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टीआरपी की इस होड़ ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया को ही सवालों के घेरे में ला दिया

टीआरपी की यह होड़ सभी समस्याओं की जड़ है। अब आवश्यकता है कि टीआरपी की इस अंधी दौड़ को छोड़कर न्यूज चैनलों का उद्देश्य दर्शकों तक जरूरी खबरें और सूचनाएं पहुंचाना होना चाहिए न कि मनमर्जी की खबरें दिखाना और ये खबरें रिसर्च और ग्राउंड रिपोर्टिंग पर आधारित होनी चाहिए

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 09:55 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 09:55 AM (IST)
टीआरपी की इस होड़ ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया को ही सवालों के घेरे में ला दिया
टीआरपी की इस होड़ ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया को ही सवालों के घेरे में ला दिया है।

रंजना मिश्र। टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) की होड़ ने आज न्यूज चैनलों की पत्रकारिता को निचले स्तर पर ला दिया है। अब तमाम न्यूज चैनलों पर सनसनी फैलने वाली खबरें और डिबेट के रूप में हो-हल्ला ही देखने-सुनने को मिलता है। सभी यह दावा करते हैं कि हम ही नंबर वन हैं। अभी हाल ही में देश के दो बड़े न्यूज चैनलों पर टीआरपी से छेड़छाड़ करने के आरोप लगे हैं। टीआरपी की इस होड़ ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया को ही सवालों के घेरे में ला दिया है।

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न्यूज चैनलों की छवि सुधारने के उद्देश्य से हर हफ्ते गुरुवार के दिन टीआरपी जारी करने वाली संस्था बार्क (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) ने यह घोषणा की है कि अगले कुछ हफ्तों तक अलग-अलग न्यूज चैनलों की टीआरपी के आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे। इनमें हिंदी न्यूज चैनल, इंग्लिश न्यूज चैनल, बिजनेस न्यूज चैनल और क्षेत्रीय भाषाओं के सभी न्यूज चैनल शामिल हैं।

बार्क का कहना है कि इस दौरान उनकी टीम टीआरपी मापने के मौजूदा मानदंडों की समीक्षा करेगी और जिन घरों में टीआरपी मापने वाले मीटर लगे हैं, वहां हो रही किसी भी प्रकार की धांधली और छेड़छाड़ को रोकने की कोशिश करेगी। अब सवाल यह उठता है कि दो से तीन महीनों तक न्यूज चैनलों की टीआरपी की गतिविधियों को रोककर इलेक्ट्रॉनिक न्यूज मीडिया को साफ सुथरा करने की जो कोशिश की जा रही है, क्या वह सच में कामयाब होगी? मालूम हो कि जिस चैनल की टीआरपी जितनी ज्यादा होती है, उसे उतने ही ज्यादा और महंगे विज्ञापन मिलते हैं। देश के केवल 44 हजार घरों में ही टीआरपी मापने के मीटर लगे हैं तो सवाल यह भी है कि केवल इतने घरों में लगे हुए टीआरपी मापने के मीटर पूरे देश की टीआरपी कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?

आरोपों के मुताबिक इन घरों में से कुछ घरों को कुछ रुपये देकर टीआरपी के आंकड़ों से छेड़छाड़ की गई है।इन दिनों अधिकांश न्यूज चैनल डिबेट अधिक दिखाते हैं। आजकल ग्राउंड रिपोर्ट न्यूज चैनलों से धीरे-धीरे गायब ही होती जा रही है, क्योंकि अब कोई न्यूज चैनल ग्राउंड रिपोìटग में मेहनत और संसाधन नहीं खर्च करना चाहता और न ही अपने संवाददाताओं को बाहर भेजना चाहता है। न्यूज रूम में बैठे प्रोग्राम एडिटर और पत्रकारों के दिमाग में न्यूज बनाते समय केवल एक ही बात ध्यान में रहती है कि कौन-सा प्रोग्राम और न्यूज ज्यादा टीआरपी लाएगी।

टीआरपी की यह होड़ ही सभी समस्याओं की जड़ है। अब आवश्यकता है कि टीआरपी की इस अंधी दौड़ को छोड़कर न्यूज चैनलों का उद्देश्य दर्शकों तक जरूरी खबरें और सूचनाएं पहुंचाना होना चाहिए, न कि मनमर्जी की खबरें दिखाना और ये खबरें रिसर्च और ग्राउंड रिपोर्टिंग पर आधारित होनी चाहिए, यही वास्तविक पत्रकारिता का सच्चा धर्म और उद्देश्य है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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