Move to Jagran APP

देश में खत्म हो 'अल्पसंख्यक' और 'बहुसंख्यक' शब्द का इस्तेमाल, अंग्रेजों की रीति को बदलने की जरूरत

बिहार के वरिष्ठ नेता और संविधान सभा के सदस्य तजम्मुल हुसैन ने संविधान सभा में जोर देकर कहा था कि ‘हम अल्पसंख्यक नहीं हैं अल्पसंख्यक शब्द अंग्रेजों की खोज है। अंग्रेज यहां से चले गए इसलिए अब इस शब्द को डिक्शनरी से हटा दीजिए।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 11:13 AM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 11:13 AM (IST)
देश में खत्म हो 'अल्पसंख्यक' और 'बहुसंख्यक' शब्द का इस्तेमाल, अंग्रेजों की रीति को बदलने की जरूरत
हिंदुस्तान में कोई अल्पसंख्यक नहीं हम सब भारतीय हैं।(फोटो: प्रतीकात्मक)

अश्विनी उपाध्याय। संविधान दो शब्दों ‘सम’ और ‘विधान’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है समान विधान।‘कांस्टिट्यूशन’ का अर्थ है ‘विधान’। जिस प्रकार अंग्रेजी भाषा में ‘धर्म’ का कोई समानार्थी शब्द नहीं है, मजबूरी में ‘रिलिजन’ शब्द का उपयोग किया जा रहा है उसी प्रकार ‘संविधान’ का भी अंग्रेजी में कोई समानार्थी शब्द नहीं है इसलिए ‘कांस्टिट्यूशन’ से काम चलाया जा रहा है। सच्चाई यह है कि धर्म और रिलिजन तथा संविधान और कांस्टिट्यूशन अलग अलग है। संविधान के भावार्थ को अनुच्छेद 14, 15, 16 में और ज्यादा स्पष्ट किया गया है। अनुच्छेद 14 कहता है कि सभी भारतीय कानून की नजर में एक समान हैं और सभी भारतीयों को कानून का एक समान संरक्षण प्राप्त है। अनुच्छेद 15 कहता है कि जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और जन्मस्थान के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जाएगा और अनुच्छेद 16 कहता है कि नौकरियों में सभी भारतीयों को समान अवसर मिलेगा। इसी प्रकार अन्य जितने भी मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व हैं, वे सब समता, समानता और समरसता मूलक समाज की स्थापना करने का निर्देश देते हैं।

loksabha election banner

संविधान के अनुच्छेद 29-30 में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का जिक्र तो मिलता है लेकिन इसे परिभाषित नहीं किया गया है। संविधान सभा की बहस पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि अनुच्छेद 29 सभी भारतीयों को अपनी भाषा, शैली और परंपराओं के संरक्षण का अधिकार देता है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि किसी भी भारतीय नागरिक को धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर राज्य सरकार द्वारा संचालित या राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान में प्रवेश देते समय किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 30(1) कहता है कि अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थान का निर्माण करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार है। अनुच्छेद 30(2) कहता है कि केंद्र और राज्य सरकार शिक्षण संस्थानों को मदद देने में इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि वह संस्थान किसी भाषायी या धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित है लेकिन संविधान सभा की बहस से स्पष्ट है कि यह अनुच्छेद धार्मिक विभाजन की त्रसदी को देखते हुए अल्पसंख्यकों के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए बनाया गया था न कि अल्पसंख्यकों को अत्यधिक अधिकार देने के लिए।

अंग्रेजों ने ‘ बांटो और राज करो’ नीति के अंतर्गत अल्पसंख्यक बहुसंख्यक विमर्श को खूब बल दिया। 1899 में तत्कालीन जनगणना आयुक्त ने तो यह भी कह दिया कि भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं और सिख, जैन, बौद्ध और मुस्लिम अल्पसंख्यक। इसीलिए संविधान सभा में ‘अल्पसंख्यक’ मुद्दे पर जोरदार बहस हुई थी। 26 मई 1949 को संविधान सभा में आरक्षण पर बहस के दौरान अनुसूचित जातियों को आरक्षण देने के प्रश्न पर आम राय थी लेकिन धार्मिक आधार पर आरक्षण देने पर आम राय नहीं बन पाई। पंडित नेहरू ने भी कहा था कि पंथ/आस्था/मजहब/धर्म आधारित आरक्षण गलत है पर उस समय तक अल्पसंख्यक का मतलब मुसलमान हो चुका था।

संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 29-30 के तहत उन लोगों के लिए कुछ अलग से प्रावधान किया जो भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हैं लेकिन ‘अल्पसंख्यक’ को परिभाषित नहीं किया। संविधान निर्माताओं को अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रलय के गठन की जरूरत नहीं महसूस हुई थी लेकिन राजनीति को इसकी जरूरत थी, सन 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम बनाकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग बनाया गया। इस एक्ट में भी अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं तय की गई। इसी अधिनियम की धारा 2(सी) के तहत केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने का असीमित अधिकार है।

यह भी जानना रोचक है कि किसी जाति समूह को अनुसूचित जाति या जनजाति घोषित करने की विधि बहुत जटिल है और यह काम केवल संसद ही कर सकती है (अनुच्छेद 341-342) लेकिन किसी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने का काम सरकारी दफ्तर से भी हो सकता है। इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर 1993 को एक अधिसूचना के जरिये पांच समुदायों मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया। 2006 में अलग से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रलय शुरू किया गया और 2014 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक घोषित कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2006 में संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक होना चाहएि जैसे बयान से ‘अल्पसंख्यक’ का मतलब ही मुसलमान मान लिया था, लेकिन आज तक देश में अल्पसंख्यक कौन है यह तय नहीं हो पाया है। ‘अल्पसंख्यक’ की परिभाषा नहीं होने के कारण बड़े स्तर पर इसका दुरुपयोग हो रहा है।

आजादी के सात दशक बाद अब समय आ गया है कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आधार पर समाज का विभाजन बंद किया जाए अन्यथा दूसरा उपाय यह है कि अल्पसंख्यक की परिभाषा और राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा निर्देश तय हों और यह सुनिश्चित किया जाए कि केवल उसी समुदाय को संविधान के अनुच्छेद 29-30 का संरक्षण मिले जो वास्तव में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभावहीन हो और संख्या में नगण्य अर्थात एक फीसद से कम हों।

अदालत की खरी-खरी

2002 में टीएमए पई मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक की पहचान राज्य स्तर पर की जाए न कि राष्ट्रीय स्तर पर लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आजतक लागू नहीं किया गया। इसका दुष्प्रभाव यह है कि कई राज्यों में जो बहुसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल रहा है।

2005 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा था कि धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की अवधारणा देश की एकता और अखंडता के लिए बहुत खतरनाक है इसलिए जितना जल्दी हो सके, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का विभाजन बंद होना चाहिए। 2007 में पंजाब हाईकोर्ट ने पंजाब में सिखों का अल्पसंख्यक का दर्जा समाप्त कर दिया था और वह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

(लेखक-  सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यक आयोग कानून की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.