असहायों की भी सुध ले सरकार, कोरोना संकट के बीच फुटपाथों पर जीवन गुजार रहे हजारों बेसहारा मनोरोगी
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की कोलकाता ब्रांच के उपाध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार नेमानी ने कहा बेसहारा मनोरोगियों के लिए सरकार को स्थायी व्यवस्था करनी चाहिए।
नई दिल्ली, जेएनएन। एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना के खौफ में जी रही है तो दूसरी तरफ ऐसे हजारों-लाखों मनोरोगी हैं, जिन्हें खुद की सुध-बुध नहीं है। सड़कों पर भटक रहे हैं और फुटपाथों पर सो रहे हैं। कोरोना का शिकार भी बन रहे हैं। कोलकाता में ऐसे दो मनोरोगी रेंडम चैक में कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। लॉकडाउन में कोलकाता के फुटपाथों पर हजार से अधिक मनोरोगी इस तरह दिख जाएंगे। यही हाल दिल्ली, मुंबई, पुणे और अन्य शहरों का है।
कोलकाता में हमने पड़ताल की तो चौंकाने वाला नजारा सामने था। बेसहारा मनोरोगी इधर-उधर फुटपाथों पर पड़े देखे जा सकते हैं। प्रशासन का कहना है कि इन्हें कोलकाता के विभिन्न नाइट शेल्टर्स में रखने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया क्योंकि मानसिक रूप से असंतुलित होने के कारण वे बंदिश में उग्र रूप धारण कर रहे थे। ऐसे में पुलिस अब फुटपाथ पर ही उनपर कड़ी नजर रख रही है। कोलकाता के पुलिस आयुक्त अनुज शर्मा की ओर से सभी थानों को फुटपाथी मनोरोगियों के लिए दोनों समय के भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है। इसमें सामाजिक संस्थाएं भी सहयोग कर रही हैं।
सरकार को करनी चाहिए स्थायी व्यवस्था
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की कोलकाता ब्रांच के उपाध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार नेमानी ने कहा, बेसहारा मनोरोगियों के लिए सरकार को स्थायी व्यवस्था करनी चाहिए। कोलकाता में अब तक दो बेसहारा मनोरोगियों को कोरोना संक्त्रमित पाया गया है। एक मामला बहूबाजार और दूसरा गार्डेनरीच थाना इलाके में सामने आया। सर्दी-खांसी के लक्षण देखे जाने पर पुलिस ने जब उनकी जांच कराई तो वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए। बेसहारा मनोरोगियों के कल्याण के लिए काम कर रहे कोलकाता हीरोज ग्रुप के संस्थापक तनवीर खान ने कहा, कोलकाता में बेसहारा मनोरोगियों की संख्या 1400 के आसपास है, इन्हें सामाजिक संस्थाओं और भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है। मनोरोगियों के बेरोकटोक घूमने-फिरने से संक्त्रमण का खतरा भी कम नही हैं। लॉकडाउन के कारण यदि इन असहायों को खाने-पीने को ही न मिले तो मानवता मरती है।
उत्तराखंड में पुलिस कर्मियों ने लिया संकल्प
इस सबके बीच उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की पुलिस जिस तरह आगे आई है वह वाकई काबिलेतारीफ कहा जाएगा। सड़कों पर घूमने वाले मानसिक रोगियों, विक्षिप्तों एवं शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की साफ-सफाई और स्वच्छता के लिए पुलिस सेवा भाव से आगे आई है। सब इंस्पेक्टर विजय बोहरा, कांस्टेबल परविंदर बोहरा, सोनू कार्की इस मुहिम में लगे देखे जा सकते हैं। इन पुलिस कर्मियों ने संकल्प लिया है असहाय मानसिक रोगियों के खाने-पीने की व्यवस्था करते हुए प्रतिदिन नहलाने के बाद उनके कपड़े बदलेंगे, हाथ सैनिटाइज करेंगे। एसपी प्रीति प्रियदर्शिनी ने कहा, हमारी टीम ने एक मिसाल पेश की है। यह क्त्रम जारी रहेगा।
महाराष्ट्र की सड़कों में भी बेसहारा लोग
बेसहारा मनोरोगियों के हित में काम करने वाली पुणे स्थित सामाजिक संस्था स्माइल प्लस फाउंडेशन के अध्यक्ष योगेश मलखारे कहते हैं, महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में भी हालत यही है। हम इन्हें पुलिस-न्यायालय और अस्पतालों में तो ले जा रहे हैं लेकिन दाखिला कहीं नहीं दिया जा रहा है। सवाल उठता है कि आखिरकार इन हजारों असहाय मनोरोगियों को पहले से ही आश्रय-उपचार क्यों नहीं मिल रहा था, लॉकडाउन में अब इनकी चिंता तो की जा रही है, लेकिन हल किसी के पास नहीं है, जबकि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कानून के तहत तो इन्हें इस तरह असहाय छोड़ा ही नहीं जा सकता है। पुलिस और प्रशासन का दायित्व है कि इन्हें उपचार और आश्रय उपलब्ध कराएं।