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अब शव देखकर नहीं होती घबराहट, 35 साल के करियर में कर चुकी हैं 8000 से ज्यादा पोस्टमार्टम

डॉ. गुप्ता की कहानी काफी रोचक है। उनका सपना शिक्षक बनने का था लेकिन वे पोस्टमार्टम करने के फील्ड में पहुंच गईं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 08 Mar 2019 10:42 PM (IST)Updated: Fri, 08 Mar 2019 11:55 PM (IST)
अब शव देखकर नहीं होती घबराहट, 35 साल के करियर में कर चुकी हैं 8000 से ज्यादा पोस्टमार्टम
अब शव देखकर नहीं होती घबराहट, 35 साल के करियर में कर चुकी हैं 8000 से ज्यादा पोस्टमार्टम

भोपाल, राज्‍य ब्‍यूरोमहिलाएं खून या फिर किसी के शव को देखकर जल्दी घबरा जाती हैं, लेकिन राजधानी में एक ऐसी सशक्त महिला हैं, जिन्हें शव देखकर अब घबराहट नहीं होती। दुर्गंध से भी उन्हें खुशुबू का अहसास होता है। वे 32 साल के करियर में आठ हजार से अधिक शवों का पोस्टमार्टम कर प्रदेश में टॉप पर हैं। इनका नाम है 61 वर्षीय डॉ. गीता रानी गुप्ता। आज भी उनमें वही जुनून और जज्बा देखने को मिलता है, जो इस फील्ड में आने के समय था।

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डॉ. गुप्ता की कहानी काफी रोचक है। उनका सपना शिक्षक बनने का था, लेकिन वे पोस्टमार्टम करने के फील्ड में पहुंच गईं। उनके पिता शिक्षक थे और वे चाहते थे कि उनकी बेटी मेडिकल फिल्ड में जाए। इसलिए डॉ. गुप्ता ने बीएससी, एमबीबीएस और एमडी (फॉरेंसिक मेडिसिन) में की। इसके बाद पीएचडी भी करना चाहती थीं, लेकिन शासकीय व्यवधान के कारण नहीं कर पाईं। उनके नाम कई रिकॉर्ड शामिल हैं। वे फॉरेंसिक मेडिसिन विषय में एमडी करने वालीं प्रदेश की प्रथम महिला डॉक्टर हैं। वे बताती हैं कि जब परिजन मुंह पर कपड़ा बांधकर शव देखने आते हैं तो अवाक रह जाती हूं कि मरने के बाद इंसान का कोई मूल्य नहीं रह जाता।

एमपीपीएससी से हुआ चयन
मुरैना जिले में जन्म लेने के बाद उन्होंने सोचा था कि वे भी पिता की तरह शिक्षक बनकर बच्चों को पढ़ाएंगी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उनका चयन मप्र लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) से मप्र मेडिको लीगल संस्थान में मेडिकल ऑफिसर के पद पर 1989 में हुआ। वर्तमान में उनका मुख्य कार्य शव का पोस्टमार्टम, विशषज्ञ मत देना और मेडिकोलीगल प्रकरणों के निराकरण के लिए न्यायालय में उपस्थित होना शामिल है।

पहली बार 20 डेड बॉडी को देखकर पूरी नींद सोई

एमबीबीएस प्रथम वर्ष की छात्रा थी तब एक दिन में एक साथ 20 डेड बॉडी आईं, जिन्हें देखकर लगा कि आज तो पूरी रात सो नहीं पाऊंगी। लेकिन मन में ठान लिया कि कुछ अलग करना है तो मजबूत बनना होगा। इससे अंदरूनी हिम्मत मिली और रात में पूरी नींद सोई। इसके बाद एक साल तक उन्हीं 20 बॉडी पर डिसेक्शन किया था।

चुनौतीपूर्ण है यह कार्य
डॉ. गीता कहती हैं कि पोस्टमार्टम फिल्ड आज से 35 साल पहले काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि आमतौर पर चिकित्सा की पढ़ाई के बाद महिला डॉक्टर स्त्री रोग विशेषज्ञ या फिर शिशु रोग विशेषज्ञ बनना पसंद करती हैं। पोस्टमार्टम के क्षेत्र में जाने का तो सोचती ही नहीं थीं। इस क्षेत्र में तो पुरुषों का वर्चस्व है। प्रदेश में अभी भी गिनती की महिलाएं इस फिल्ड में हैं। यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद कोर्ट भी जाना पड़ता है।

60 टुकड़ों की बॉडी का दो दिन में किया पोस्टमार्टम
डॉ. गीता ने बताया कि करीब 6 साल पहले शाजापुर जिले से 60 टुकड़ों में शव पोस्टमार्टम के लिए आया था। उस प्रकरण में मृतक की हत्या कर सूखे बोरवेल में डाल दिया गया था। पुलिस को उस बॉडी को बोरवेल से निकालने में तीन दिन का समय लगा था और मुझे इसका परीक्षण करने में दो दिन का समय लगा। इसके बाद चार साल पहले एक तीन-चार टुकड़ों में खोपड़ी व कंकाल मिला। जिसका परीक्षण करना मुश्किल था, परिजन भी छुपा रहे थे। जब खोपड़ी का परीक्षण हुआ तो पता चला कि उसके खोपड़ी में एक गोली फंसी है। इसके बाद प्रकरण सुलझा कि उसके परिजनों ने ही हत्या की थी।

फोटोग्राफी का भी शौक
डॉ. गीता कहती हैं कि विभाग में शव परीक्षण के अतिरिक्त फोटोग्राफ आते हैं तो उनकी जांच के लिए फोटोग्राफी सीखी। वे कहती हैं कि अकेली हूं, लेकिन आज अपनी पसंद के सभी काम करती हूं। अपने कार्य के अलावा लांग ड्रायविंग व फोटोग्राफी का भी शौक है। हर समय मेरे साथ कार, लैपटॉप, कैमरा होता है। कभी भी अपने कैमरे में पशु-पक्षियों की फोटो लेने के लिए शहर के बाहर दूर निकल जाती हूं।

बेटियों को एक संदेश
डॉ. गीता ने कहा कि आज बेटियां हर क्षेत्र में मुकाम हासिल कर रही हैं। पुरुष वर्चस्व वाले समाज में महिलाएं स्थान बना रही हैं। बेटियों से यही कहना है कि साहसी बनें। चुनौती स्वीकार करें और आगे बढ़े। आपको कॅरियर किस क्षेत्र में बनाना है यह चुनाव खुद करें। अपने अंदर हमेशा जुनून जगा कर रखें।


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