धरती की आबादी को एक लाख साल तक आक्सीजन दे सकता है चांद, आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने दी सनसनीखेज जानकारियां
आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर भी वातावरण है लेकिन वह धरती के वातावरण की तुलना में बहुत हल्का है। आस्ट्रेलिया की सदर्न क्रास यूनिवर्सिटी के जान ग्रांट ने इस संबंध में कुछ उल्लेखनीय जानकारियां दी हैं। पढ़ें यह रिपोर्ट...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। धरती पर जीवन होने में आक्सीजन की भूमिका सबसे अहम है। यही कारण है कि इसे प्राणवायु भी कहा जाता है। विज्ञानी लगातार इस दिशा में शोध कर रहे हैं कि धरती से इतर कहीं आक्सीजन उपलब्ध है या नहीं? इस तलाश में चांद हमारा सबसे नजदीकी गंतव्य रहा है। पिछले महीने अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और आस्ट्रेलिया की स्पेस एजेंसी ने आस्ट्रेलिया में बना एक रोवर चांद पर भेजने का करार किया है। इसका लक्ष्य चांद से ऐसी चट्टानों को जुटाना है, जिनसे वहां आक्सीजन की आपूर्ति संभव हो सकती है। आस्ट्रेलिया की सदर्न क्रास यूनिवर्सिटी के जान ग्रांट ने इस संबंध में कुछ उल्लेखनीय जानकारियां दी हैं।
चांद की सतह पर है आक्सीजन
चांद पर भी वातावरण है लेकिन वह धरती के वातावरण की तुलना में बहुत हल्का है। उसमें मुख्यत: हाइड्रोजन, नियोन और आर्गन गैसे हैं। निश्चित तौर पर आक्सीजन से जीवित रहने वाले मनुष्यों के लिए यह वातावरण उपयोगी नहीं है।
...तो हो जाएगा चमत्कार
विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि चांद पर आक्सीजन बहुतायत में है लेकिन उसके वातावरण में नहीं बल्कि उसकी ऊपरी सतह पर। चांद की मुख्य सतह को पत्थरों और धूल की एक परत ने ढंका हुआ है जिसे रेगोलिथ कहते हैं। इस परत में बहुत अधिक मात्रा में आक्सीजन है। यदि इस आक्सीजन को निकाला जा सके तो चांद पर मनुष्यों के लिए जीवन संभव हो सकता है।
चट्टानों से प्राणवायु निचोड़ने की जरूरत
धरती पर बहुत से खनिज हैं जिनमें आक्सीजन होती है। इसी तरह के खनिज चांद पर भी हैं। चांद पर सिलिका, एल्युमीनियम, आयरन और मैग्नीशियम आक्साइड की प्रचुरता है। वहां सतह को ढंकने वाली धूल की परत, कठोर चट्टानों और पत्थरों के रूप में ये खनिज हैं। लाखों वर्षो में विभिन्न उल्कापिंडों के टकराने से चांद पर इन खनिजों की प्रचुरता हुई है। हमें इन खनिजों से आक्सीजन निकालने के बारे में सोचना होगा। इस दिशा में सफलता मिल जाए तो आक्सीजन की कमी दूर की जा सकती है।
बहुत मुश्किल नहीं है प्रक्रिया
खनिजों से आक्सीजन अलग करने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल नहीं है। धरती पर एल्युमीनियम आक्साइड (एलुमिना) से एल्युमीनियम निकालने में यह प्रक्रिया इस्तेमाल की जाती है। इसे इलेक्ट्रोलिसिस कहा जाता है। इसमें एल्युमीनियम धातु के साथ उप-उत्पाद के तौर पर आक्सीजन मिलती है।
सौर ऊर्जा का करना होगा इस्तेमाल
चांद पर प्रक्रिया सिर्फ इस मामले में अलग होगी कि वहां मुख्य उत्पाद के रूप में आक्सीजन निकलेगी और उप-उत्पाद के रूप में कुछ उपयोगी धातुएं मिल जाएंगी। इलेक्ट्रोलिसिस में बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। इसके लिए चांद पर सौर ऊर्जा का प्रयोग करना होगा। साथ ही इस प्रक्रिया के लिए जरूरी मशीनरी को चांद पर पहुंचाना भी अहम है।
तीन रिएक्टर बनाने की घोषणा
फिलहाल विज्ञानी इस दिशा में काम कर रहे हैं। बेल्जियम की स्टार्टअप फर्म स्पेस एप्लिकेशंस सर्विसेज ने तीन रिएक्टर बनाने की घोषणा की है, जिनसे इलेक्ट्रोलिसिस के जरिये आक्सीजन उत्पादन हो सकता है। 2025 तक इन रिएक्टर को चांद पर पहुंचाने की तैयारी है।
पूरी हो सकती है करोड़ों लोगों की जरूरत
चांद पर प्रत्येक घनमीटर रेगोलिथ में करीब 1.4 टन खनिज हैं, जिनमें 630 किलोग्राम आक्सीजन है। नासा के मुताबिक एक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए एक दिन में करीब 800 ग्राम आक्सीजन की जरूरत होती है। इस हिसाब से 630 किलोग्राम आक्सीजन में एक व्यक्ति की करीब दो साल की जरूरत पूरी हो जाएगी। पूरे चांद पर रेगोलिथ की 10 मीटर मोटी परत के इलेक्ट्रोलिसिस से इतनी आक्सीजन मिल जाएगी, जिससे आठ अरब लोगों की एक लाख साल की आक्सीजन की जरूरत पूरी हो सकती है।