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अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही भारत की सबसे लंबी दीवार, जानें- खासियत

10-11वीं शताब्दी में कल्चुरी शासकों के हमले से बचने के लिए परमार वंश के राजाओं द्वारा इंटरलॉकिंग सिस्टम से बनवाई गई यह दीवार भारत की सबसे लंबी दीवार मानी गई है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 07:09 PM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 11:54 PM (IST)
अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही भारत की सबसे लंबी दीवार, जानें- खासियत
अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही भारत की सबसे लंबी दीवार, जानें- खासियत

अम्बुज माहेश्र्वरी, रायसेन। दुनिया की सबसे लंबी चीन की दीवार जैसी ही दीवार भारत में भी है। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के देवरी के पास गोरखपुर के जंगल से बाड़ी के चौकीगढ़ किले तक 15 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी यह दीवार करीब एक हजार साल पुरानी है। इसकी लंबाई 80 किमी है, लेकिन संरक्षण के अभाव में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है।

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10-11वीं शताब्दी में कल्चुरी शासकों के हमले से बचने के लिए परमार वंश के राजाओं द्वारा इंटरलॉकिंग सिस्टम से बनवाई गई यह दीवार भारत की सबसे लंबी दीवार मानी गई है। केंद्र और राज्य सरकार के कई प्रतिनिधि मंडल यूं तो इसे देखने को आए और इसके महत्व को लेकर बड़ी-बड़ी बातें बीते सालों में कर चुके हैं, लेकिन इसके संरक्षण और पर्यटन विस्तार को लेकर कोई ठोस पहल नहीं हुई।

नतीजतन, अब यह दीवार दिनों दिन जीर्ण-शीर्ण होती जा रही है। इस क्षेत्र में बिखरी पड़ी प्राचीन प्रतिमाओं को भी नहीं सहेजा जा सका है। उदयपुरा के पास देवरी कस्बे से लगे गोरखपुर गांव से सटे जंगल से शुरू होकर यह दीवार बाड़ी बरेली क्षेत्र में आने वाले चौकीगढ़ किले तक जाती है। भोपाल से गोरखपुर गांव की दूरी करीब 200 किमी है।

क्या है इतिहास

प्रदेश के जाने-माने पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास बताते हैं कि विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की पहाडि़यों पर सघन जंगलों में 10-11वीं शताब्दी के मध्य परमार कालीन राजाओं ने इसे बनवाया था। यह दीवार परमार कालीन राज्य की सुरक्षा दीवार रही होगी। गौरतलब है कि गोरखपुर गांव से आगे ही नरसिंहपुर और जबलपुर पड़ता है, जो उस दौर में कल्चुरी शासन के तहत ही आता था। उस समय परमार और कल्चुरी शासकों के मध्य कई युद्ध भी हुए।

लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों का इस्तेमाल

इस दीवार को बनाने में लाल बलुआ पत्थर की बड़ी चट्टानों का इस्तेमाल किया गया है। इसके दोनों ओर विशाल चौकोर पत्थर लगाए गए हैं। हर पत्थर में त्रिकोण आकार के गहरे खांचे बने हुए हैं, जिनसे पत्थरों की इंटरलॉकिंग की गई है। इसकी जुड़ाई में चूना, गारा का इस्तेमाल नहीं किया गया है। गोरखपुर से आठ किमी दूर मोघा डैम पर इस दीवार का काफी हिस्सा आज भी सुरक्षित है।

क्षेत्र में बिखरी हैं बेशकीमती मूर्तियां

गांव के ही एक आश्रम में रहने वाले सुखदेव महाराज बताते हैं कि पूरे क्षेत्र में प्राचीन बेशकीमती मूर्तियों के अवशेष इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। दीवार के आसपास भगवान शिव, विष्णु, भैरव और सूर्य के मंदिर भी मिले हैं। 10-11वीं सदी की कई बावड़ी, तालाब, मंदिर, तहखाने भी यहां हैं, जिनमें ज्यादातर जमींदोज हो चुके हैं। दीवार के सहारे बने कुछ परकोटे भी हैं।

कुंभलगढ़ किले की दीवार से दोगुनी लंबी

राजस्थान के मेवाड़ के कुंभलगढ़ किले के परकोटे की दीवार 36 किलोमीटर लंबी है, जो भारत की लंबी दीवार मानी जाती है, लेकिन रायसेन में मौजूद दीवार इससे दोगुनी से भी अधिक (80 किमी) है। बावजूद इसके, यह तथ्य कम ही लोगों की जानकारी में है।

बेहद महत्वपूर्ण है

-आपने जैसा बताया है, अगर वैसा है तो यह बेहद महत्वपूर्ण है। इस धरोहर के संरक्षण और विस्तार के लिए हम योजनाबद्ध तरीके से काम करवाएंगे।

- प्रहलाद सिंह पटेल, केंद्रीय पर्यटन मंत्री

ऐतिहासिक संपदा

जिले की ऐतिहासिक संपदा में यह बहुत महत्वपूर्ण है। जिले के लिए गौरव की बात है। जिला स्तर पर हम जो भी बेहतर कर सकते हैं, वो सभी किया जाएगा।

- उमाशंकर भार्गव, कलेक्टर रायसेन

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