Move to Jagran APP

तिल के तेल की सिर्फ दो बूंद से हार सकता है वायरस, प्रदूषण रोकने में भी कारगर

नाक में तेल बनाता है सुरक्षा परत इसी में फंस जाता है वायरस व बैक्टीरिया चरक संहिता के 28वें अध्याय में भी है जिक्र फेफड़े तक नहीं पहुंचता वायरस।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 07 Mar 2020 08:49 AM (IST)Updated: Sat, 07 Mar 2020 01:09 PM (IST)
तिल के तेल की सिर्फ दो बूंद से हार सकता है वायरस, प्रदूषण रोकने में भी कारगर
तिल के तेल की सिर्फ दो बूंद से हार सकता है वायरस, प्रदूषण रोकने में भी कारगर

जागरण संवाददाता, मेरठ। दुनिया में तबाही मचाने पर आमादा कोरोना वायरस को एक सरल और घरेलू नुस्खा रोक सकता है। आयुर्वेदाचार्यों की मानें तो तिल या अणु के तेल की दो बूंदें नाक में सुरक्षा परत बनाकर वायरस को सांस की नली में पहुंचने से रोक देती हैं। ऐसे में व्यक्ति संक्रमित नहीं होगा। अगर वायरस गले में पहुंच गया तो भी निमोनिया का खतरा कम रहेगा। चरक संहिता के 28वें अध्याय में तिल के तेल की दो बूंदें नाक में डालकर सूक्ष्म कणों से होने वाली बीमारियों से बचाव को अकाट्य बताया गया है। जानें क्‍या कहते है प्राचार्य, महावीर आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के डॉ. देवदत्त भादलीकर

loksabha election banner

चरक संहिता में वर्णित प्रतिमर्श नस्य- नाक से दवा डालकर इलाज करने की विधि बताई गई है। तेल नाक के अंदर एक प्रतिरक्षा परत बनाता है। हानिकारक कण, वायरस और बैक्टीरिया इसी परत में फंस जाते हैं। ये कण नाक के जरिये फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाते। नाक के अंदर की श्लेष्मिक झिल्ली को ताकत मिलती है।

150 मरीजों पर शोध : महावीर आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर डा. निधि शर्मा ने पंचकर्म सिद्धांत के अंतर्गत 150 मरीजों पर प्रतिमर्श नस्य का शोध किया है। उनका दावा है कि तेल से नाक में बनी परत में जहां पीएम 2.5 माइक्रान तक के कण फंस जाते हैं, वहीं इससे सूक्ष्म वायरस और बैक्टीरिया भी परत को पार नहीं कर पाते हैं। एक सप्ताह तक नस्य कर्म के बाद मरीजों को प्राणायाम करना चाहिए, जिससे माहभर में फेफड़ों की ताकत बढ़ जाएगी। प्रतिमर्श नस्य पर सेंटर काउंसिल रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंस के वैद्य केएस धीमान भी शोध कर रहे हैं।

प्रदूषण रोकने में भी कारगर : हवा में सल्फर, नाइट्रोजन, कार्बन एवं मोनोआक्साइड के सूक्ष्म कण नाक की नलियों में सूजन से अस्थमा बनाते हैं। सीओपीडी के मरीजों को सांस का अटैक आ जाता है। नाक में तेल डालने पर प्रदूषित सूक्ष्म कण इसमें चिपक जाते हैं। प्रदूषित वातावरण में रहने वाले मरीजों में एलर्जिक रानाइटिस में कमी भी मिली।

चरक संहिता में प्रतिमर्श नस्य यानी नाक में तेल डालकर प्रदूषित कणों को रोकने की विधि बताई गई है। ये कोरोना और स्वाइन फ्लू के ड्रापलेट को भी नाक में पहुंचने से रोक देगी। तिल या अणु का तेल प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। कई विवि में इसपर शोध भी हो रहा है।

-डॉ. देवदत्त भादलीकर, प्राचार्य, महावीर आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज

नाक में तेल बनाता है सुरक्षा परत, इसी में फंस जाता है वायरस व बैक्टीरिया, चरक संहिता के 28वें अध्याय में भी है जिक्र, फेफड़े तक नहीं पहुंचता वायरस। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.