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कारगिल युद्ध में विजयंत थापर ने तोलोलिंग पर दिलाई थी सेना को अहम जीत

निश्चय इतना दृढ़ था कि महज 22 साल की उम्र में चांदनी रात में भी नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर तिरंगा फहरा दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 11:40 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 12:10 PM (IST)
कारगिल युद्ध में विजयंत थापर ने तोलोलिंग पर दिलाई थी सेना को अहम जीत
कारगिल युद्ध में विजयंत थापर ने तोलोलिंग पर दिलाई थी सेना को अहम जीत

नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। उसके माथे पर हमेशा विजय का टीका लगा। हौसला फौलादी तो दिल में प्रेम और करुणा। जीवन में अनुशासन और हर चुनौती को स्वीकार करने का माद्दा और उसे पूरा करने का जुनून। हम बात कर रहे हैं कारगिल शहीद कैप्टन विजयंत थापर की। जिनका नाम भारतीय सेना के गौरवशाली टैंक विजयंत के नाम पर रखा गया था। कारगिल युद्ध में सेना को पहली जीत दिलाने वाले भारत माता के इस अमर सपूत के अंदर कुछ कर गुजरने की चाहत थी। निश्चय इतना दृढ़ था कि महज 22 साल की उम्र में चांदनी रात में भी नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर तिरंगा फहरा दिया। भारत सरकार ने इस अमर बलिदानी को वीर चक्र से अलंकृत किया।

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नोएडा सेक्टर-29 में रह रहे पिता कर्नल (रिटायर्ड) वीएन थापर कहते हैं कि जब विजयंत लड़ाई के आखिरी पड़ाव में नॉल पहाड़ी पर गए तो वहां बहुत ज्यादा बमबारी हो रही थी। 120 तोपें भारत की ओर से गरज रहीं थीं तो इतनी ही तोपें पाकिस्तान की तरफ से भी। एक छोटे से क्षेत्र में इतनी ज्यादा गोलाबारी तो दुनिया में किसी युद्ध में नहीं हुई होगी। तोप का एक गोला विजयंत की टुकड़ी पर गिरा। कुछ जांबाज शहीद हुए। विजयंत अपनी टुकड़ी और घायलों को लेकर सुरक्षित जगह पर पहुंचे। 19 लोगों के साथ तोलोलिंग नाले की तरफ से दुश्मनों के पीछे गए और फिर उनके बीच से निकलकर अपनी कंपनी से मिले। इसी दौरान सूबेदार मानसिंह को एक गोले का हिस्सा लगा। वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे नॉल पहाड़ी पर नेतृत्व का पूरा जिम्मा विजयंत के कंधों पर आ गया। उन्होंने यह जिम्मेदारी अच्छे से निभाई।

...लेकिन कदम बढ़ते जा रहे थे

विजयंत ने 28-29 जून 1999 की दरम्यानी रात में नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहराया। इसके बाद थोड़ा आगे बढ़े तो दुश्मनों की मशीनगनें गोलियां उगल रहीं थीं, लेकिन विजयंत के कदम आगे ही बढ़ते जा रहे थे। इसी दौरान एक गोली विजयंत के माथे पर लगीं और वह हवलदार तिलक सिंह की बांहों में गिरकर शहीद हुए। जहां शहीद हुए वहां उनके साथियों ने मंदिर बनाया। जहां वॉर मेमोरियल बना है, वहां के हेलीपैड का नाम विजयंत हेलीपैड रखा गया।

विजयंत ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था

मां तृप्ता थापर बताती हैं कि घर का माहौल देश सेवा से ओतप्रोत था। कर्नल थापर की वजह से घर में अनुशासन था और यह जरूरी भी है क्योंकि जीवन में अनुशासन एक लक्ष्य की ओर ले जाता है। विजयंत ने भी अपना लक्ष्य तय कर लिया था। मेरा बेटा जितना वीर था उतना दयालु भी। अपनी पॉकेटमनी गरीबों को दे देता था। वह सच्चा देशभक्त था। स्पोट्र्स और एकेडमिक दोनों में अव्वल रहता था। स्वीमिंग में उसका कोई सानी नहीं था।

आइएमए में स्वीमिंग में गोल्ड मेडल लेकर आया था। वह चुनौतियों स्वीकार कर जीत कर दिखाता था। एक बार चंडीगढ़ में कर्नल थापर ने उससे कहा कि आप स्वीमिंग पूल में पचास की लेंग्थ नहीं कॉस कर सकते, इस पर रॉबिन (विजयंत) ने कहा कि चुनौती मत दीजिए। उसने पचास से ज्यादा लेंग्थ पूरी की। तृप्ता कहती हैं कि कोई भी काम हो उसे ईमानदारी से करना चाहिए। जज्बा होना चाहिए। तभी तो विजयंत के कदम बढ़ गए तो रुकने वाले कहां थे। महज 22 साल की उम्र में नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों की गोलियों की बौछारों के बीच भारत को जीत दिलाई।

यही तो असली नायक हैं

तृप्ता कहती हैं कि एक बार मेरी एक दोस्त विजयंत के लिए अमेरिका से टीशर्ट लाई थीं। उसमें अमेरिका का नक्शा था। विजयंत ने उसे पहनने से मना कर दिया था। उनमें गजब का देशप्रेम था, यही वजह है कि जब उन्हें कोई प्राइज मिलता था तो उसमें मेरा भारत महान लिखा होता था। आज के बच्चों से कहती हूं कि आप इन जांबाजों को यह अहसास जरूर कराते रहें कि उनके साथ पूरा देश खड़ा है। यही तो असली नायक हैं। विजयंत की यह करुणा ही तो थी कि जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में बच्ची रुखसाना का ख्याल रखने का वादा लिया था। उसके पिता को आतंकियों ने मार दिया था। यह बच्ची अपने पैरों पर खड़ी हो रही है।

लगता है कि विजयंत मेरे साथ चलते हैं

भाई विजेंद्र कहते हैं कि हम दोनों कई बातें साझा करते थे। हमारे बीच वॉर गेम्स होते थे। विजयंत भारतीय बनते थे और मुझे पाकिस्तान की तरफ से मोर्चा लेने को कहते थे। इसके बाद तो आप समझ ही सकते हैं कि वह मेरा क्या हाल करते रहे होंगे। वह कहते हैं कि मैं जब सुबह दौड़ने जाता हूं तो लगता है कि विजयंत मेरे साथ-साथ दौड़ रहे हैं।

बर्बाद बंकर पर किया था कब्जा

विजयंत थापर ने तोलोलिंग पर विजय दिलाई। यह कारगिल और ऑपरेशन विजय में उनकी यूनिट 2 राजपूताना राइफल्स की पहली जीत थी। विजयंत ने पाकिस्तानी पोस्ट बर्बाद बंकर पर कब्जा किया था। यह विजय सेना के लिए अहम थी। क्योंकि यहां से छिपकर दुश्मन सीधे सेना को सैनिकों को आपूर्ति होने वाली रसद को निशाना बना रहा था।

विजयंत थापर और विक्रम बत्रा ने एक ही स्कूल से की थी पढ़ाई

विजयंत ने बारहवीं चंडीगढ़ के उसी डीएवी स्कूल से की थी, जहां से कारगिल शहीद और परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा ने भी पढ़ाई की थी। विक्रम बत्रा उनसे दो साल सीनियर थे। विजयंत ने स्नातक (बीकॉम) दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज से किया।

जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आए ...कारगिल युद्ध के दौरान (बाएं से) कैप्टन विजयंत थापर, मेजर विवेक गुप्ता, मेजर आचार्य। यह फोटो खींची थी कैप्टन कैंगरूस ने। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के ये चारों जांबाज शहीद हो गए। विजयंत को वीर चक्र, मेजर विवेक, मेजर आचार्य और कैप्टन कैंगरूस को महावीर चक्र से अलंकृत किया गया था। 


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