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तीन दशक पहले उठाए गए सुधार के कदमों पर सतर्कता से विचार करने का समय

भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हमारी विकास दर हमसे बड़ी बाकी चार अर्थव्यवस्थाओं से तेज है। इस दशक के आखिर तक हमारी जीडीपी पांच ट्रिलियन डालर को पार कर लेगी। यह समय खुश होने का भी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 19 Sep 2022 04:06 PM (IST)Updated: Mon, 19 Sep 2022 04:06 PM (IST)
तीन दशक पहले उठाए गए सुधार के कदमों पर सतर्कता से विचार करने का समय
भविष्य में सुधार के कदमों पर सतर्कता से विचार का भी।

डा विकास सिंह। साल 1991 में भारत ने आर्थिक सुधारों की तरफ कदम बढ़ाया था। उस समय लाइसेंसराज, कोटा और अन्य भेदभाव का बोलबाला था। हर प्रकार की आपूर्ति बाधित थी। सुधारों का मुख्य उद्देश्य भारत के उद्यमियों को मौका देना और विदेशी निवेश को आकर्षित करना था। सुधारों के मूल में निजी क्षेत्र को सरकार के नियंत्रण से बाहर करना था। हालांकि कई साल बीत जाने के बाद भी उद्देश्य को पूरी तरह प्राप्त नहीं किया जा सका। राजनेताओं में इच्छाशक्ति की कमी स्पष्ट तौर पर देखी गई।

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तीन दशक पहले उठाए गए आर्थिक सुधार के कदमों पर फिर विमर्श हो रहा है। वास्तव में हमें इस विमर्श से आगे बढ़कर उन कदमों पर विचार करना चाहिए, जिनकी आज आवश्यकता है। उस समय उठाए गए कदमों की अपनी सीमा थी। प्रयास क्रांतिकारी भी थे, लेकिन सरकार ने घरेलू मोर्चे पर बहुत साहस भी नहीं दिखाया था। वर्तमान सरकार इस मामले में बेहतर स्थिति में है। प्रयासों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी आड़े नहीं आ रही है।

हमें अगले 10 साल 10 प्रतिशत की विकास दर चाहिए। इस विकास दर से ही स्वास्थ्य एवं शिक्षा, आर्थिक सुरक्षा और लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर सुनिश्चित हो सकेंगे। नियामकीय व्यवस्था तैयार करना और प्रोत्साहन देना सरकार का काम होता है, जिससे विकास को गति मिले। निजी क्षेत्रों को दबाकर नहीं, बल्कि सरकारी क्षेत्रों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए प्रयास किए जाने आवश्यक हैं। जमीनी स्तर पर ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे सरकारी, निजी और कारपोरेट सभी को लाभ मिले।

सुधार कोई घटना या परिणाम नहीं अपितु प्रक्रिया है। पिछले आठ साल के आर्थिक सुधारों के परिणाम दिखे हैं। हालांकि प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार न हो पाने के कारण इनका पूरा लाभ अब भी नहीं मिल पाया है। भारत को ऐसे सुधारों की आवश्यकता है, जिनसे एमएसएमई के विकास को बढ़ावा मिले। पांच करोड़ रोजगार देने वाले एमएसएमई का करीब 80 प्रतिशत छोटे उद्योगों से बना है। कुछ ही बड़े संस्थान हैं, जिनकी वैश्विक स्तर पर उपस्थिति है।

हमें यह समझना होगा कि श्रम सुधार, टैक्स लाभ और कारोबारी सुगमता कुछ ऐसे कदम हैं, जिनसे रोजगार सृजन हो सकता है और विकास को भी गति मिल सकती है। इसी तरह कृषि सुधार भी बहुत अहम कदम है। 45 प्रतिशत से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है। भूमि सुधार के बिना कृषि सुधार संभव नहीं हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता है। इनसे कई गुना लाभ लिया जा सकता है। राज्य सरकारों को भी इस बारे में प्रयास करना होगा। बिजली, जमीन और कृषि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिनसे व्यापक लाभ लिया जा सकता है। ये सभी राज्य के विषय हैं। इन पर काम किया जाए तो कई गुना लाभ मिल सकता है। राज्य सरकारों को चुनावी मोड से बाहर आना होगा। जब तक हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन न दिया जा सके, तब तक आर्थिक सुधार भी बेमानी हैं।

यदि सामाजिक मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाए, तो विकास कुछ ऊपर के लोगों तक सिमटकर रह जाएगा। भारत संरचनात्मक बदलावों के बिना विकास नहीं कर सकता है। विकास असल में लोगों के जीवन को समृद्ध करने और अवसरों को विस्तार देने का माध्यम है। रोजगारविहीन विकास और तेज विकास की असमानता बहुत बड़ी चुनौती है। पीएम मोदी को सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक स्थिति में सबसे नीचे जी रही 30 करोड़ की आबादी को ऊपर आने का मौका मिले और 30 करोड़ मध्यम वर्गीय आबादी का विस्तार हो। सरकार को सामाजिक उत्थान की व्यवस्था करनी चाहिए और लोगों को अपने जीवन के लिए बेहतर विकल्पों के चयन का मौका मिलना चाहिए।

[मैनेजमेंट गुरु और वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]


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