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नागपंचमी विशेष: आजादी के बाद दूसरी बार स्वतंत्रता दिवस पर आया यह पर्व

परंपरा रही है कि मंदिर के पट साल में केवल एक मर्तबा नागपंचमी पर खोले जाते हैं। केवल इसी दिन भक्तों को भगवान के दर्शन होते हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 08:18 PM (IST)Updated: Tue, 14 Aug 2018 08:18 PM (IST)
नागपंचमी विशेष: आजादी के बाद दूसरी बार स्वतंत्रता दिवस पर आया यह पर्व
नागपंचमी विशेष: आजादी के बाद दूसरी बार स्वतंत्रता दिवस पर आया यह पर्व

उज्जैन, नईदुनिया प्रतिनिधि। मप्र के उज्जैन में विश्वप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट 14 अगस्त की रात 12 बजे खोले जाएंगे। पूजा अर्चना के बाद आम दर्शन का सिलसिला शुरू होगा। दर्शनार्थी 24 घंटे तक भक्त भगवान के दर्शन कर सकेंगे। परंपरा रही है कि मंदिर के पट साल में केवल एक मर्तबा नागपंचमी पर खोले जाते हैं। केवल इसी दिन भक्तों को भगवान के दर्शन होते हैं। आजादी के बाद यह दूसरा मौका है जब 15 अगस्त के दिन नागपंचमी आ रही है। इससे पहले वर्ष 1980 में इस प्रकार का संयोग बना था।

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बता दें कि ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के गर्भगृह में भगवान महाकाल, तल मंजिल पर भगवान ओंकारेश्वर तथा शिखर पर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। मंदिर की परंपरा अनुसार महाकालेश्वर व ओंकारेश्वर मंदिर में भक्त वर्षभर दर्शन कर सकते हैं। लेकिन नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट आम श्रद्धालुओं के लिए वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही खोले जाते हैं। इसके पीछे कोई कारण स्पष्ट नहीं है। मगर पुजारी बताते हैं कि यह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। मंदिर में पूजा अर्चना का अधिकार महानिर्वाणी अखाड़े के पास है। नागपंचमी पर सबसे पहले अखाड़े की ओर से ही भगवान की पूजा होती है।

11 वीं शताब्दी की है मूर्ति

नागचंद्रेश्वर मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह के ठीक बाहर ग्यारहवीं शताब्दी की परमारकालीन मूर्ति है। इसमें शिव-पार्वती शेषनाग पर विराजित हैं। बताया जाता है यह मूर्ति नेपाल से यहां लाई गई है।

देश-विदेश से आते हैं भक्त

नागपचंमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों भक्त महाकाल मंदिर आते हैं। मंदिर समिति द्वारा भक्तों की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं। भक्त को कम समय में सुविधा से नागचंद्रेश्वर के दर्शन हो सके इसके लिए विशेष रूप से लोहे की सीढ़ियां लगाई जाती हैं। मंदिर में प्रवेश करने तथा दर्शन के बाद बाहर निकलने के लिए अलग-अलग द्वार बनाए जाते हैं।


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