Move to Jagran APP

विश्व साक्षरता दिवस : एक सरकारी स्कूल, जहां 365 दिन लगती हैं कक्षाएं

विश्व साक्षरता दिवस होली हो या दिवाली, रोज बजती है घंटी, छत्तीसगढ़ के इस स्कूल में शिक्षक-छात्र नहीं लेते अवकाश

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 09:21 AM (IST)Updated: Sat, 08 Sep 2018 09:23 AM (IST)
विश्व साक्षरता दिवस : एक सरकारी स्कूल, जहां 365 दिन लगती हैं कक्षाएं
विश्व साक्षरता दिवस : एक सरकारी स्कूल, जहां 365 दिन लगती हैं कक्षाएं

रायपुर [संदीप तिवारी]। बिन अक्षर सब सून। आज विश्व साक्षरता दिवस है। शिक्षा के महत्व को समझने और आत्मसात करने का दिन। छत्तीसगढ़ के भरूवाडीह कला गांव स्थित सरकारी स्कूल के शिक्षक और विद्यार्थी इस मामले में हम सभी से आगे हैं। यहां बिन अवकाश, साल के 365 दिन पढ़ाई होती है। राजधानी रायपुर के तिल्दा विकासखंड स्थित इस गांव का शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय रविवार को भी खुलता है। दिवाली हो या होली, रक्षाबंधन हो या ईद, बैसाखी हो या क्रिसमस, स्कूल की घंटी हर दिन बजती है।

loksabha election banner

साल के 365 दिन ज्ञान की गंगा अबाध बहती है, बहती रहती है। यह सब हो पाया यहां के ग्रामीणों की शिक्षा के प्रति गहरी समझ के कारण। तीन बरस हो गए, इस सरकारी पाठशाला में किसी भी दिन छुट्टी नहीं हुई। रविवार, होली, दिवाली को जब देशभर के अन्य स्कूल, कॉलेजों और कार्यालयों में सन्नाटा रहता है, इस पाठशाला में बच्चों की आवाज गूंजती है। एक हजार की आबादी वाले इस गांव की पाठशाला में 54 बच्चे पढ़ते हैं।

ऐसे शुरू हुआ सिलसिला

तीन साल पहले यहां अलग-अलग कक्षाओं में छह विषयों को पढ़ाने वाले मात्र दो शिक्षक थे। शिक्षकों की कमी से पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। तब पाठशाला के एक शिक्षक दिनेश कुमार वर्मा ने गांव के सरपंच के समक्ष प्रस्ताव रखा कि अगर गांव वाले चाहें तो इस पाठशाला को हम रोज खोल सकते हैं।

गांव वालों ने सहमति दी और शिक्षक दिनेश ने हर दिन विद्यालय आने की जिम्मेदारी ले ली। वे 12 किलोमीटर की दूरी तय कर रोज विद्यालय पहुंचते हैं। जिस दिन किसी कारणवश वे विद्यालय नहीं आते, तब गांव के किसी शिक्षित व्यक्ति को यह जिम्मेदारी दी जाती है। रविवार व त्योहार के दिन भी बच्चों की कक्षाएं लगाकर उनके प्रभावित पाठ्यक्रम को पूरा किया जाता है।

स्वावलंबन की भी सीख

विद्यालय में बच्चों को स्वावलंबन की भी सीख दी जाती है। गांव के बुजुर्ग उन्हें खेती-बाड़ी, दुनियादारी के गुर भी सिखाते हैं। विद्यालय में शिक्षकों ने अपने वेतन से रकम जुटाकर बच्चों के लिए वाद्ययंत्र खरीदे हैं। बच्चों को ढोल, तबला, मादर, हारमोनियम, बैंड बजाना सिखाया जाता है। खेलने के लिए वॉलीबॉल, बैडमिंटन और किक्रेट के साजोसामान भी उन्हें यहीं मिल जाते हैं।

दीपावली पर स्कूल में भी सब मिलकर दीप जलाते हैं। स्कूल को साफ-सुथरा कर रंगोली बनाते हैं। स्कूल में ही बच्चे पटाखे फोड़ते हैं। पाठशाला मानो अब बच्चों का घर बन चुकी है। सरपंच तुकेश्वरी बंजारे के अनुसार, इसमें गांव वालों को कोई आपत्ति नहीं है। यहां अवकाश न रखकर हम बच्चों के विकास के लिए सहमत हैं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.