...तो जिंबाब्वे में उथल-पुथल के पीछे है चीन
पिछले कुछ वर्षो में रॉबर्ट मुगाबे के प्रति चीन की तल्खी लगातार बढ़ती रही है। वर्ष 2008 की घटना ने आग में घी का काम किया।
जेएनएन, नई दिल्ली। जिंबाब्वे में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है। राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे की सत्ता को अस्थिर करने के पीछे उनके विश्वस्त मित्र देश रहे चीन का हाथ होने की बात कही जा रही है। पूरे राजनीतिक घटनाक्रम को अफ्रीकी देश के सेना प्रमुख जनरल कोंस्टांटिनो चिवेंगा की बीजिंग यात्रा से जोड़ कर देखा जा रहा है। चिवेंगा ने चीन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ली कछ्यांग और रक्षा मंत्री चांग वानक्वान से मुलाकात की थी। उनके आने के कुछ दिनों बाद ही राजनीतिक तनाव से गुजर रहे जिंबाब्वे की हालत और खराब हो गई। सेना ने मुगाबे को नजरबंद कर दिया।
मुगाबे स्वतंत्रता के बाद से ही सत्ता में बने हैं। चीन जिंबाब्वे में सबसे बड़ा निवेशक देश है। दोनों देशों के संबंध 1970 के दशक में मजबूत हुए थे जब पूर्व सोवियत संघ ने मुगाबे को हथियार देने से इन्कार कर दिया था। उस वक्त चीन ने मास्को की कमी पूरी की थी। बीजिंग ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता हासिल करने में जुटे मुगाबे के लड़ाकों को हथियार मुहैया कराने के अलावा उन्हें प्रशिक्षण भी दिया था। आजादी हासिल करने के एक साल बाद 1981 में बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने चीन की यात्रा की थी। रॉबर्ट मुगाबे इस साल जनवरी में चीन गए थे। उस दौरान चीनी प्रधानमंत्री कछ्यांग ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा था कि जिंबाब्वे में शांति-व्यवस्था बहाल न कर पाना उनकी सत्ता के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
हथियार की खेप रद करने से बिगड़े संबंध
पिछले कुछ वर्षो में रॉबर्ट मुगाबे के प्रति चीन की तल्खी लगातार बढ़ती रही है। वर्ष 2008 की घटना ने आग में घी का काम किया। दरअसल, चीन हथियारों की एक खेप जिंबाब्वे भेजने की तैयारी में था। विवाद के कारण उसे रद करना पड़ा था। इसके उपरांत चीन ने जिंबाब्वे को 'सीमित स्तर' के देश की श्रेणी में डाल दिया था। बीजिंग जिंबाब्वे में पिछले कुछ वर्षो से जारी राजनीतिक अस्थिरता के लिए मुगाबे को जिम्मेदार ठहराता है। चीन ने अफ्रीकी देश में अरबों डॉलर का निवेश किया है, लेकिन उथल-पुथल के कारण चीनी कंपनियां वहां नई परियोजना शुरू करने में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं।
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