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इंसानियत बड़ी या सियासत : ह से हिंदू, म से मुसलमान, हम यानी हिंदुस्तान...

सावन का आयोजन हो या फिर महाशिवरात्रि बकरीदी मदरसे से छुट्टी लेकर यहां शिव की सेवा में रमे नजर आते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 27 Feb 2020 08:53 AM (IST)Updated: Thu, 27 Feb 2020 12:36 PM (IST)
इंसानियत बड़ी या सियासत : ह से हिंदू, म से मुसलमान, हम यानी हिंदुस्तान...
इंसानियत बड़ी या सियासत : ह से हिंदू, म से मुसलमान, हम यानी हिंदुस्तान...

दिलीप सिंह, अमेठी। भजन गाने कभी मंदिर में जब रसखान आते हैं, मंजर देखने ऐसा वहां भगवान आते हैं। फिरकापरस्ती उस गांव को छू नहीं सकती, बनाने राम की मूरत जहां रहमान आते हैं...। उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के पीढ़ी गांव में ऐसा मंजर तब सजता है जब लंबी सफेद दाढ़ी और सिर पर इस्लामी टोपी पहने बकरीदी शिव मंदिर में आते हैं। इस मंदिर का निर्माण उन्होंने बालसखा कृष्णदत्त तिवारी के संग मिलकर कराया है। इसलिए चाहे सावन का आयोजन हो या फिर महाशिवरात्रि, बकरीदी मदरसे से छुट्टी लेकर यहां शिव की सेवा में रमे नजर आते हैं। ऐसे किसी भी अवसर पर अमेठी के इस रसखान को यहां शिव का गुणगान करते देखा जा सकता है।

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कृष्णदत्त भी बकरीदी के साथ ईद आदि त्योहारों की खुशी साझा करते हैं। यह दोस्ती आज की नहीं बल्कि 75 साल पुरानी है। 82 साल के बकरीदी और 85 के कृष्णदत्त की मित्रता इलाके में मिसाल है। ये बालसखा साझा संस्कृति की उस विरासत की झलक देते हैं, जिस पर देश टिका हुआ है। श्रद्धालुओं के सहयोग और इस वयोवृद्ध जोड़ी की मेहनत से गांव के प्राचीन तपेश्वरनाथ स्थान पर आज भव्य मंदिर खड़ा है। कृष्णदत्त इसकी देखभाल करते हैं। वैसे तो बकरीदी यहां गाहे-बगाहे आते रहते हैं, लेकिन खास मौकों पर वह अनिवार्य रूप से मौजूद होते हैं। महाशिवरात्रि का मेला हो या सावन में शिवभक्तों का रेला, इनके बीच बड़ी दाढ़ी और टोपी में बकरीदी बरबस ही सबका ध्यान खींच लेते हैं।

बकरीदी का अंदाज मुकम्मल सूफियाना है। एक ओर वह मंदिर के हर आयोजन में शिरकत करते हैं तो दूसरी ओर रायबरेली के सलोन स्थित इदार-ए-अशरफिया में बच्चों को दीनी तालीम देते हैं। वह भी बिलकुल मुफ्त। घर पर पत्नी के अलावा इकलौती बिटिया के बेटा-बेटी रहते हैं। इनका पालन-पोषण भी करते हैं। मेहनत की कमाई पर भरोसा है, जिसके लिए बुढ़ापे में भी सक्रिय रहते हैं। मजहबी रस्मो-रिवाज संपन्न कराने के एवज में जो कुछ मिल जाता है, उसी से घर चलता है। इसी कमाई का कुछ हिस्सा जोड़कर उन्होंने कृष्णदत्त के साथ मिलकर शिव मंदिर का निर्माण कराया।

हम हैं तो हिंदुस्तान है... : इन दिनों सीएए के नाम पर सांप्रदायिक ताकतें हिंदू- मुस्लिम के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने में जुटी हैं। बकरीदी और कृष्णदत्त इस पर दुख जताते हुए प्रदर्शन के नाम पर हो रही हिंसा को उग्रवाद बताते हैं। कहते हैं, यह सब फिरकापरस्त नेताओं की साजिश है। नफरत की आग पर सियासी रोटी सेंकने की कोशिश हो रही है। जरूरत है कि लोग इनके बहकावे में न आएं। दीन, धर्म या दुनिया से इनका कोई लेना-देना नहीं है। धर्म और दीन की पहली सीढ़ी मुहब्बत है, जिसमें हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं। अपनी दोस्ती पर दोनों कह पड़ते हैं- हम हैं तो हिंदुस्तान है...। फिर हम का मतलब समझाने लगते हैं- ह से हिंदू, म से मुसलमान। ह पहले है यानी हिंदू बड़े भाई और म बाद में मतलब मुस्लिम छोटे भाई की भूमिका में हैं। दोनों का मेल ही हिंदुस्तान को दुनिया से अलग और खास बनाता है।

कृष्णदत्त तिवारी, पुजारी ने बताया कि मैं और बकरीदी बचपन के साथी हैं। हम दोनों की मेहनत और गांव के श्रद्धालुओं के सहयोग से तपेश्वरनाथ स्थान पर भव्य मंदिर बनकर तैयार हो चुका है।

बकरीदी, मदरसा शिक्षक ने बताया कि ईश्वर एक है। हर कोई उसे अपनेअपने तरीके से मानता- पूजता है। हमने वही किया जो ऊपर वाले ने हमसे कराया। तपेश्वरनाथ धाम आकर मन को बहुत सुकून मिलता है।


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