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कानून और व्यवस्था को राज्य सूची से हटाकर केंद्र की सूची में कर दिया जाए

वर्तमान में पुलिस व उनके राजनीतिक आका इसका दुरुपयोग करते रहते हैं। साथ ही संघीय ढांचा के नाम पर वे देश को विघटित करने के कुचक्र रच रहे हैं। ऐसे में इस समस्या का व्यावहारिक समाधान तलाशा जाना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 14 May 2022 12:48 PM (IST)Updated: Sat, 14 May 2022 12:48 PM (IST)
कानून और व्यवस्था को राज्य सूची से हटाकर केंद्र की सूची में कर दिया जाए
पुलिस व्यवस्था में हो सामयिक सुधार। फाइल फोटो

रघोत्तम शुक्ल। दिल्ली के भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक पदाधिकारी को बीते दिनों पंजाब पुलिस द्वारा दिल्ली में गिरफ्तार किया गया। बाद में इस प्रकरण के तहत दिल्ली, हरियाणा और पंजाब पुलिस के बीच टकराव हो गया। इस घटना को देखते हुए पुलिस को शासित करने संबंधी वर्तमान व्यवस्था पर बदलाव अपेक्षित प्रतीत हो रहा है। वर्तमान में कानून और व्यवस्था राज्य सरकारों के अधीन है। ऐसे में पुलिस प्रदेश सरकारों के अधीन रहती है, सिवाय उन जगहों के, जो केंद्र शासित हैं या फिर पूर्ण प्रदेश नहीं हैं। दिल्ली भी एक ऐसा ही प्रदेश है, जिसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है।

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बीते कुछ दिनों के दौरान यह देखने में आया है कि केंद्र में सत्ताधारी राजनीतिक दल की विरोधी पार्टियों द्वारा शासित कुछ राज्यों के मुखिया अपनी अति महत्वाकांक्षा के चलते पुलिस का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें बंगाल की ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे अग्रणी भूमिका में हैं, जिन्होंने कई केंद्रीय जांच एजेंसियों और सक्षम अधिकारियों को अपने राज्य में पुलिस की ताकत पर अपमानित किया। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच भी कई बार टकराव की स्थिति पैदा हुई। चूंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं प्राप्त है, लिहाजा इसे यह दर्जा दिलाने के लिए यहां के मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटा चुके हैं। लेकिन अब तक इस दिशा में उन्हें खास कामयाबी नहीं मिली है। ऐसे में पंजाब में सत्ता पाकर अब वह पुलिस बल से भी संपन्न हो गए हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पंजाब पुलिस का दुरुपयोग आरंभ कर दिया गया है। पंजाब पुलिस ने दिल्ली के कई लोगों के विरुद्ध एफआइआर दर्ज की। कुछ को तो गिरफ्तार करने के लिए वहां से पुलिस भी भेजी।

भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक नेता पर मुकदमा दर्ज कराकर दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद नाटकीय घटनाक्रम के तहत तीन राज्यों (दिल्ली, हरियाणा और पंजाब) की पुलिस में टकराव की स्थिति पैदा हो गई। उल्लेखनीय है कि इनमें से दो राज्यों की पुलिस भाजपा शासित राज्य सरकार के अधीन है, जबकि एक राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है। फिलहाल यह मामला पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में है। कोई न कोई निर्णय भी आएगा ही। लेकिन इस प्रकरण पर बात केवल निर्णय से नहीं बनेगी। अब स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि पक्ष और विपक्ष आपस में शत्रु जैसा व्यवहार कर रहे हैं जिसमें मर्यादा व नैतिकता को ताक पर रख दिया गया है। दो विभिन्न दलों द्वारा शासित राज्यों की पुलिस कभी भी आपस में बड़े टकराव की स्थिति में आ सकती है। इससे देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ सकती है। इसका कोई ठोस निदान होना चाहिए।

अच्छा हो कि पुलिस यानी कानून और व्यवस्था को राज्य सूची से हटाकर केंद्र की सूची में कर दिया जाए। हालांकि इसके लिए जिस संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी, उसके लिए वर्तमान केंद्र सरकार के पास यथेष्ट बहुमत नहीं है और सभी राजनीतिक दलों का मिल-बैठकर देशहित में कोई व्यावहारिक निर्णय ले पाना इस समय दूर की कौड़ी नजर आ रही है। तब फिर सर्वोच्च न्यायालय ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत निर्गत कर दे कि अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट भले ही कहीं दर्ज हो, विवेचना अपराध होने के स्थल की अधिकारिता वाली पुलिस से ही हो। 

[पूर्व प्रशासनिक अधिकारी]


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