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कार्बन सोखने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मशीन हुई चालू, छूमंतर होगा जलवायु परिवर्तन का असर

ग्रीन हाउस गैसें ग्लोबल वार्मिग की वजह बनी हुई हैं जिसके प्रतिकूल असर जलवायु परिवर्तन से दुनिया तबाही का मंजर देखने को अभिशप्त है। यानी अच्छे दिन फिर से लौटेंगे। हर साल करीब 4000 टन कार्बन सोखने की इसकी क्षमता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 11 Sep 2021 02:20 PM (IST)Updated: Sat, 11 Sep 2021 02:20 PM (IST)
कार्बन सोखने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मशीन हुई चालू, छूमंतर होगा जलवायु परिवर्तन का असर
कार्बन डाई आक्साइड को भूमिगत करके दबा दिया जाता है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। दुनिया में मौजूदा दौर की सबसे बड़ी आपदा ग्लोबल वार्मिग और उससे उपजी तमाम विपदाओं से मुक्ति का हथियार मिलने का दावा किया जा रहा है। आइसलैंड में स्थापित की गई कार्बन सोखने की सबसे बड़ी मशीन को विज्ञानियों ने चालू कर दिया है। उनका दावा है कि इस मशीन से वायुमंडल में दिनोंदिन बढ़ रही ग्रीन हाउस गैसों को अवशोषित करके खत्म किया जा सकेगा। 

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विशालकाय मशीन : ओरका नामक इस मशीन को ज्यूरिख की कंपनी क्लाइमवर्क्‍स ने आइसलैंड के हेलीशेवाई पावर स्टेशन पर स्थापित किया है। 1.5 करोड़ डालर (110 करोड़ रुपये) की लागत से तैयार इस मशीन ने बुधवार से काम करना शुरू किया है।

सालाना सोखेगी 4000 टन कार्बन : यह मशीन सीधे वायुमंडल से कार्बन डाई आक्साइड को सोखेगी। हर साल करीब 4000 टन कार्बन सोखने की इसकी क्षमता है। कार्बन की यह मात्र 790 कारों द्वारा साल भर किए जाने वाले उत्सर्जन के बराबर है।

ऊंट के मुंह में जीरा : हालांकि कार्बन सोखने की दुनिया की सबसे बड़ी मशीन होने के बावजूद भी इस दिशा में यह कदम ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार पिछले साल दुनिया में कुल कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन 34.7 अरब टन था। इस लिहाज से मशीन का अवशोषण कुल उत्सर्जन का बहुत मामूली हिस्सा साबित होगा।

उम्मीदें कायम : वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ऐसी मशीनों का सघन जाल दुनिया में खड़ा कर दिया जाए तो जल्द ही हम फिर से पुरानी दुनिया में लौट सकते हैं।

ऐसे करती है काम : ओरका में धातु के वायु शुद्ध करने वाले कई उपकरण लगे हैं जो पंखों की मदद से वहां के वायुमंडल में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों को अवशोषित करते हैं। गैस को बाहर निकालने से पहले इसे केमिकल फिल्टर से गुजारा जाता है। इसके बाद कार्बन डाई आक्साइड को भूमिगत करके दबा दिया जाता है।

भूमिगत कार्बन का इस्तेमाल : वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया के लिए खतरनाक बनी हुई कार्बन डाई आक्साइड को स्थायी रूप से जमीन की बहुत गहराई में दबाया जा सकता है। या इससे ईंधन, केमिकल, बिल्डिंग मैटेरियल और अन्य उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।

डायरेक्ट एयर कैप्चर (डीएसी) : अपने नाम के अनुरूप ही यह तकनीक काम करती है। विशालकाय पंखे वायुमंडल की हवा को जलीय विलयन से गुजारते हैं जहां कार्बन डाई आक्साइड को सोख लिया जाता है। इस अवशोषित कार्बन को गर्म करके या अन्य रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा कार्बन के अन्य उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।


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