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परिस्‍थितियों के जाल में उलझ गई थीं जिन्‍ना की पत्‍नी रुटी पेटिट

सीनियर जर्नलिस्‍ट शीला रेड्डी की नई किताब- मिस्‍टर एंड मिसेज जिन्‍ना: द मैरिज दैट शूक इंडिया’ में मोहम्‍मद अली जिन्‍ना के विवाहित जिंदगी को उकेरा गया है।

By Monika minalEdited By: Published: Fri, 03 Mar 2017 04:10 PM (IST)Updated: Sat, 04 Mar 2017 12:24 PM (IST)
परिस्‍थितियों के जाल में उलझ गई थीं जिन्‍ना की पत्‍नी रुटी पेटिट
परिस्‍थितियों के जाल में उलझ गई थीं जिन्‍ना की पत्‍नी रुटी पेटिट

नई दिल्‍ली (प्रेट्र)। वे 42 के थे और वह 18 की। रहस्‍यमयी मोहम्‍मद अली जिन्‍ना व रुटी पेटिट की जोड़ी स्‍वर्ग में नहीं बनी थी। सीनियर जर्नलिस्‍ट शीला रेड्डी की नई किताब- मिस्‍टर एंड मिसेज जिन्‍ना: द मैरिज दैट शूक इंडिया’ में इस रिश्‍ते को विषय बना उकेरा गया है। इस रिश्‍ते से 1918 में बंबई की हाई सोसायटी और सियासी गलियारों में भूचाल आ गया था।

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उसकी छोटी सी बुद्धू खोपड़ी में ना जाने क्या आया कि वह अचानक अपने पिता की उम्र वाले एक आदमी के प्यार में पड़ गई?' यह कटाक्ष सरोजिनी नायडू के बेटे जयसूर्या ने अपनी बहन पद्मजा को लिखे एक खत में किया। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के नेता और बाद में पाकिस्तान के संस्थापक बने मोहम्मद अली जिन्ना की उम्र तब 40 साल थी, जब उन्हें 16 साल की एक पारसी लड़की रुटी पेटिट से प्यार हो गया।

लेखक के अनुसार, जब जिन्‍ना के समकालीन महात्‍मा गांधी के बारे में विस्‍तृत तौर पर काफी कुछ लिखा गया पर कैद-ए-आजम की व्‍यक्‍तिगत जिंदगी एक रहस्‍य बनी रही। रेड्डी ने अपने किताब लांच के मौके पर कहा, ‘इतिहास में गांधी और जिन्‍ना दो बड़े व्‍यक्‍तित्‍व हैं। गांधीजी की जिंदगी का कोई भी पहलू ऐसा नहीं था जिसने इतिहासकारों और जीवनी लिखने वालों का ध्‍यान न खींचा हो, पर जिन्‍ना के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता।‘

लेखक को जिन्‍ना की व्‍यक्‍तिगत व विवाहित जिंदगी के बारे में कायम रहस्‍य ने उन्‍हें इस किताब को लिखने की उत्‍सुकता प्रदान की। दिल्‍ली, मुंबई और कराची में अपने रिसर्च के दौरान उन्‍हें सरोजिनी नायडु और रुट्टी की लिखी कई चिट्ठियां मिलीं। उन्‍होंने बताया, ‘नई दिल्‍ली स्‍थित नेहरु लाइब्रेरी अर्काइव में रुटी द्वारा लिखे गए पत्रों में वे पत्र शामिल थे जिन्‍हें उन्‍होंने 15 वर्ष की आयु में लिखा था और वे भी पत्र थे जिसे उन्‍होंने 1929 में अपने निधन के पहले लिखा था।‘

लेखक के लिए, रुटी ऐसी शख्‍सियत थीं जो परिस्‍थितियों के जाल में उलझ गयी थीं। उन्‍होंने बताया कि ऐसे जाल में उलझकर मुझे नहीं लगता की कोई रह सकता है। एकाकी और अकेली रुटी को उनके परिवार ने तो बहिष्‍कृत किया ही लेकिन जिन्‍ना की राजनीति और कानून में बढ़ती व्‍यस्‍तता ने भी अकेला कर दिया। अपने पति को लिखे आखिरी पत्र में उनका गुस्‍सा सामने आता है जिसमें उन्‍होंने लिखा है, ‘मुझे उस फूल के तौर पर याद करना जिसे तुमने तोड़ा है न कि उस फूल के तौर पर जिसे तुमने कुचल दिया।‘

रेड्डी ने बताया, ‘अपने परिवार और समुदाय से कटना ही खुद में एक चोट था जिसे न तो उन्‍होंने खुद स्‍वीकार किया और न ही जिन्‍ना ने क्‍योंकि उन्‍हें पता था कि जिन्‍ना इसका मतलब नहीं समझ पाएंगे।‘ रुटी की जिंदगी छोटी लेकिन अविश्वसनीय थी। उन्हें किसी भी तरह कम करके नहीं आंका जा सकता और इसीलिए रेड्डी की यह कोशिश सराहनीय है जिन्होंने पत्रों से बनने वाली रुटी की दोस्तियों की परतों और विभिन्न पहलुओं को पेश किया है। पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा छपी इस पुस्‍तक का विमोचन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ।

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