क्षेत्र की पहचान खत्म करने की चीनी नीति के खिलाफ साहस और दृढ़ संकल्प दिखा रहे तिब्बती : पेनपा सेरिंग
पिछले कुछ सालों में चीनी सरकार द्वारा तिब्बती लोगों पर किए गए अत्याचारों के बारे में तिब्बती सरकार के अध्यक्ष पेन्पा त्सेरिंग ने प्रकाश डाला। तिब्बत के लोगों ने क्षेत्र की पहचान को खत्म करने की चीन की निरंतर कोशिशों के सामने साहस और दृढ़ संकल्प बनाए रखा है।
धर्मशाला, एएनआइ। पिछले कुछ सालों में चीनी सरकार द्वारा तिब्बती लोगों पर किए गए अत्याचारों के बारे में निर्वासित तिब्बती सरकार के अध्यक्ष पेन्पा त्सेरिंग ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तिब्बत के लोगों ने क्षेत्र की पहचान को खत्म करने की चीन की निरंतर कोशिशों के सामने साहस और दृढ़ संकल्प बनाए रखा है।
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और 80,000 तिब्बतियों के भारत में निर्वासन के बाद 1960 में तिब्बती संसद की स्थापना की गई थी। तिब्बती संसद की स्थापना की 61वीं वर्षगांठ के अवसर पर पेन्पा त्सेरिंग ने यह टिप्पणी की। 3 फरवरी, 1960 को राष्ट्रपति ने कहा था कि निर्वासित तिब्बती नागरिकों के प्रतिनिधि पहली बार बोधगया में एकत्र हुए और न-ग्येन चेन्मो (महान शपथ) ली। दलाई लामा के मार्गदर्शन में एकता और सहयोग बनाने के लिए समर्पण और बलिदान का वचन दिया था।
पेन्पा त्सेरिंग ने कहा कि उस समय के दौरान, चीनी सरकार ने तिब्बती लोगों के शांतिपूर्ण विरोधों के क्रूर दमन की अपनी नीति का अनुसरण किया था। चीन की नीतियों ने तिब्बत में त्रासदी लाई क्योंकि उस समय तिब्बतियों ने पृथ्वी पर नर्क का अनुभव किया था। 1950 में चीनी सैनिकों ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और बाद में, 1959 में तिब्बती विद्रोह में तिब्बती निवासियों और चीनी सेनाओं के बीच हिंसक संघर्ष हुए।
पेन्पा त्सेरिंग ने बताया कि हम अपना 61वां लोकतंत्र दिवस मना रहे है, हम तिब्बत में अपने हमवतन लोगों को हार्दिक बधाई देते हैं। तिब्बती लोगों ने तिब्बत की पहचान को खत्म करने की चीन की निरंतर नीति के सामने साहस और दृढ़ संकल्प बनाए रखा है। वे सभी तिब्बत के धर्म, संस्कृति, भाषा और परंपरा की रक्षा के लिए चौतरफा प्रयास कर रहे हैं।
इस समय धर्मशाला में 10,000 से अधिक तिब्बती रहते हैं और दुनिया भर में लगभग 160,000 तिब्बती रह रहे हैं। त्सेरिंग ने तिब्बती नागरिकों से आग्रह किया है कि वह अपना दृढ़ संकल्प न खोएं। 2013 में राष्ट्रपति बनने के बाद से, शी जिनपिंग ने तिब्बत पर सुरक्षा नियंत्रण बढ़ाने की एक दृढ़ नीति अपनाई है। बीजिंग बौद्ध भिक्षुओं और दलाई लामा के अनुयायियों पर नकेल कसता रहा है। अमेरिका विभिन्न प्लेटफार्मों पर तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे को उठाता रहा है।