..तो इन कारणों से हुई वित्त मंत्रालय से जयंत सिन्हा की छुट्टी
कैबिनेट फेरबदल के दौरान वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे जयंत सिन्हा का मंत्रालय बदला गया तो राजनैतिक हल्कों में अलग-अलग चर्चाएं शुरू हो गईं।
नई दिल्ली (ब्यूरो)। धूम--ध़़डाके की बजाय अगर कोई चुपके से, मीडिया की नजरों से बचते हुए मंत्रालय का प्रभार लेने जाए तो क्या कहेंगे? या तो उक्त मंत्री असहज है या फिर कुछ सवालों से बचना चाहता है। हाई प्रोफाइल वित्त मंत्रालय से नागरिक उड्डयन में भेजे गए जयंत सिन्हा के साथ भी कुछ ऐसा ही है।
बुधवार को उन्होंने नए मंत्रालय में राज्यमंत्री का प्रभार संभाल लिया, लेकिन उससे पहले ही सूचना अधिकारियों को निर्देश दे दिया था कि मीडिया न आने पाए। दरअसल वह नहीं चाहते थे कि वित्त मंत्रालय में रहते हुए उन पर परोक्ष या प्रत्यक्ष जो आरोप लगे उनको लेकर सवाल किए जाएं। कहीं न कहीं वित्त मंत्रालय से उनकी विदाई के पीछे भी ये कारण रहे थे। उनका ब़़डबोलापन तो कुछ इस कदर ब़़ढ गया था कि हाल ही में एक कार्यक्रम में उन्होंने प्रधानमंत्री का नाम लेते हुए घोषषणा कर दी थी कि दस करो़ड़ करतादाओं को जो़ड़ने का लक्ष्य रखा गया है। दूसरे ही दिन मंत्रालय के अधिकारी को इसका खंडन करना प़़डा था। पर कुछ तथ्य तो इससे भी ब़़डे थे जो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर उनके खिलाफ गए। वह सीधे--सीधे हितों के टकराव से संबंधित था।
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कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की साइट पर भी इसकी झलक दिखती है। जयंत के वित्त मंत्रालय में आने के बाद से उनकी पत्नी पुनीता कुमार सिन्हा चार से पांच कंपनियों के बोर्ड में बतौर निदेशक शामिल की गई थीं। इनमें से कुछ कंपनियां सीधे--सीधे बैंकिंग और फाइनेंस से जु़डी थीं। वित्त मंत्रालय में रहते हुए जयंत बैंकिंग विभाग देख रहे थे। साथ ही जयंत की पत्नी विदेशी संस्थागत निवेशकों का काम भी देखती रही हैं।
सिन्हा ने अपने कार्यकाल में कई बार ऐसे निवेशकों के साथ भारत में निवेश ब़़ढाने संबंधी बैठकें कीं। इसलिए यहां भी उन पर हितों के टकराव को लेकर सवाल उठते रहे हैं। एक अन्य कंपनी जिसमें उनकी पत्नी बोर्ड में थीं उसे भी जयंत ने पेमेंट बैक का लाइसेंस दिया था। इतना ही नहीं झारखंड में यशवंत सिन्हा के एनजीओ को बैंकों ने सीएसआर के तहत 40 लाख रपए से ज्यादा की धनराशि दी थी। झारखंड में यह राजनीतिक मुद्दा भी बना था।
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