जापान और ब्रिटेन की तर्ज पर चाक-चौबंद होगा रेल निगरानी तंत्र
अच्छी खबर यह है कि रेलवे ने कुछ कारगर उपायों को जमीन पर उतारने की कवायद तेज कर दी है। इसमें जापान और ब्रिटेन की तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
भोपाल/अलीगढ़ [जागरण स्पेशल]। रेलवे ट्रैक में आई छोटी सी खराबी अनेक जानों को लील जाती है। वहीं, ट्रेन संचालन व्यवस्था की निगरानी में हो जाने वाली छोटी सी चूक भी बड़े हादसों का सबब बन जाती है। अच्छी खबर यह है कि रेलवे ने कुछ कारगर उपायों को जमीन पर उतारने की कवायद तेज कर दी है। इसमें जापान और ब्रिटेन की तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
सेंसर-लेजर-कैमरों से ट्रैक पर बारीक नजर
सेंसर व लेजर किरणों पर आधारित जापानी तकनीक का इस्तेमाल ट्रैक पर बारीक नजर रखने के लिए किया जाएगा। ट्रैक की स्कैनिंग के जरिये पांतों में आई छोटे से छोटी खराबी को तुरंत पकड़ा जा सकेगा। भारत में फिलहाल यह काम गश्ती दल की चार पहिया छोटी सी गाड़ी में लगी अल्ट्रासोनिक वेब डिवाइस के जरिये किया जाता है। इससे एक दिन में 50 किमी पटरियों की जांच ही हो पाती है।
यह सिस्टम ऑटोमैटिक नहीं है बल्कि गश्ती दल को सूचना देने तक सीमित है। अब लखनऊ स्थित रेलवे रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड आर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) जापानी तकनीक के आधार पर इंट्रीग्रेटेड ट्रैक मेजरमेंट सिस्टम विकसित कर रहा है। इसमें लेसर, सेंसर व उच्च क्वालिटी वाले कैमरों होंगे। इसे कोच के सबसे निचले हिस्से में लगाया जाएगा।
यह सिस्टम 20 से लेकर 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार में रेल पटरी व स्लीपर में आने वाले फ्रैक्चर, स्लीपर व रेल पटरियों के बीच सेफ्टी पिन का नहीं होना, तय मापदंड के अनुरूप ट्रैक में गिट्टी का कम या अधिक होना, बारिश के दौरान गिट्टी का बहाव होना, रेल पटरी व स्लीपर का पुराना होना आदि गड़बड़ियों को पकड़ लेगा और ट्रैक मैनेजमेंट रिपोर्ट भी तत्काल जारी करेगा।
स्टेशनों के बीच लगेंगे एक्सेल काउंटर
ट्रेनों को समय से और सुरक्षित ढंग से चलाने के लिए ब्रिटेन की तकनीक से बने एक्सेल काउंटर लगाने की भी शुरुआत की गई है। यह एक्सेल काउंटर हर गाड़ी का सटीक पूर्वानुमान देगा। दो स्टेशनों के बीच चल रही गाड़ियों की भी पुष्टि करेगा। फिलहाल भारत में कंप्यूटरीकृत सिग्नल व्यवस्था लागू है।
यह ट्रैक सर्किट के जरिये संचालित होती है। इससे ही मालूम चलता है कि सिग्नल क्लीयर है अथवा कोई बाधा है, ताकि गाड़ी की स्पीड और निकासी या रोक के बारे में निर्णय लिया जा सके। केबिल के जरिये जुड़ाव के कारण ट्रैक सर्किट कई बार फेल भी हो जाता है। इससे सिग्नल डेड हो जाता है। नई तकनीक सेंसर पर आधारित है। यह ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने की दिशा में भी बड़ा कदम होगा।
ऐसे करेगा काम
एक्सेल काउंटर का मूल काम प्लेटफॉर्म पर आई या गुजरी ट्रेन के पहियों की गिनती करना है। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि ट्रेन सही सलामत प्लेटफॉर्म पर पहुंच गई है या नहीं। इसका संकेत स्टेशन मास्टर को पैनल पर सेंसर के माध्यम से मिल जाएगा। इसकी सूचना मिलते ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि ट्रेन सही सलामत प्लेटफॉर्म पर आ गई है या नहीं। इसके बाद ही सिग्नल क्लीयर होगा। ट्रेन के चक्के में कोई कमी या अन्य प्रकार की सूचनाएं भी यह काउंटर उपलब्ध कराएगा।
ट्रेन में जुड़ेगा विशेष कोच
इसके लिए अलग से कोच तैयार होगा जिसका नाम ट्रैक रिकॉर्डिंग कार होगा। यह ट्रेन में सबसे पीछे या आगे इंजन के साथ जुड़ेगा। जिस भी ट्रेक की जांच करनी होगी, उस ट्रैक पर चलने वाली ट्रेन में यह कोच लगाया जाएगा। यह सिस्टम साल 2019 के आखिरी में काम करना शुरू कर देगा।
ट्रैक मॉनीर्टंरग की नई व्यवस्था अगले साल तक अमल में आ जाएगी। आरडीएसओ लखनऊ ने 50 फीसद से ज्यादा काम पूरा कर लिया है। आधुनिक तकनीक मददगार साबित होगी।
-शोभन चौधुरी, डीआरएम, भोपाल
रेल मंडल
आगरा, झांसी व इलाहाबाद डिवीजन में एक्सेल काउंटर लग चुके हैं। अब अलीगढ़ समेत कई स्टेशनों पर काम शुरू हो रहा है। इसके प्रयोग से हादसों पर विराम लगेगा। ट्रेनों की रफ्तार भी बढ़ेगी।
-गौरव कृष्ण बंसल, मुख्य जनंसपर्क
अधिकारी, उत्तर-मध्य रेलवे
[भोपाल से हरिचरण यादव और अलीगढ़ से आकाशदीप भारद्वाज की रिपोर्ट]