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बस्तर के जंगलों से विलुप्त हो रहा जलेबी को रंग देने वाला यह पौधा

सिंदूरी एक झाड़ीदार पौधा है। इसकी ऊंचाई 20 फीट तक होती है। इसके बीज से ही सिंदूर, खाने का जलेबी रंग बनाया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 14 Dec 2018 03:58 PM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 03:58 PM (IST)
बस्तर के जंगलों से विलुप्त हो रहा जलेबी को रंग देने वाला यह पौधा
बस्तर के जंगलों से विलुप्त हो रहा जलेबी को रंग देने वाला यह पौधा

जगदलपुर [जेएनएन]। 15 साल पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर में जोर शोर से शुरू की गई जलेबी रंग बनाने की योजना पर पानी फिर गया है। बिलोरी के जिस 15 हेक्टेयर वन भूमि में सिन्दूरी के हजारों पौधे रोपे गए थे, उन्हे जलाऊ के लिए काट दिया गया है। इधर बस्तर के जिन गांवों में सिन्दूरी की लाखों झाड़ियां थीं और ग्रामीण इसके बीज को 75 रुपये प्रति किग्रा की दर से बेचा करते थे, वहां भी यह लगभग समाप्त हो गई है। इन सब के चलते सिन्दूरी बस्तर में लुप्तप्राय: वनस्पति की श्रेणी में आ गई है। इस बात की जानकारी वन विभाग को भी है, बावजूद इसके पौधरोपण की सूची से भी सिन्दूरी गायब हो चुकी है।

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क्या है सिंदूरी

सिंदूरी एक झाड़ीदार पौधा है। इसकी ऊंचाई 20 फीट तक होती है। इसे अंग्रेजी में अनाटो कहा जाता है बस्तर और सीमावर्ती राज्य ओडिशा के ग्रामीण इसे झापरा कहते हैं। इसके बीज से ही सिंदूर, खाने का जलेबी रंग बनाया जाता है। रंग निकालने के बाद बीजों का उपयोग कुक्कुट दाना बनाने में होता है। इसकी पत्ती और छाल से बुखार उतारने के लिए काढ़ा बनाया जाता है।

अब नजर नहीं आती सिंदूरी

बस्तर के गांवों में आमतौर पर ग्रामीण सिंदूरी और रतनजोत की झाड़ियां अपने घर और बाड़ी में बाड़ के लिए लगाते रहे हैं। रतनजोत जिसे ग्रामीण जाड़ा कहते हैं, इसके बीजों का उपयोग तेल के लिए और सिंदूरी बीज का उपयोग रंग बनाने के लिए करते आए हैं। इधर सिंदूरी की छाल और पत्ती का उपयोग औषधी के रूप में करने के अलावा इसके ग्रामीण बीज को पांच साल पहले तक 75 रुपये की दर से बेच अतिरिक्त आय प्राप्त करते थे, लेकिन इसे बढ़ाने का प्रयास न तो ग्रामीणों ने किया न ही वन विभाग ने किया। इसलिए इसकी झाड़ियां अब गिनती की ही नजर आती हैं।

बिलोरी में था सिंदूरी फार्म

15 साल पहले लोक संरक्षित क्षेत्र योजना के तहत बिलोरी की 15 हेक्टेयर वन भूमि में सिन्दूरी फार्म बनाया गया था, वहीं इनकी झाड़ियों के नीचे करीब 10 प्रकार की वनोषधियों का भी रोपण किया गया था। इसके लिए कुरंदी नर्सरी में पौधे तैयार किए गए थे। इसका संरक्षण स्व सहायता समिति बिलोरी करती थी। यहां ग्रामीणों द्वारा सिंदूरी बीज संग्रहित कर जलेबी रंग बनाने तथा मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन की योजना थी, लेकिन राशि का अभाव बताकर इस महती योजना को बंद कर दिया गया।

नहीं हो पाया संरक्षण

वन विभाग की उदासीनता के चलते जहां बिलोरी का सिंदूरी फार्म उजड़ गया और ग्रामीण झाड़ियों को जलाऊ के लिए काट कर ले गए, वहीं प्रति वर्ष वन विभाग द्वारा किए जाने वाले पौधरोपण से भी सिंदूरी का रोपण बंद कर दिया गया। इसके चलते बस्तर की इस महत्वपूर्ण वनोषधी का संवर्धन नही हो पाया। अब तो वन विभाग की नर्सरियों में भी सिंदूरी पौधों को तैयार करने का काम बंद हो चुका है। वहीं ग्रामीणों को सिंदूरी बीजों का सही दाम नहीं मिलने के कारण वे भी इनकी झाड़ियों को काट डाले हैं। इन सब के बावूद कुछ पौधे वनग्राम तीरिया में अभी भी बचे हैं।

प्रयास जारी है

बस्तर और ओड़िशा के सीमावर्ती क्षेत्रों में ही सिंदूरी के पेड़ अधिक रहे हैं। यह झाड़ियां माचकोट वन परिक्षेत्र की पहचान भी रही है। इसे बढ़ाने और बचाने के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि इस महत्वपूर्ण वनोषधी का संवर्धन हो सके। कुरंदी नर्सरी बंद हो चुकी है। दूसरी नर्सरियों में इसके पौधे तैयार करने का प्रयास करेंगे।

- विवेक चक्रवर्ती, रेंजर, माचकोट वन परिक्षेत्र, बस्तर, छत्तीसगढ़  


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