जौनपुर में भी है लखनऊ जैसा स्वर्ण जड़ित ताजिया
इमामबाड़ा की देख रेख करने वाले सैयद मुजीर अहमद बताते हैं कि माहे मुहर्रम की हर दूसरी तारीख को ताजिया को देखने के लिए इमामबाड़ा का दरवाजा खुलता है।
जौनपुर (सतीश सिंह)। लखनऊ इमामबाड़े में रखे स्वर्ण जड़ित ताजिया की ही तरह एक ताजिया जौनपुर स्थित मछलीशहर के जरी इमामबाड़े में भी है। लखनऊ के नवाब शुजाऊद्दौला की तबीयत बिगड़ी तो एक फकीर ने स्वर्ण जड़ित ताजिया बनवाने की सलाह दी। इसे महल में रखा जाना था। नवाब ने एक कारीगर को ताजिया बनाने का आदेश दिया। इसके लिए जो सोना दिया गया, कारीगर ने उसमें से कुछ सोना चुराकर वैसा ही दूसरा ताजिया अपने लिये भी बनाया। हालांकि यह बात छिप न सकी।
नवाब ने कारीगर को बुलवाया। पकड़े जाने के भय से कारीगर ने आधा-अधूरा बना दूसरा ताजिया लकड़ी के बक्से में बंदकर गोमती नदी में बहा दिया। यह बक्सा बहता हुआ जौनपुर पहुंचा। कुछ मल्लाहों ने देखा तो उसे बाहर निकाला, उसमें ताजिया देख सकते में आ गए। उस वक्त जिला जेल के जेलर व मछलीशहर निवासी मोहम्मद सज्जाद अली को इसकी जानकारी हुई। उन्होंने मल्लाहों से ताजिया मांगकर इसे जरी के इमामबाड़े भेजवा दिया। तब से सोने के पत्तल का बना यह आधा ताजिया इमामबाड़े में ही रखा है। मुहर्रम में यह सभी की आस्था का केंद्र होता है। इमामबाड़ा की देख रेख करने वाले सैयद मुजीर अहमद बताते हैं कि माहे मुहर्रम की हर दूसरी तारीख को ताजिया को देखने के लिए इमामबाड़ा का दरवाजा खुलता है।
पांच वर्ष पूर्व हो चुकी है चोरी
जरी के इमामबाड़े में स्वर्ण जड़ित ताजिया रखने की जानकारी धीरे-धीरे चारों ओर फैल चुकी थी। भनक चोरों को लगी तो वे इसके पीछे पड़ गए। पांच साल पहले चोरों ने इमामबाड़े से इसे चुराने का प्रयास किया। सफलता नहीं मिली तो वहां रखी लरी व फूलदान उठा ले गए। इस चोरी का पर्दाफाश पुलिस अभी तक नहीं कर सकी है। चोरी के बाद से इमामबाड़ा कमेटी सतर्क हो गई। सुरक्षा की दृष्टिकोण से आने-जाने वालों पर भी नजर रखी जाती है।
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