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नदी किनारे बसे गांव ने तालाबों से दी सूखे को मात, अब नहीं सूखतीं फसलें

गांव में तालाबनुमा गड्ढे किए तैयार और नदी के पानी से किया लबालब अब नहीं सूखतीं फसलें नदी के किनारे बसे होने के बावजूद पानी को तरसते थे किसान।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 08:40 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 08:41 AM (IST)
नदी किनारे बसे गांव ने तालाबों से दी सूखे को मात, अब नहीं सूखतीं फसलें
नदी किनारे बसे गांव ने तालाबों से दी सूखे को मात, अब नहीं सूखतीं फसलें

संदीप तिवारी, रायपुर। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले का बगदई गांव। यह गांव बगदई नामक नदी के किनारे बसा है, इसीलिए नाम भी बगदई है। लेकिन यहां के किसान पानी को तरसते थे। नहर आदि न होने के कारण नदी का पानी खेतों के काम नहीं आ पाता था। गांव के युवाओं ने मिलजुलकर समाधान खोजा। खेतों के किनारे तालाबनुमा कुछ गड्ढे तैयार कर नदी के पानी से इन्हें लबालब कर दिया। अब यहां के खेत सूखे से मुक्त हो गए हैं। गांव वाले खरीफ और रबी की फसलें ले रहे हैं, पलायन थम गया है।

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पानी की का रोना रोने के बजाय इन ग्रामीण युवकों ने उपलब्ध संसाधनों का समुचित दोहन करने की जो जुगत भिड़ाई, वह प्रेरक है। राजधानी रायपुर से 95 किमी दूर स्थित बगदई नदी के किनारे बसे इस गांव के किसान सूखे की मार हर साल झेलते थे। इनके खेत तो बीमार हो ही रहे थे, लोग भी पलायन को बाध्य हो रहे थे। ऐसे में गांव के युवाओं ने सोचा कि क्यों न सभी मिलकर खेतों को हरा-भरा करने के लिए बगदई नदी के पानी को खेतों के लिए सहेजें।

इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से युवाओं ने खेतों के किनारे छोटे-बड़े गड्ढे खोदे, ठीक तालाब की तरह के, और इन्हें भरने के लिए नदी से गड्ढों तक नालियां भी बनाईं। अब गर्मियों में नदी भले ही सूख जाती है पर यहां बने तालाबनुमा ये गड्ढे सालभर भरे रहते हैं। इससे न सिर्फ खरीफ बल्कि रबी की फसल भी किसान आसानी से लेने लगे हैं। कुलमिलाकर यह कि हालात अब पूरी तरह बदल गए हैं। लोगों की आर्थिक स्थिति में हो के सुधार को सहज देखा जा सकता है।

700 की आबादी वाले गांव की किस्मत पलटने में बस एक महीने का समय और श्रमदान लगा। करीब दो साल पहले युवाओं की टोली ने ग्रामवासियों के साथ मिलकर एक महीने के भीतर बिना किसी सरकारी मदद के इस युक्ति को अंजाम दिया। ग्रामवासी चेतन पटेल, महादेव निषाद, सुखलाल यादव, खेलन निर्मलकर, रिंकू पटेल, महावीर निषाद और बाला बताते हैं कि पंचायत और ग्रामवासियों की मदद से गड्ढे तैयार किए गए। सभी ने मिलकर श्रमदान किया। इन गड्ढों में भरे जल का इस्तेमाल मछली पालन के लिए भी हो रहा है। गांव का महिला स्व सहायता समूह मछली पालन के लिए काम कर रहा है। अच्छी बात यह कि गांव के इर्दगिर्द भूजल स्तर भी बढ़ा है। सिंचाई के साथ-साथ गांव के ट्यूबवेल, कुएं आदि भी अब गर्मियों में सूखते नहीं हैं।

गांव में तालाबनुमा गड्ढे किए तैयार और नदी के पानी से किया लबालब, अब नहीं सूखतीं फसलें, नदी के किनारे बसे होने के बावजूद पानी को तरसते थे किसान, गांव के युवाओं ने मिलजुलकर निकाला समाधान।


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