गंवाई है।
सड़क हादसों के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर तमिलनाडु रहा जिसके बाद महाराष्ट्र और तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश रहा। इसके बाद कर्नाटक और राजस्थान में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा लोग मारे गए। सरकारी आंकड़ों में भारत में रोजाना 1,317 सड़क दुर्घटनाओं में 413 लोगों की जान जाती है, जबकि यह आंकड़ा वास्तव में इससे कहीं अधिक है। जो भी हो मौत के ये आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। सड़क सुरक्षा पर आधारित ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट में भारत की स्थिति दयनीय है। दुनिया भर में सड़क हादसों के मामले में रूस पहले नंबर पर है जहां एक लाख लोगों में 19 की जान हर साल सड़क हादसों में जाती है। वहीं भारत दूसरे, अमेरिका तीसरे, फ्रांस चौथे और डेनमार्क पांचवे नंबर पर है।
सड़क हादसों पर किसी एक पक्ष को दोषी ठहराना गलत होगा। इसके लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। पूरी सिविल सोसायटी के साथ जन-अभियान चलाना होगा ताकि जिस सड़क पर चल रहे हैं उसकी तकनीकी गुणवत्ता और जोखिमों की पूरी जानकारी मिले। चालकों की लापरवाही जैसे ओवर स्पीड, लगातार चलना और नशा ज्यादातर दुर्घटनाओं के कारण होते हैं। लेकिन प्रबंधकीय और प्रशासनिक खामियों के बीच बनी सड़कों की बनावट, लचर रख-रखाव और पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खास फोकस जरूरी है। हादसों को रोकने की खातिर पूरे मार्ग में सतर्कता की अनिवार्यता के सुनिश्चित पालन की व्यवस्था होनी चाहिए। यह भी सच है कि भारत में तमाम एक्सप्रेस वे उतने चौड़े नहीं हैं जैसे अंतरराष्ट्रीय मापदंड के अनुसार होने चाहिए, जबकि इन पर दौड़ने वाले वाहन अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं। ऐसे में भारतीय सड़कों पर अंतरराष्ट्रीय मानक के वाहनों की गति और उनके चलाने के तौर तरीकों के सामंजस्य का ज्ञान चालक के लिए बेहद जरूरी है जो अमूमन भारत में नहीं है।
कुल मिलाकर सड़कों पर चलने वाले दोपहिया से लेकर कार व भारी वाहन चालकों को शिक्षित करने के साथ उन्हें अधिकार और जिम्मेदारी दोनों समझानी होगी। सुरक्षित सफर के लिए सड़कों पर तकनीक के उपयोग बढ़ाने के साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लेना होगा। सीसीटीवी का जाल फैलाना होगा जिन्हें वाइ-फाइ से एक सेंट्रलाइज्ड मॉनिटरिंग सिस्टम में जोड़कर जोन या सेक्टरों में बांटकर सतत निगरानी और विश्लेषण किया जाए। इससे एक डाटाबेस भी तैयार होगा जो सड़कों के मिजाज का खाका होगा जिसकी मदद से दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा। इसी से वाहनों की रफ्तार पर दूर से ही निगाह रहेगी जिसका भय वाहन चालक को भी होगा।
सड़क सुरक्षा कानून में भी व्यापक सुधार की जरूरत है जिसकी सरकार कोशिश कर रही है ताकि फर्जी लाइसेंस, एक प्रदेश में अयोग्य होने पर दूसरे प्रदेश से लाइसेंस बनवाना, शराब पीकर वाहन चलाने व तमाम दूसरी व्यावहारिक शिकायतों में कमी आएगी। इसके अलावा टायरों के निर्माण की प्रक्रिया को भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना होगा। सड़क हादसों को कम करने के लिए सरकारी प्रयासों के अलावा सभी को मिलकर इसे जनआंदोलन का रूप देना ही होगा तभी हर साल लाखों लोगों की असमय मौतें रुक पाएंगी जो बड़ी उपलब्धि होगी।
[स्वतंत्र टिप्पणीकार]