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राजू बाई के पास हाथों का हुनर तो सुशीला का पास हिसाब-किताब, चला रहीं ‘पंचायत कैफे’

यह है रतलाम की पंचायत कैफे। महिलाओं का जीवन स्तर उठाने और समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना अंतर्गत शुरू किया गया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 11:57 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 11:58 AM (IST)
राजू बाई के पास हाथों का हुनर तो सुशीला का पास हिसाब-किताब, चला रहीं ‘पंचायत कैफे’
राजू बाई के पास हाथों का हुनर तो सुशीला का पास हिसाब-किताब, चला रहीं ‘पंचायत कैफे’

रतलाम, केके शर्मा। खेती और मजदूरी के लिए उन्होंने गाहे बगाहे ही गांव से बाहर कदम रखा और समाज ने उन्हें अब तक इसी सीमा में बांध रखा था। इनके घूंघट पर मत जाइए, ये सम्मान का पर्दा है। घर- परिवार, समाज-प्रशासन ने जरा सा भरोसा जताया और उन पांचों ने मिलकर कैफे शुरू कर दिखाया। सुबह किराना लाने से लेकर शाम तक सैकड़ों ग्राहकों के लिए चाय-काफी, नाश्ते का इंतजाम सबकुछ वे मिलकर करती हैं। शाम को कैफे बंद करने से पहले पक्का हिसाब-किताब भी बही खाते में दर्ज कर लेती हैं। अब कुशल व्यवसायी बन चुकी हैं ये ग्रामीण महिलाएं।

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यह है रतलाम की पंचायत कैफे। महिलाओं का जीवन स्तर उठाने और समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना अंतर्गत शुरू किया गया यह नवाचार चंद दिनों में ही लोकप्रिय हो उठा है। रतलाम के जिला पंचायत कार्यालय परिसर में पांच ग्रामीण महिलाओं द्वारा शुरू की गई इस ‘पंचायत कैफे’ को पांच महिलाएं मिलकर चला रही हैं। कैफे चलाने की जिम्मेदारी गांव के दो अलग-अलग महिला स्वयं सहायता समूह को दी गई है। जिला पंचायत ने महिलाओं को एक लाख 60 हजार रुपए का ऋण उपलब्ध कराया है।

राजू बाई के पास हाथों का हुनर तो सुशीला का पास हिसाब-किताब

करमदी आजीविका संगठन की स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी इन महिला सदस्यों को बुलाकर प्रशासन ने जब पूछा तो सभी कैफै चलाने के लिए तैयार हो गईं। जिनमें एक समूह की तीन तो दूसरे समूह की दो महिलाएं शामिल हैं। 28 साल की लक्ष्मी आठवीं पास हैं। वह अपनी तीन व छह साल की बेटी को सास के पास छोड़कर आती हैं। 45 वर्षीय कला और 42 वर्षीय लीला मकवाना पांचवीं तक पढ़ी-लिखी हैं। 45 वर्षीय राजूबाई पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन हाथों के हुनर से रसोई संभाल रखी है। 22 वर्षीय सुशीला मकवाना 12वीं पास हं, इसलिए हिसाब-किताब का जिम्मा इनके कंधों पर है। सभी सुबह साढ़े आठ बजे घर से निकलती हैं।

गांव से जिला पंचायत कार्यालय की दूरी लगभग तीन किमी है। रास्ते में उस दिन का किराना लेते हुए सुबह 9 बजे तक कैफे पहुंचती हैं। फिर शाम साढ़े पांच बजे तक कामकाज कर घर लौटती हैं। एक जनवरी से शुरूहुए इस पंचायत कैफे में चाय, पोहा, कचौरी, काफी, पूड़ी सब्जी सहित अन्य स्वल्पाहार भी मिलते हैं। टिफिन सेंटर भी शुरू कर दिया गया है। सुशीला बताती हैं कि रोजाना 75-100 ग्राहक आते हैं। अब सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ बाहर के लोग भी कैफे में आने लगे हैं।

रोजगार ही नहीं, समाज में पहचान भी दिलाई कामकाजी महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ऐसे समूहों का गठन किया गया है। रोजगार स्थापित करने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराया जा रहा है। महिला समूहों के माध्यम से महिलाओं को सिर्फ रोजगार ही नहीं दिलाया जा रहा है बल्कि समाज में उनकी पहचान भी बनाए जाने का लक्ष्य है।

संदीप केरकेट्टा, सीईओ जिला पंचायत, रतलाम


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