सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के डेढ़ सौ प्राचार्यो की नियुक्ति रद की
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के 158 प्राचार्यों को हटाने का फैसला सुनाया है। ये प्राचार्य पिछले 8 सालों से पद पर बने थे।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के स्नातक और परास्नातक कालेजों में करीब आठ वर्ष तक प्राचार्य पद पर तैनात रहे 158 प्राचार्यो की नौकरी पर गाज गिरी है। सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को प्राचार्यो की अपीलें खारिज करते हुए उनकी नियुक्ति रद करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। ये प्राचार्य अभी तक सुप्रीमकोर्ट के अंतरिम आदेश के सहारे पद पर तैनात थे।
आज के फैसले के बाद इनका प्राचार्य पद छिन जाएगा और ये अपने पिछले पद पर वापस चले जाएंगे। इतना ही नहीं इन्हें प्राचार्य पद का बढ़ा हुआ वेतन भी वापस करना होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 23 अप्रैल 2012 को उत्तर प्रदेश में 2006- 2007 की स्नातक और परास्नातक कालेजों में प्राचार्यो की नियुक्ति रद कर दी थी। प्राचार्यो ने फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी।न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला व न्यायमूर्ति एसए बोबडे की पीठ ने प्राचार्यो की याचिका खारिज करते हुए ये अहम फैसला सुनाया है।
पुराने पद पर वापस जाएंगे प्राचार्य लौटाना होगा बढ़ा हुआ वेतन
सुप्रीमकोर्ट ने स्नातक और परास्नातक कालेजों में प्राचार्य पद पर नियुक्ति की 30 जून 2008, 2 जुलाई 2008 और 15 जुलाई 2007 की चयन सूची रद कर दी है। सुप्रीमकोर्ट ने सभी चयनित उम्मीदवारों को निर्देश दिया है कि वे पूर्व में सुप्रीमकोर्ट के समक्ष दी गई अंडर टेकिंग का पालन करें। यानि उन्हें प्राचार्य पद का बढ़ा हुआ वेतन वापस करना होगा। इतना ही नहीं कोर्ट ने यूपी हायर एजूकेशन सर्विस कमीशन को निर्देश दिया है कि वह इन पदों पर चयन के लिए 1983 के नियम 6 (2) के मुताबिक उचित दिशानिर्देश तय करे और जल्दी से जल्दी रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया करे। यही आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी दिया। जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने मुहर लगाई है।
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प्राचार्यो की नियुक्ति का यह मामला लंबे समय से अदालत के चक्कर काट रहा है। शुरूआत में जब प्राचार्यो की नियुक्ति हुई तो कई याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल हुईं जिनमें कुछ असफल उम्मीदवार थे तो कुछ ने नियम कानूनों की अनदेखी को आधार बनाकर याचिका की। इनमें से एक प्रोफेसर मधुसूदन त्रिपाठी भी हैं। हाईकोर्ट ने जब नियुक्तियां रद कर दी तों नौकरी बचाए रखने के लिए प्राचार्य अंतरिम रोक आदेश लेने सुप्रीमकोर्ट पहुंचे। सुप्रीमकोर्ट में उन्होंने अंडर टेकिंग दी कि अगर वे मुकदमा हार गए तो प्राचार्य पद का बढ़ा हुआ वेतन वापस करेंगे।
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सुप्रीमकोर्ट ने अब उन्हें उसका पालन करने का निर्देश दिया है। हालांकि प्राचायरें के वकील मनोज मिश्रा का कहना है कि वे सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल कर इस शर्त से छूट देने की गुहार लगाएंगे। अदालत ने ये भर्तियां नियमों की अनदेखी और अनियमितताओं के आधार पर रद की है। कोर्ट ने कहा कि चयन में नियमों का उल्लंघन हुआ है। उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग को नियम 6 (2) के तहत भर्ती के दिशानिर्देश तय करने चाहिए थे। जिन नियमों पर भर्ती हुई है वे दिशानिर्देश पूर्ण नहीं हैं।