Rising India : हौसलों से आई मिठास ने कम की कोरोना की कड़वाहट
कोरोना काल में रोजगार छिनने कारोबार बंद होने से परेशान लोगों के लिए ये एक प्रेरणा है। डाकुओं के आतंक के लिए बदनाम रहे बीहड़ में कोरोना काल में ही रोजगार की ऐसी मिठास घुली है कि गांव-गांव खुशहाली छाने लगी है।
सत्येंद्र दुबे, बाह (आगरा)। कोरोना काल में रोजगार छिनने, कारोबार बंद होने से परेशान लोगों के लिए ये एक प्रेरणा है। डाकुओं के आतंक के लिए बदनाम रहे बीहड़ में कोरोना काल में ही रोजगार की ऐसी मिठास घुली है कि गांव-गांव खुशहाली छाने लगी है। लॉकडाउन में बेरोजगार हुए हलवाई घर पर मिठाइयां बनाकर उन शहरों में ही आपूर्ति कर रहे हैं, जहां से खाली हाथ लौटे थे। मिठाई बनाने में प्रयुक्त दूध और अन्य सामग्री का कारोबार भी बढ़ गया है। रुदमुली, बिजौली, मंगदपुर, जैतपुर, सियाईपुरा, चित्राहाट आदि ऐसे गांव हैं, जहां के लोग कई दशकों से दूसरे शहरों में हलवाईगीरी करते रहे हैं।
दिल्ली और गुजरात में इनकी कारीगरी पसंद की जाती है। लॉकडाउन में ये हलवाई अपने-अपने गांव लौट आए थे। अनलॉक होने पर इन शहरों से उन मिष्ठान प्रतिष्ठानों से ऑर्डर मिले, जहां ये काम करते थे। रामसिंह, हरिओम, रामकिशन, मनोहर आदि बताते हैं कि ऑर्डर पर वे मिठाई तैयार कर दिल्ली और गुजरात भेजते हैं। यहां की छेना और डोडा बर्फी की डिमांड ज्यादा है।
गांव-गांव दूध की नदियां
गांव-गांव दुधारु पशु हैं। पहले लोग डेयरी पर दूध देते थे, भुगतान कई दिनों बाद मिलता था। अब ये दूध हलवाई लोग सीधे खरीदते हैं, भुगतान भी नकद होता है। कुछ लोगों ने तो पशुओं की संख्या भी बढ़ा ली है।
रॉ मटेरियल का भी कारोबार बढ़ा
मिठाई बनाने में मैदा, सोडा, रिफाइंड, दूध का पाउडर, रीठा आदि का प्रयोग होता है। इनका कारोबार कुछ महीनों से बढ़ गया है। थोक व्यापारियों ने तो बड़ी मात्रा में स्टॉक कर लिया है।
परिवहन व्यवस्था
गांव-गांव तैयार मिठाई प्लास्टिक के बड़े-बड़े डिब्बों (कंटेनर) में पैक की जाती है। दिल्ली-अहमदाबाद को हर रोज प्राइवेट बसें जाती हैं। इन्हीं बसों से मिठाई भेजी जाती है। इन बसों की आय भी बढ़ गई है। भाड़ा का भुगतान माल रिसीव करने वाला ही करता है।
आय का ग्राफ
- 10 लोगों को औसतन रोजगार मिला है एक हलवाई के यहां
- 250 लोगों को रोजगार मिला है पूरे तहसील क्षेत्र में
- 60 रुपये प्रति किलो लागत आती है एक किलो छेना पर
- 120 रुपये प्रति किलो की कीमत लेते हैं हलवाई
- 05 कुंतल औसतन छेना की आपूर्ति होती है रोजाना
- 100 रुपये प्रति किलो की लागत आती है एक किलो बर्फी पर, 150 रुपये प्रति किलो की कीमत लेते हैं हलवाई
- 01 कुंतल बर्फी की आपूर्ति होती है रोजाना
- 50 किलोलीटर दूध खप जाता है हर रोज
- 30 रुपये प्रति लीटर मिल जाता है दूध
बाह का छेना सस्ता और अच्छा
गुजरात के दाहोद जिला में मिष्ठान प्रतिष्ठान संचालक संजय बघेल बाह क्षेत्र के ही रहने वाले हैं। संजय ने 'जागरण' को फोन पर बताया कि बाह में गाय के दूध का छेना तैयार किया जाता है, जो मुलायम होता है। गुजरात में 200 रुपये प्रति किलो की लागत आती है, जबकि बाह से भाड़ा सहित 150 रुपये प्रति किलो में मिल जाता है। बकौल संजय, गुजरात के अन्य शहरों में भी बाह से ही छेना मंगाया जाता है।
(चौधरी उदयभान, राज्यमंत्री, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, उप्र )
उत्तर प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्यमंत्री चौधरी उदयभान ने कहा कि इस बाबत संबंधित विभाग के अधिकारियों के साथ शीघ्र बैठक होगी। यदि इन ग्रामीणों को अपना ब्रांड गैर-जनपदों व राज्यों में भेजने में कोई दिक्कत है, तो वह दूर कराई जाएगी।
(राजकुमार चाहर, सांसद, फतेहपुर सीकरी)
फतेहपुर सीकरी के सांसद राजकुमार चाहर ने कहा कि बाह क्षेत्र के कारीगरों ने अपना कारोबार कर अन्य बेरोजगारों को भी प्रेरणा दी है। निश्चित तौर पर यहां के कारीगर दिल्ली व गुजरात में अपने हुनर का जलवा बिखेर चुके हैं। मैं स्वयं इन गांव में जाऊंगा। इन ग्रामीणों के हुनर को कैसे बढ़ावा दिया जाए, इसके लिए संबंधित विभागीय अधिकारियों से बातचीत होगी।
(प्रभु एन सिंह, जिलाधिकारी, आगरा)
आगरा के जिलाधिकारी प्रभु एन सिंह ने कहा कि गांव में आकर मिठाई बनाने व सप्लाई करने का कारोबार करना सराहनीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फॉर वोकल नारे को चरितार्थ करने के लिए जिला ग्राम्य विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक को इन गांव भेजा जाएगा। वह इनके कारोबार को बढ़ावा देने के बारे में प्लानिंग करेंगे। उनकी मिठाई कैसे एक ब्रांड के रूप में आसपास के राज्यों में जा सकती है, इस बिन्दु पर भी संभावना तलाशी जाएगी।