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...जब दुनिया में जन-तंत्र के लिए उठे जनता के हाथ, UN की महापहल

बीते एक दशक में दुनिया के कई मुल्‍कों में लोकतंत्र की खातिर राजनीतिक आंदोलन हुए। इन मुल्‍कों की जनता सड़कों पर उतरी वहां के राजीनतिक परिदृष्‍य को बदलकर रख दिया।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 02:53 PM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 02:53 PM (IST)
...जब दुनिया में जन-तंत्र के लिए उठे जनता के हाथ, UN की महापहल
...जब दुनिया में जन-तंत्र के लिए उठे जनता के हाथ, UN की महापहल

नई दिल्‍ली [ जेएनएन ]। आज भी दुनिया के कई मुल्‍कों में लोकतंत्र की खातिर जन आंदोलनों का दौर और बहस जारी है। अगर बीते एक दशक की बात करें तो दुनिया के कई मुल्‍कों में लोकतंत्र के आंदोलन सफल हुए। इन मुल्‍कों में लोकतंत्र की स्‍थापना हुई। हालांकि, व्‍यवस्‍था के इस बदलाव में एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के कई मुल्‍क अभी बहुत पीछे हैं। यहां बीच-बीच में लोकतंत्र के लिए आवाज उठती रहती है। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने भी दुनिया में जन के तंत्र की स्‍थापना के लिए कई अहम कदम उठाए। संयुक्‍त राष्‍ट्र का मानना है कि मानवाधिकार के बगैर लोकतंत्र की कल्‍पना अधूरी है। इस दिशा में अंतरराष्‍ट्रीय लोकतंत्र दिवस एक मजबूत पहल माना गया। आइए जानते हैं, संयुक्‍त राष्‍ट्र की यह पहल कब से शुरू हुई। दुनिया के किन मुल्‍कों ने एक दशक में अपने यहां लोकतंत्र की स्‍थापना की। इसके साथ भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के बारे में।

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संयुक्‍त राष्‍ट्र की महापहल

दरअसल, लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक मूल्‍यों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के मकसद से वर्ष 2007 काफी अहम है। इसी वर्ष संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने लोकतंत्र की अहमियत को बताते हुए अंतरराष्‍ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने का फैसला किया था। इसके लिए कई बैठकों का दौर चला। सबसे पहले सितंबर 1997 में अलग-अलग देशों की संसदों के संगठन अंतरसंसदीय संघ ने लोकत्रंत को वैश्विक आधार देने के लिए प्रस्‍ताव तैयार किया। इसके बाद 1998 में फ‍िलीपींस में इंटरनेशनल रिस्‍टोर डिमोक्रेसी के सम्‍मेलन में इस पर विचार किया गया।

इस सम्‍मेलन में सरकारों, सांसदों और नागरिक समाजों में भागीदारी बढ़ाने की बात कही गई। 2006 में दोहा में आयाेजित आईसीएनआरडी के छठे सम्‍मेलन में अंतरराष्‍ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने का प्रस्‍ताव रखा गया। कतर में इसका मसौदा तैयार कर संयुक्‍त राष्‍ट्र के देशों के साथ विचार विमर्श किया गया और इसे मनाने का फैसला लिया गया। तब से हर साल 15 सितंबर को ये दिन आयोजित किया जाता है।

अंतरराष्‍ट्रीय लोकतंत्र दिवस का प्रस्‍ताव

संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने अपने प्रस्‍ताव में कहा था कि देशों के लोकतंत्र के लक्ष्‍ाण्‍ा  एक समान है। इसका कोई एक आदर्श रूप नहीं है।  हालांकि, संयुक्‍त राष्‍ट्र ने माना लोकतंत्र किसी खास देश अथवा क्षेत्र से जुडा नहीं और इसका कोई एक  मॉडल नहीं है, जिसे लागू किया जा सके। यह जीवन के सभी पहलुओं में उनकी पूर्ण भागीदारी पर आधारित है। प्रस्‍ताव में कहा गया लोकतंत्र एक वैश्विक मूल्‍य है, यह लोगों के स्‍वतंत्र रूप से व्‍यक्‍त की गई राजन‍ीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्‍कृतिक जीवन पर असर डालेगा।

दुनिया में उठी लोकतंत्र की मांग

बीते एक दशक में दुनिया के कई मुल्‍कों में लोकतंत्र की खातिर राजनीतिक आंदोलन हुए। इन मुल्‍कों की जनता सड़कों पर उतरी वहां के राजीनतिक परिदृष्‍य को बदलकर रख दिया। दरअसल, इस क्रांति की शुरुआत ट्युनिशिया से हुई। यहां की जैस्‍मीन क्रांति ने लोगों को इसके लिए प्रेरित किया। यह वह दौर था, जब यमन से एक चिंगारी भड़की और धीरे-धीरे इसने अरब देशों में आग लगा दी। इसे आज भी जैस्‍मीन क्रांति या फिर अरब क्रांति के नाम से जानते हैं। इसके बाद पश्चिम एशिया यमन, ट्यूनीशिया, इजिप्‍ट, लीबिया, सीरिया और कुछ और देश इस आग में जलने लगे। इन मुल्‍कों में लोकतांत्रिक दायरे बढ़ाने की मांग उठी। इनमें से कई मुल्‍कों में लोकतंत्र के लिए आंदोलन आज भी जारी है।

कई मुल्‍कों में सत्‍ता को अपदस्‍थ कर लोगोें ने राजनीतिक दबाव बनाया और लोकतांत्रिक चुनाव कराए। नेपाल में राजशाही के खिलाफ जनता जब सड़कों पर उतरी तो पूरे देश में लोकतंत्र की नई लहर उठी। 2008 में यहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराए गए, लेकिन संविधान बनाने के लिए लंबी जद्दोजेहद करनी पड़ी। लेकिन आज भी नेपाल में संविधान का लचीला और समावेशी बनाने के लिए संघर्ष जारी है। म्‍यांमार में राजनीतिक तौर पर पहले से ज्‍यादा स्थिरता दिखी, लेकिन रोहिंग्‍या के मुद्दे को लेकर यहां के सरकार की दुनियाभर में आलोचना हो रही है। तिब्‍बत के शरणार्थी दशकों से अपने अदद राष्‍ट्र की लड़ाई आज भी लड़ रहे हैं। यह सारी कवायद एक लोकतंत्र के लिए है। आखिर क्‍या है लोकतंत्र। क्‍या है इसकी खूबियां और खामियां।

भारत में गहरी है लोकतंत्र की जड़े

भारत में लोकतंत्र का विचार हजारों साल पुराना है। यहां लोकतंत्र की जड़े काफी गहरी है और वैदिक काल से ही हमारे यहां लोकतंत्र की परंपरा रही है। प्राचीन काल से इस देश में अपनी बात मनवाने के लिए शस्‍त्र का नहीं शास्‍त्र और संवाद को सहारा लिया गया। पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित राजनीतिशास्‍त्र के विद्वानों की यह धारणा कदापि सही नहीं है कि लोकतंत्र का सबसे पहले उदय यूनान में हुआ। उनकी यह मान्‍यता सही नहीं है। भारत में वैदिक सभ्‍यता के शुरुआत में ऋगवेद की रचना के समय में ही पांच हजार साल पहले लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था की मजबूत नींव पड़ चुकी थी। उस वक्‍त लोकतांत्रिक इकाई में राजा भी आता था, जिसे राजा बनते समय उसे जनता के कल्‍याण के शपथ लेनी पड़ती थी।

राजतंत्र की मदद के लिए सभा और समितियां होती थी। इसमें समिति राज्‍य के मामले में विचार जाहिर करती थी और राजा के निर्वाचन में भाग लेती थी। मौर्य, गुप्‍ता और हर्ष काल में ग्राम सभाओं और पंचायत का विकास हुआ जो ग्रामीण व्‍यवास्‍था की देखरेख के साथ न्‍याय प्रशासन का कार्य भी किया करते थे। गणराज्‍य एक तरह से पहले से स्‍थापित जनपदों का ही विकसित रूप था। बुद्ध के समय भारत में करीब 700 जनपथ थे और 16 ऐसी इकाई थीं, जिन्‍हें महाजनपद कहा जाता था। आज के संसद की तरह इन महाजनपदों ने परिषदों का निर्माण किया गया था। वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलती जुलती थी। इन्‍हीं जनपदों ने आगे चलकर गणतंत्र का रूप लिया, जो न केवल जागरूक और संगठित थे बल्कि लोकतंत के नियम और कायदों के प्रति कुछ कम भी आस्‍था नहीं रखते थे।


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