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राम मंदिर के अवशेष खोजने में इस पुरातत्वविद की थी अहम भूमिका, खोजे थे महत्वपूर्ण तथ्य

अयोध्या भगवान राम की ही जन्मभूमि है इसका प्रमाण हाईकोर्ट में डॉ. अरूण शर्मा ने ही पेश किया था।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 05:16 PM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 05:16 PM (IST)
राम मंदिर के अवशेष खोजने में इस पुरातत्वविद की थी अहम भूमिका, खोजे थे महत्वपूर्ण तथ्य
राम मंदिर के अवशेष खोजने में इस पुरातत्वविद की थी अहम भूमिका, खोजे थे महत्वपूर्ण तथ्य

रायपुर, संदीप तिवारी। देश के सबसे चर्चित अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दौरान जो तथ्य सबसे मजबूत आधार बने उसमें छत्तीसगढ़ की अहम भूमिका है। भगवान श्री राम का ननिहाल कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में पुरातत्वविद और खुदाई दल के सदस्य पद्मश्री डॉ. अरुण शर्मा इस प्रकरण में मुख्य गवाह रहे।

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(पुरातत्वविद और खुदाई दल के सदस्य पद्मश्री अरुण शर्मा द्वारा 'जागरण' को बताई गई जानकारी के आधार पर)

अयोध्या भगवान राम की ही जन्मभूमि है इसका प्रमाण हाईकोर्ट में डॉ. अरूण शर्मा ने ही पेश किया था। उनकी मांग पर ही यहां खुदाई करवाई गई थी। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों के तर्क के बाद कोर्ट ने यहां खुदाई के लिए इजाजत दी थी। यहां से मिले शिलालेख और मंदिर के अवशेष ही पूरे फैसले में प्रमुख आधार बने हैं। कोर्ट को डॉ. शर्मा ने बताया था कि अयोध्या में मंदिर था। मंदिर के 84 पिलर थे। दीवारों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां गढ़ी गईं थीं। मंदिर में 700 साल पुराना शिलालेख मिला था, जो इस बात का पुख्ता प्रमाण देता है कि मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।

छत्तीसगढ़ में राम का ननिहाल

ऐसा दावा है कि चंदखुरी भगवान राम की मां कौशल्या का मायका है। देश में उनका एकमात्र मंदिर यहां है। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ राम भगवान का ननिहाल हुआ। ग्रंथों में इस बात का भी उल्लेख है कि लव-कुश का जन्म सिरपुर (जिला महासमुंद) स्थित तुरतुरिया में हुआ। राम वन गमन मार्ग छत्तीसगढ़ से ही जाता है, दंडकारण्य भी छत्तीसगढ़ में ही है। अगर इन सभी तथ्यों को माना जाए तो छत्तीसगढ़ से भगवान श्रीराम का गहरा युग-युगांतर का नाता है।

हिंदू परिषद के अध्यक्ष के प्रस्ताव पर टीम में हुए थे शामिल

डॉ. अस्र्ण शर्मा कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि रामलला पक्षकार रहे और वे इसके प्रमुख गवाह। उन्होंने बताया कि भारतीय पुरातत्वविद् विभाग से रिटायर होने के बाद विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल ने 2003 में मुझसे बातचीत की थी। उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि धर्म के नाम पर चल रहे इस केस के रहस्य को सुलझाने में मदद करें।

कोर्ट में शर्मा ने न्यायाधीश के सामने रखा था सवाल

डॉ. शर्मा ने बताया कि' मैंने कहा कि धर्म के नाम से केस चल रहा है तो मैं जरूर सहयोग करूंगा। मैं मुख्य गवाह बना। पहले मैंने कोर्ट में कहा कि बाबरी मस्जिद केस चला रहे हैं तो आप हमें बताइए कौन सी मस्जिद है ? यहां मुख्य न्यायाधीश रफात आलम थे, मैंने उनसे पूछा कि मस्जिद क्या होती है? तो उन्होंने बताया कि तीन गुंबज होती है एक मीनार होती है, बजू टैंक होती है। तब मैनें कहा यहां गुंबज कहां है और मीनार कहां है? मैंने कहा था नमाज पढ़ी ही नहीं गई। अधूरे निर्माण की वजह मजिस्द पाक नहीं है ऐसे में उसे ना-पाक कहा जाता था।"

मिले शिलालेखों में थे मंदिर के अवशेष

यहां तीन स्तर में हुआ था मंदिर का निर्माण हुआ था। शुरुआत ईसा पूर्व तीसरी सदी में हुई। उसके बाद 1339 में, जबकि 1429 में बाबर भारत आया था। शर्मा कहते हैं कि बाबर कभी अयोध्या नहीं आया, उसका सेनापति आया था। बाद में मस्जिद यहां मंदिर के ईंटों से ही इसे बना दिया गया था। जहां रामलला बैठे थे वह जगह भी बताया था। वाद में फिर वाद-विवाद होने लगा है। उन्होंने बताया कि दोनों पक्षों के राजी होने के बाद कहा गया था कि खुदाई करके देख लिया जाए कि यहां क्या था ? खुदाई की जिम्मेदारी भारत की प्रमुख संस्था भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संभाली। रिपोर्ट में आ गया है कि यह मंदिर ही थी और कमेटी बनाई गई। कमेटी की रिपोर्ट को मानना और हाईकोर्ट में हिंदुओं के पक्ष में निर्णय हुआ। इसके बाद मुसलमानों ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

रायपुर के चंगोराभाठा में रहने वाले हैं डॉ. शर्मा

रायपुर के चंगोराभाठा में रहने वाले डॉ. शर्मा कहते हैं कि इतना संतुलित निर्णय कोई और हो ही नहीं सकता है। मैंने खुद आर्केलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के साथ मिलकर छह माह तक खुदाई की। जो तथ्य सामने आए वे चौंकाने वाले थे। 2012 में मैंने लखनऊ हाईकोर्ट में कहा था 'अयोध्या में मस्जिद होने का दावा किया जा रहा है, वह थी ही नहीं। कभी नमाज पढ़ी ही नहीं गई। अधूरे निर्माण की वजह से उसे ना-पाक कहा जाता था।"

यह प्रमाण दिए थे डॉ. अरुण शर्मा ने कोर्ट के सामने 

पहला प्रमाण: 750 साल पहले गहरवाल राजा ने राम मंदिर का निर्माण करवाया था। खोदाई में मिला शिलालेख सबसे बड़ा प्रमाण है। इसलिए श्रीराम मंदिर था।

दूसरा प्रमाण: मंदिर तोड़ा गया, लेकिन मस्जिद बनाने के लिए मंदिर की ही नींव को उपयोग में लाया गया था। इसलिए यहां श्रीराम का अयोध्या था।

तीसरा प्रमाण: मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई, लेकिन मस्जिद के चार कोनों में चार मीनारें होना आवश्यक है, वह नहीं थी। बजू टैंक भी नहीं पाया गया। इसलिए यह हिंदू आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है।

चौथा प्रमाण: बाबर कभी अयोध्या नहीं आया, उसका सेनापति आया था। जिस मस्जिद की बात कही जा रही है, उसकी दीवारों पर मूर्तियां जड़ी हुई हैं। इसमें 84 पिलर पाए गए हैं। इसलिए यह राम जन्मभूमि है।

(जैसा 'जागरण" को पुरातत्ववेत्ता और खुदाई दल के सदस्य पद्मश्री अरुण शर्मा ने बताया।)


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