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दिल्ली की ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़ पत्नी संग पहाड़ संवारने को गांव लौटे सुधीर

पहाड़ के घरों में कतारबद्ध बंद पड़े किवाड़ और बंजर खेतों में उग आई झाड़ियों ने एक नौजवान दंपती को इस कदर व्यथित किया कि महानगर की ऐशो-आराम भरी जिंदगी को छोड़ गांव लौट आया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 25 Jun 2018 09:47 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 12:42 PM (IST)
दिल्ली की ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़ पत्नी संग पहाड़ संवारने को गांव लौटे सुधीर
दिल्ली की ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़ पत्नी संग पहाड़ संवारने को गांव लौटे सुधीर

पौड़ी गढ़वाल [गणेश काला]। पहाड़ के घरों में कतारबद्ध बंद पड़े किवाड़ और बंजर खेतों में उग आई झाड़ियों ने एक नौजवान दंपती को इस कदर व्यथित किया कि महानगर की ऐशो-आराम भरी जिंदगी को छोड़ गांव लौट आया। यहां उसने न सिर्फ मिट्टी में हाथ डालकर पसीना बहाने का संकल्प लिया, बल्कि आसपास के इलाके में खुशहाली की नई पटकथा लिखने का भी आगाज कर दिया। इतना ही नहीं, वर्तमान में यह दंपती 21 बच्चों का माता-पिता बनकर उनका लालन- पालन भी कर रहा है।

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बात हो रही है दिल्ली में लाखों के पैकेज के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे उत्तराखंड स्थित पौड़ी जिले की चौबट्टाखाल तहसील के ग्राम डबरा निवासी सुधीर कुमार सुंद्रियाल व उनकी पत्नी हेमलता की। जिन्होंने मातृभूमि की खुशहाली के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके इस त्याग की उजली किरण अब देश ही नहीं, सात समंदर पार अमेरिका तक झिलमिलाने लगी है।

सुधीर के ट्रस्ट ‘फीलगुड’ (भलु लगद) को ऊना (उत्तरांचल एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका) और एसआइएफ (सेव इंडियन फॉर्मर्स) संस्थाओं का सहयोग मिल रहा है। इसी की परिणति है कि आज क्षेत्र के दर्जनों गांवों में सुधीर के वैज्ञानिक खेती का मॉडल अपनाया जाने लगा है। यह दंपती लोगों के सहयोग से स्वरोजगार के अलावा संस्कृति के संरक्षण और बच्चों के लिए उन्नत शैक्षिक माहौल तैयार करने का काम तो कर ही रहा है, पर्यावरण संरक्षण की अनूठी मिसाल भी पेश कर रहा है।

दिल्ली में बड़े पैकेज पर नौकरी कर पत्नी के साथ आराम की जिंदगी जी रहे सुधीर सितंबर 2014 में गांव वापस लौटे। इसके बाद उन्होंने पंतनगर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय जाकर वहां दस दिन तक पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी ली।

फिर वह श्रीनगर गए और वहां केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के हैप्रिक विभाग से औषधीय पौधों की जानकारी प्राप्त की। लौटते ही सुधीर ने छोटे पॉवर ट्रेलर के जरिये गांव की किस्मत बदलने की मुहिम शुरू कर दी। नौ जनवरी 2015 को उन्होंने ‘फीलगुड’ नाम से एक चेरिटेबल ट्रस्ट रजिस्टर्ड कराया, जिसका कार्य कृषि, शिक्षा, पर्यावरण, जल संरक्षण, स्वरोजगार, पलायन व बंजर खेत आबाद करो मिशन के प्रति लोगों को जागरूक करना था।

हेमलता संभालती हैं अहम जिम्मेदारी

शहर में हुई परवरिश के बावजूद आज सुधीर की पत्नी हेमलता गांव में घास काटने से लेकर गाय का दूध निकालने तक का कार्य स्वयं करती हैं। इसके अलावा वह सब्जी उत्पादन से लेकर पावर ट्रेलर चलाने का कार्य भी कर रही हैं। वर्तमान में सुधीर व उनकी टीम क्षेत्र में दस स्थानों पर कृषि एवं बागवानी का कार्यक्रम चला रही है। इसके तहत सब्जी, मसाला, फलपट्टी आदि पर कार्य किया जा रहा है। टीम प्रत्येक रविवार को दो घंटे काश्तकारों को कृषि तकनीकी संबंधी जानकारियां भी देती है।

21 बच्चों के माता-पिता हैं दोनों

2004 में दांपत्य जीवन में बंधे सुधीर व हेमलता ने अपनी कोई संतान न होने पर जरूरतमंद बच्चों को गोद लेने का संकल्प भी लिया है। चार साल पहले दिल्ली का शानदार आशियाना बेचकर जरूरतमंदों का सहारा बनने गांव लौटा यह दंपती वर्तमान में 21 बच्चों के माता-पिता का दायित्व निभा रहा है।

देह दान कर चुका है दंपती

सुधीर व हेमलता ने जीवन के बाद भी दूसरे के दिलों में धड़कने के साथ ही उनके जीवन की मुस्कान लौटाने के लिए अपनी देह को एम्स (दिल्ली) में दान कर दिया है।

गांव में विलेज-एजुकेशनल टूर

सहयोगी संस्था ऊना और एसआइएफ के सहयोग से दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रछात्राओं ने क्षेत्र के बच्चों के बौद्धिक विकास को लेकर दो बार दस-दस दिन के कैंप किए। इस दौरान छात्र-छात्राओं को ग्राम गवाणी में ठहराया गया, ताकि विलेज टूरिज्म को बढ़ावा मिल सके। ग्रामीणों ने छात्र-छात्राओं को उत्तराखंड की संस्कृति का दर्शन भी कराया।

ग्रामीणों के लिए बनाई संपन्न लाइब्रेरी

ग्राम गवाणी में ‘फीलगुड’ ट्रस्ट ने एक आधुनिक लाइब्रेरी भी स्थापित की है। इसमें बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं, किसानों व बेरोजगारों के लिए विभिन्न प्रकार की पत्र- पत्रिकाएं, पुस्तकें व अखबार उपलब्ध हैं। इस सेंटर में बच्चों के मोटिवेशन और किसानों को खेती की उन्नत तकनीकी बताने के लिए प्रोजेक्टर लगाए गए हैं। 


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