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UN की रिपोर्ट में दावा, भारत में हर 2 मिनट में होती है 3 नवजात शिशु की मौत

इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों के दौरान भारत में सबसे कम साल 2017 में लगभग 8,02,000 नवजात शिशुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 05:02 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 06:12 PM (IST)
UN की रिपोर्ट में दावा, भारत में हर 2 मिनट में होती है 3 नवजात शिशु की मौत
UN की रिपोर्ट में दावा, भारत में हर 2 मिनट में होती है 3 नवजात शिशु की मौत

नई दिल्ली, पीटीआइ। यूनाइटेड नेशन्स इंटर एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टीमेशन (बाल मृत्यु दर अनुमान के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर एजेंसी समूह) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हर दो मिनट पर तीन नवजात शिशु की मौत होती है। यूएनआइजीएमई ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में पानी, स्वच्छता, उचित पोषण और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते हर 2 मिनट पर 3 नवजात शिशुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।

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इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों के दौरान भारत में सबसे कम साल 2017 में लगभग 8,02,000 नवजात शिशुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी,फिर भी ये मौत का आंकड़ा भी दुनिया में सबसे ज्यादा है।

WHO प्रमुख ने बताया भारत में शिशुओं की मौत का कारण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के (WHO) प्रमुख डॉ गगन गुप्ता ने बताया कि, शिशु मृत्यु के पीछे मुख्य कारण दूषित पानी, अस्वच्छता, उचित पोषण और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नवजात शिशु की मौत सबसे अधिक है, इसके बाद नाइजीरिया 4,66,000, पाकिस्तान 3,30,000 और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य 2,33,000 (डीआरसी) है। यूएनआइजीएमई रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2017 में भारत में 6,05,000 नवजात शिशुओं की मौत हुई थी, जबकि 5-14 आयु वर्ग के बच्चों में यह संख्या 1,52,000 थी।

भारत में भी घट रही है शिशु मृत्यु दर
यूनिसेफ इंडिया के प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने बताया कि, ‘भारत में बाल मृत्यु में प्रभावशाली गिरावट दिख रही है, जिसमें पिछले 5 सालों में पहली बार यह जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं के बराबर दिखाई दे रही है।’
उन्होंने आगे कहा कि, ‘सरकारी नवजात देखभाल इकाइयों के देशव्यापी पैमाने पर और नियमित टीकाकरण को सुदृढ़ करने के साथ संस्थागत वितरण में सुधार के प्रयासों ने इसके प्रति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’ साल 2016 में शिशु मृत्यु की संख्या 8.67 लाख से घटकर 2017 में 8.02 लाख हो गई। लिंग विशेष की बात करें तो पिछले 5 सालों में मेल चाइल्ड में प्रति 1000 बच्चों में से 39 बच्चे ही जीवित बच पाए हैं जबकि फीमेल चाइल्ड के तौर पर यह संख्या 40 पहुंच जाती है प्रति 1000 फीमेल चाइल्ड पर।

फीमेल चाइल्ड की मृत्युदर में आई गिरावट
हक ने आगे कहा कि, 'पिछले पांच सालों में फीमेल चाइल्ड की मृत्युदर के अस्तित्व में चार गुना गिरावट आई है।' उन्होंने कहा कि पोषण अभियान के तहत समग्र पोषण सुनिश्चित करने और 2019 तक भारत को खुले शौच से मुक्त करने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का कदम उठाए जाने के बाद इन आंकड़ों सुधार होने की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग और विश्व बैंक समूह द्वारा जारी किए गए नए मृत्यु दर के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में 15 वर्ष से कम उम्र के 6.3 मिलियन बच्चे की मृत्यु हुई या हर 5 सेकंड में 1 एक बच्चे की मौत हुई। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि नवजात शिशुओं की मौत को रोकना और युवा स्वास्थ्य में बढ़ावा देना किसी भी देश के लिए मानव पूंजी का निर्माण एक बुनियादी आधार है जो भविष्य में देश के विकास और समृद्धि में बढ़ावा देगा।

जोखिम भरा होता है नवजात शिशु का पहला महीना
हर बच्चे के लिए सबसे ज्यादा जोखिम वाला समय पहला महीना होता है, साल 2017 में पहले महीने में मृत्यु होने वाले नवजात शिशुओं की संख्या 2.5 मिलियन रही इस सब चुनौतियों के बावजूद मौजूदा समय में दुनियाभर में नवजात शिशुओं की मृत्युदर में कमी आ रही है। 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का आंकड़ां साल 1990 में 12.6 मिलियन था जो कि साल 2017 में घटकर 5.4 मिलियन रह गया। इसी अवधि में 5 से 14 साल के बच्चों की मौत 1.7 मिलियन से घटकर एक मिलियन से भी कम हो गई है।


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