Chandrayaan 2 : धरती की वो तस्वीरें जिससे बदल गया था लोगों का नजरिया
Chandrayaan 2 धरती की खींची गई तीन तस्वीरें ऐसी हैं जिन्होंने न सिर्फ शोध में अहम योगदान दिया बल्कि हमारी सोच और नजरिए को भी बदला।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Chandrayaan 2 : वर्ष 1969 में जब इंसान ने चंद्रमा पर पहला कदम रखा तो कहानियों में सुनाया जाने वाला चांद अचानक धरती के बेहद करीब हो गया था। इस एक कदम ने न सिर्फ इतिहास बनाया बल्कि चांद पर शोध के नए रास्ते खोल दिए। गूगल अर्थ ने भी लोगों को अपनी पृथ्वी और अंतरिक्ष को जानने का नया जरिया दिया। अपोलो मिशन के दौरान लिए गए धरती के फोटो ने भी लोगों का नजरिया पृथ्वी के बारे में बदल दिया। इसमें पहली बार पता चला कि हमारी पृथ्वी वास्तव में कितनी सुंदर है। 1970 के ग्रीन मूवमेंट में भी इन तस्वीरों ने काफी मदद की थी। जब अंतरिक्ष से लिए गए फोटो का जिक्र चला है तो यहां पर उन तीन इमेज के बारे में भी बताना जरूरी हो जाता है जिन्होंने पृथ्वी को लेकर बनी धारणा और सोच को बदल दिया था।
यहां पर इसकी जानकारी का होना इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि भारत के चंद्रयान-2 के लॉन्च की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। इसरो का सबसे भारी रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल-मार्क 3 (जीएसएलवी-एमके3) यान को लेकर रवाना होगा। यह 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से लॉन्च होगा। दरसअल, चांद पर 1969 में जो विजय पताका फहराई गई थी उसके बाद इंसान ने दोबारा उसकी तरफ रुख नहीं किया। चांद के रहस्यों की बात करें तो भारत ने इसमें भी बड़ी कामयाबी हासिल की है। बहरहाल, हम आपको अब उन तस्वीरों के बारे में बता देते हैं जो आजतक बेहद अहम हैं।
अर्थराइज (Earthrise)
इसमें सबसे पहली फोटो अंतरिक्षयात्री विलियम एंडर्स ने अपोलो-8 मिशन के तहत 24 दिसंबर 1968 को ली थी। इस फोटो को नाम दिया गया था अर्थराइज (Earthrise)। यह फोटो चंद्रमा की सतह से ली गई थी। इसमें पृथ्वी का आधा भाग दिखाई दे रहा था। नेचर फोटोग्राफर गलेन रॉवेल ने इस फोटो को मोस्ट एनवायरमेंटल फोटोग्राफ करार दिया था। यह चांद के ऑर्बिट में भेजा गया पहला मानव मिशन था। डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग और रॉबर्ट कैनेडी की हत्या, शीत युद्ध और वियतनाम युद्ध की वजह से यह मिशन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। अंतरिक्ष यात्री विलियम एंडर्स के मुताबिक इन मुद्दों ने अमेरिका को दुनिया से अलग कर दिया था। इस दौर में हर जगह तनाव अपने चरम पर दिखाई देता था।
जहां तक चांद की धरती से पृथ्वी के दिखाई देने की बात थी तो वह नजारा अदभुत था। एंडर्स द्वारा खींची गई इस इमेज का इस्तेमाल टाइम मैगजीन ने अपने कवर पेज पर किया था। इतना ही नहीं अप्रैल 1970 में पहली बार अर्थ डे के सिंबल के तौर पर भी इसी इमेज का इस्तेमाल किया गया था। यह इमेज गूगल द्वारा चयनित सदी के उन सौ फोटोग्राफ में से एक थी जिन्होंने दुनिया को बदल दिया था। इसको लेकर एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
ब्लू मार्बल (Blue Marble)
7 दिसंबर 1972 को अपोलो 17 के मून मिशन के दौरान के इस इमेज को धरती से करीब 29000 किमी की दूरी से लिया गया था। यह तस्वीर इतिहास की उन चुनिंदा तस्वीरों में से एक है जिनका इस्तेमाल लगातार किया जाता रहा है। नासा ने इसको AS17-148-22727 नाम दिया था। यह तस्वीर उस वक्त ली गई थी जब अंतरिक्षयान भूमध्य सागर और अंटार्कटिका के ऊपर से गुजर रहा था। इसमें दक्षिण अफ्रीका के साथ साथ एशिया महाद्वीप का भाग भी दिखाई दिया था। इस इमेज के जरिए पहली बार साउथ पोल पर जमी बर्फ को देखा गया। जिस वक्त यह तस्वीर क्लिक की गई उस वक्त दक्षिण गोलार्द्ध पर बादल छाए हुए थे। इस इमेज में मेडागास्कर समेत दक्षिण अफ्रीका के काफी बड़े भू-भाग को आसानी से देखा जा सकता था। इस इमेज में उस वक्त तमिलनाडु में आए चक्रवात को भी देखा जा सकता था। नासा ने इस फोटो का श्रेय यान पर सवार सभी क्रू मैंबर्स को दिया था। यह इतिहास की सबसे अधिक री-प्रोड्यूस्ड फोटो में से एक है।
पेल ब्लू डॉट (Pale Blue Dot)
इसके अलावा तीसरी सबसे अहम फोटो को वॉयजर-1 पर सवार कार्ल सेगेन ने 14 फरवारी 1990 में खींचा था। इसको पेल ब्लू डॉट का नाम दिया गया। जिस वक्त यह फोटो क्लिक की गई थी उस वक्त यान धरती से करीब 6.4 बिलियन किमी दूर था। सेगेन ने अपनी इस फोटो का जिक्र करते हुए एक बार कहा था कि ब्रह्मांड में हमारा होम प्लानेट किसी ब्लू डॉट की तरह लग रहा था। यह नजारा बेहद अदभुत था। इस इमेज में कॉस्मिक रेज को भी देखा जा सकता है।
इतिहास में दर्ज ये तीन इमेज ऐसी हैं जिन्होंने न सिर्फ शोध और अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि इंसानी सोच को भी बदलने में मदद की। आज भले ही हम इन तस्वीरों को नजरअंदाज कर देते हों लेकिन जब पहली बार ये तस्वीरें सामने आई थी तब इनके मायने बेहद खास थी। चंद्रमा के हीरो रहे नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने एक बार कहा था कि वह चांद से धरती को देखते हुए खुद को विशाल नहीं बल्कि बेहद छोटा अनुभव कर रहे थे।