Analysis: कानून ही नहीं सोच भी बदलनी होगी
देश में जिस तरह से स्वच्छता अभियान छेड़ा गया ठीक वैसा ही एक अभियान दुष्कर्म के विरोध में भी छेड़ा जाना चाहिए
नई दिल्ली [देवेंद्रसिंह सिसौदिया]। एक बार फिर पूरा देश दुष्कर्म की चर्चा में व्यस्त है। अखबार खबरों से भरे पड़े हैं, फेसबुक वाट्सएप जैसे सोशल मीडिया पर पोस्ट और टीका-टिप्पणियों की प्रतिस्पर्धा लगी हुई है, चैनलों पर तर्क-कुतर्क दागे जा रहे हैं, मोमबत्तियों की आग में राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं।
दिल्ली के बर्बर निर्भया कांड के बाद लोगों में बड़ी उम्मीद जागी थी कि कानूनन पक्के बंदोबस्त हो गए हैं अब देश में कोई दुष्कर्म की घटना नहीं होगी। किंतु अफसोस ऐसा कुछ नहीं हुआ। दुष्कर्म की संख्या और बच्चियों के साथ र्दंरदगी निरंतर बढ़ती ही चली जा रही है। कई लोग तर्क दे रहे हैं कि इस संबंध में कानून को और कड़ा किया जाना चाहिए। सवाल है कि क्या सिर्फ कानून बना लेने से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है?
इस संबंध में देश में पोस्को कानून पहले से ही मौजूद है, जिसमें दोषियों को कड़ी सजा के प्रावधान हैं। बावजूद इसके बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं। दरअसल बात यह है कि कानून का उचित अनुपालन नहीं हो रहा है। ऊपर से न्याय पाने की प्रकिया इतनी जटिल और लंबी है कि कोई उस तक जाना नहीं चाहता और जो जाता है वह उलझकर रह जाता है। हमारे देश में एफआइआर लिखवाना ही एक जंग जितने के बराबर है!
ऐसे में सर्वप्रथम पुलिस की सोच को बदलना होगा कि वह जनता की सेवा के लिए है न कि कुछ प्रभावकारी व्यक्तियों के लिए। यदि सही प्राथमिकी दर्ज हो जाती है तो आधा न्याय पाया जा सकता है। इसके साथ-साथ कानून में बदलाव लाते हुए जनता को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध की अवस्था में पीड़िता सीधे उस क्षेत्र के मजिस्ट्रेट/न्यायाधीश के पास पहुंचे और अपना बयान दे ताकि वे संबंधित थाना प्रभारी को बुलाएं और अपने समक्ष प्राथमिकी दर्ज कराएं।
ऐसा होने से पुलिस उन प्रभावकारी व्यक्तियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कर पाएगी जो किसी न किसी तरह प्राथमिकी दर्ज न होने देने में सफल हो जाते हैं। यदि यह संशोधन हो जाता है तो प्राथमिकी दर्ज न होने वाली एक बड़ी समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। यह भी सही है कि हम सड़कों पर आंदोलन कर या मोमबत्तियों का जुलूस निकाल कर इस समस्या से निजात नहीं पा सकते हैं। यदि इससे वास्तव में निजात पाना चाहते हैं तो उस एकत्रित भीड़ के हाथों में मोमबत्ती देकर यह शपथ दिलाई जानी चाहिए कि हम कभी ऐसा दुष्कृत्य नहीं करेंगे न किसी को करने देंगे और न ही सहयोग करेंगे।
जाहिर है इस समस्या का हल केवल लोगों की सोच में बदलाव लाकर ही किया जा सकता है। उदाहरण के लिए हमारे देश में दहेज विरोधी कानून भी बनाया गया, किंतु दहेज हत्याएं यदि बंद हुई हैं तो केवल लोगों की सोच बदलने से। ठीक वैसे ही हमें इस मामले में भी आम जन की सोच को बदलना होगा। उन्हें सु-संस्कार देने होंगे, समाज में फैल रहे दूषित वातावरण को बदलना होगा, इंटरनेट के दुरुपयोग पर रोक लगानी होगी। इसके लिए दुष्कर्म पीड़िता की मानसिक अवस्था, उसके परिवार की दुविधा को फिल्मों के माध्यम से आमजन तक पहुंचाना होगा। लोगों को यह महसूस कराना होगा कि इस पीड़िता के स्थान पर उनकी मां-बहन होती तो उन्हें किस दौर से गुजरना पड़ता। संभव है यह देख कर लोगों में दुष्कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाए और कुछ हद तक इस पर नियंत्रण लग जाए।
इसके साथ ही हर स्थान पर योग केंद्र खोले जाने चाहिए। यहां लोग इंद्रियों पर नियंत्रण पाना सीख सकेंगे ताकि उनके मन में दुष्कर्म जैसे विकार नहीं आएं। देश में जिस प्रकार से स्वच्छता अभियान छेड़ा गया ठीक वैसा ही एक अभियान दुष्कर्म के खिलाफ भी छेड़ा जाना चाहिए। यह अभियान सरकारी, सामाजिक, संस्थागत और पारिवारिक हर स्तर पर चलना चाहिए। इसके जरिये लोगों को दुष्कर्म से होने वाले व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक दुष्प्रभावों को बताया जाना चाहिए। इन बातों को भी आम जन के मन में बैठाया जाए कि वह लड़की उनके घर की भी हो सकती है।
एक ऐसा महौल बनाया जाना चाहिए कि दुष्कर्म शब्द और कृत्य ठीक वैसे ही हट जाए जैसे देश से गंदगी हटी है। हमें दुष्कर्म जैसा दुष्कृत्य हो ही नहीं उस दिशा में कदम उठाना होगा। इसके लिए सामाजिक और गैर शासकीय संस्थाओं को साथ लेना होगा। समय आ गया है कि हम केवल व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के भरोसे ही नहीं बैठे रहें, बल्कि हर व्यक्ति अपने स्तर पर इस दिशा में प्रयास जारी रखे। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री आम जन में बेहद लोकप्रिय हैं। उनका कहना लोग मानते हैं, स्वच्छता अभियान इस बात का उदाहरण है।
हम उनसे अपील करते हैं कि वह एक बार इस दिशा में लोगों में जागृति फैलाने के लिए दुष्कर्म उन्मूलन आंदोलन का आगाज करें ताकि यह आंदोलन जनजन तक पहुंच जाए। देश में दुष्कर्म किस आयु वर्ग के साथ किस आयु वर्ग के द्वारा, किस स्थान पर अधिक हो रहे हैं इस बात का विश्लेषण करने को कोई बहुत मतलब नहीं नजर आता है। ऐसा किसी के भी साथ हो रहा है बस गलत है। हमें सर्वप्रथम ऐसा एक वातावरण निर्मित करना चाहिए कि लोगों के दिमाग में ही यह न आए कि वे ऐसा दुष्कृत्य करें।
जाहिर है इसके लिए समाज के सभी आयु वर्ग, स्त्री-पुरुष, जाति-संप्रदाय और जिम्मेदार लोगों को संयुक्त प्रयास करने होंगे। केवल मोमबत्तियों के साथ जुलूस निकाल लेने से कुछ नहीं होने वाला। अब हर व्यक्ति को संकल्प दिलाने का समय आ गया है। बावजूद इसके घटना घटे तो व्यवस्था को दोषी करार देने के बजाय उस पीड़िता का साथ दें और प्राथमिकी दर्ज करने में सहयोग दें ताकि मामला न्यायालय की चोखट तक पहुंच जाए और न्याय मिल सके।
उस समय यह बिल्कुल न देखें कि वह आरोपी किस जाति या दल का है। अब सामाजिक बदलाव का समय आ गया है। हम सरकार पर दबाव बनाकर कानून कितने भी कड़े करवा लें दुष्कर्म की ऐसी घटनाएं फिर भी नहीं रुकेंगी जब तक कि लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी। इसमें समाज और परिवार बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
(प्रशासनिक अधिकारी, एलआइसी)