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बजट सत्र के बाद तेज होगी 'आप' और भाजपा के बीच सियासी लड़ाई

विधानसभा भंग कर सूबे में नए सिरे से चुनाव कराने की कोशिशों में जुटी आम आदमी पार्टी (आप) को सफलता भले नहीं मिली हो लेकिन आने वाले दिनों में राजधानी में उसके और भाजपा के बीच सियासी लड़ाई तेज होने की संभावना है।

By Edited By: Published: Sat, 05 Jul 2014 08:34 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jul 2014 10:42 AM (IST)
बजट सत्र के बाद तेज होगी 'आप' और भाजपा के बीच सियासी लड़ाई

नई दिल्ली (राज्य ब्यूरो)। विधानसभा भंग कर सूबे में नए सिरे से चुनाव कराने की कोशिशों में जुटी आम आदमी पार्टी (आप) को सफलता भले नहीं मिली हो लेकिन आने वाले दिनों में राजधानी में उसके और भाजपा के बीच सियासी लड़ाई तेज होने की संभावना है। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आप शहर के राजनीतिक माहौल को गरमाए रखने के पक्ष में है ताकि चुनाव होने पर सियासी फसल काटी जा सके। यह दीगर बात है कि गेंद भाजपा शासित केंद्र सरकार के पाले में है और दिल्ली में सियासत की दशा-दिशा केंद्र की हुकूमत ही तय करेगी।

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विधानसभा भंग करने की मांग को लेकर आप उपराज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक का दरवाजा खटखटा चुकी है। दूसरी ओर उसने सुप्रीम कोर्ट में भी अर्जी लगाई हुई थी। अदालत ने इस पूरे मामले को संवैधानिक पीठ को सौंप दिया है, लेकिन शहर के सियासी हलकों में चर्चा है कि पिछले कुछ दिनों से चुप्पी साधे रखने वाली आप अब सक्रिय है और वह भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी करने का कोई भी मौका नहीं चूकेगी। कहा यह भी जा रहा है कि केजरीवाल की सक्रियता वापसी की जी तोड़ कोशिश कर रही कांग्रेस के मंसूबों पर भी पानी फेरेगी।

दिल्ली की सियासत को लेकर तरह-तरह के कयासों का दौर जारी है। एक ओर चर्चा है कि भाजपा के नेतृत्व में कांग्रेस के छह विधायकों के समर्थन से सरकार बनेगी। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि सरकार बनने की संभावना कम है और नवंबर तक शहर में चुनाव कराए जा सकते हैं। एक तीसरा विकल्प यह भी है कि राष्ट्रपति शासन जारी रहे और अगले साल फरवरी से पहले यहां चुनाव करा दिए जाएं। दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की अवधि एक साल के लिए है और इसे एक साल के लिए बढ़ाया भी जा सकता है। इसी प्रकार दिल्ली विधानसभा को भी एक साल तक निलंबित स्थिति में रखा जा सकता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि यदि दिल्ली को केंद्र के शासन के अधीन ही रहना है तो फिर यहां विधानसभा बनाने की क्या जरूरत थी। लिहाजा, सूबे में नई सरकार का गठन अथवा चुनाव ही विकल्प है।

अब भाजपा शासित केंद्र सरकार और उसके प्रतिनिधि उपराज्यपाल को ही तय करना है कि दिल्ली किस ओर जाएगी। वैसे, संभावना जताई जा रही है कि संसद का बजट सत्र समाप्त होने के बाद राजधानी की राजनीति में उबाल देखने को मिलेगा।

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