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Rising India: कोरोना संग जंग में खुद पड़े बीमार पर न मानी हार, ठीक हो फिर जिंदगियां बचाने में जुटे ये डॉक्टर्स

डॉक्टर को यूं ही भगवान का दर्जा नहीं दिया गया है। उनका समर्पण जज्बा और खुद तकलीफ सहकर डूबती सांसों का सहारा देना ही उन्हें आम इंसान से अलग करता है। वैश्विक महामारी के दौर में डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ जी-जान से लोगों की जान बचाने में जुटे हैं।

By Manish MishraEdited By: Published: Fri, 11 Dec 2020 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 11 Dec 2020 06:00 AM (IST)
Rising India: कोरोना संग जंग में खुद पड़े बीमार पर न मानी हार, ठीक हो फिर जिंदगियां बचाने में जुटे ये डॉक्टर्स
मेडिसिन विभाग के सीनियर रेजीडेंट डॉ. हिमांशु कपूर। जागरण

हंसराज सैनी, मंडी। डॉक्टर को यूं ही भगवान का दर्जा नहीं दिया गया है। उनका समर्पण, जज्बा और खुद तकलीफ सहकर डूबती सांसों का सहारा देना ही उन्हें आम इंसान से अलग करता है। वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर में जहां अपने भी साथ छोड़ रहे हैं, वहीं डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ जी-जान से लोगों की जान बचाने में जुटे हैं। मंडी जिले के नेरचौक स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कई डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ संक्रमण की चपेट में भी आए और इसे मात देकर दोबारा कर्तव्य के निवर्हन में जुट गए। आठ माह में इन्हें सात-सात बार आइसोलेट होना पड़ा, मगर ये पीछे नहीं हटे, डटे रहे मोर्चे पर। इनके सामूहिक प्रयासों से मेडिकल कॉलेज में करीब 750 मरीज कोरोना को मात देने में सफल रहे हैं।  

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आराम का समय कहां है... 

(सीनियर रेजीडेंट एवं सहायक नोडल अधिकारी डॉ. अक्षय मिन्हास। जागरण)

सीनियर रेजीडेंट एवं सहायक नोडल अधिकारी डा. अक्षय मिन्हास ने मार्च से फ्लू ओपीडी में मोर्चा संभाल रखा है। कोरोना संक्रमितों के शवों को वार्ड से शवगृह में शिफ्ट करवाने का दायित्व भी इनके पास है। सितंबर में कोरोना पॉजिटिव होने के बाद 17 दिन बाद दोबारा जांच कराई। रिपोर्ट नेगेटिव आने पर 18वें दिन से ड्यूटी ज्वाइन कर ली। संक्रमण के बाद बिना आराम किए काम पर लौटने के बारे में डा. अक्षय मिन्हास का कहना है यह वक्त आराम का नहीं, दोगुने जज्बे से कोरोना से जंग के लिए तैयार रहने का है। इस समय अस्पताल का काफी स्टाफ व डाक्टर भी कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। ऐसे में मरीजों को डॉक्टरों और कर्मचारियों की कमी का सामना न करना पड़े, इसलिए खुद से पहले अपने फर्ज के बारे में सोचा।  

पांच-पांच दिन 24-24 घंटे दी ड्यूटी  

(मेडिसिन विशेषज्ञ सहायक प्रोफेसर डा. रवि शर्मा। जागरण)

मेडिसिन विशेषज्ञ सहायक प्रोफेसर डॉ. रवि शर्मा ने आठ माह से कोविड अस्पताल में मोर्चा संभाल रखा है। स्टाफ की कमी की वजह से कोविड व सारी वार्ड में कई बार पांच-पांच दिन तक 24-24 घंटे ड्यूटी देनी पड़ी, मगर कभी भूख व नींद की परवाह नहीं की। 10 दिन ड्यूटी 10 दिन आइसोलेट रहने के बाद फिर ड्यूटी दी। कुछ दिन पहले वह भी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। संक्रमण से उबरने के बाद फिर ड्यूटी के लिए तैयार हैं। 

अपनों से महीने बाद मुलाकात

मेडिसिन विभाग के सीनियर रेजीडेंट डॉ. हिमांशु कपूर कोविड अस्पताल में मार्च में ड्यूटी देने वाले पहले चिकित्सक हैं। आठ माह में स्वजनों से मात्र आठ बार मिले हैं। वह भी सिर्फ उनका हालचाल जाने के लिए। कोविड व सारी वॉर्ड में ड्यूटी के बाद इनका समय कॉलेज के गेस्ट रूम के एक कमरे में बीत रहा है। सारी वॉर्ड में अचानक मरीज आने या कोविड वॉर्ड में किसी मरीज की तबीयत बिगड़ने पर रात भी जागकर काटनी पड़ रही है। सुबह आठ बजे कोविड वॉर्ड में जाने के बाद राउंड पूरा करने में पांच से छह घंटे का समय लग रहा है।   

11 संक्रमित गर्भवती की डिलीवरी में बने सहायक  

(एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. विकास जसवाल। जागरण)

एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. विकास जसवाल मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजीडेंट हैं। शुरू में जब डाक्टर भी कोरोना मरीज को छूने से कतरा रहे थे, तो उन्होंने पहाड़ जैसा हौसला दिखाया। कोरोना संक्रमित 11 गर्भवती महिलाओं का सीजेरियन प्रसव करवाने में मदद की। वह गंभीर मरीजों को वेटीलेंटर सपोर्ट में रखने में लगातार मोर्चा संभाल रहे हैं। गत दिनों कोरोना की चपेट में आ गए थे। दो बार फॉलोअप करवाने पर रिपोर्ट पॉजिटिव आई। आठ साल का बेटा भी संक्रमित है। अब डॉ. विकास जसवाल की रिपोर्ट नेगेटिव आ चुकी है। दोबारा मोर्चा संभालने के लिए तैयार हैं।  

नेरचौक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आरसी ठाकुर ने कहा कि मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने विकट हालात में भी कोरोना संक्रमितों की जान बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। इसके लिए पूरी टीम बधाई की पात्र है।

(जयराम ठाकुर, मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश)

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक को प्रदेश सरकार ने डेडिकेटिड कोविड अस्पताल का दर्जा दे रखा है। यहां सात जिलों के कोरोना संक्रमितों का उपचार हो रहा है। यहां से 850 से अधिक संक्रमित स्वस्थ होकर लौट चुके हैं। संस्थान के 50 चिकित्सक कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। विकट हालात में चिकित्सकों ने हौसला नहीं हारा है। कोरोना संक्रमित गर्भवती का पहला सफल सिजेरियन प्रसव कर संस्थान के चिकित्सकों ने नई राह दिखाई थी। इसके लिए सब लोग बधाई के पात्र हैं।


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