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राजद्रोह का कानून इस प्रकार के अपराधों तक होना चाहिए सीमित, जो भारत की सुरक्षा और अखंडता के लिए हैं खतरा

124ए का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क है कि यह धारा राष्ट्र विरोधी अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों को रोकने में सहायता करती है। हमारे देश में समय-समय पर अलगाववादी आंदोलन पैदा होते रहते हैं और भारत का एक विशेष हिस्सा उग्रवादी आंदोलनों से प्रभावित रहा है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Mon, 16 May 2022 04:33 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2022 04:33 PM (IST)
राजद्रोह का कानून इस प्रकार के अपराधों तक होना चाहिए सीमित, जो भारत की सुरक्षा और अखंडता के लिए हैं खतरा
राजद्रोह कानून के तहत आरोपी को तीन वर्ष की या उम्र कैद की हो सकती है सजा

रंजना मिश्र। केंद्र सरकार ने राजद्रोह जैसे कानून पर रुख स्पष्ट किया है कि वह कानून की समीक्षा करके इसमें उचित बदलाव लाने के लिए तैयार है, ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके। सरकार के इस रुख के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून से संबंधित कोई भी नया मामला दर्ज करने पर रोक लगा दी है। आइपीसी की धारा 124ए के तहत यदि कोई व्यक्ति मौखिक या लिखित रूप से, संकेतों या दृश्यों के माध्यम से सरकार के प्रति घृणा फैलाने या असंतोष पैदा करने का प्रयास करता है तो इसे राजद्रोह माना जाता है। इसके तहत आरोपी को तीन वर्ष की या उम्र कैद की सजा हो सकती है।

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124ए का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क है कि यह धारा राष्ट्र विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों को रोकने में सहायता करती है। हमारे देश में समय-समय पर अलगाववादी आंदोलन पैदा होते रहते हैं और भारत का एक विशेष हिस्सा उग्रवादी आंदोलनों से प्रभावित रहा है। ऐसे में यह कानून उन तत्वों से निपटने में सरकार की मदद करता है। साथ ही उनका मानना है कि यह कानून संविधान द्वारा स्थापित सरकार की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है, क्योंकि राज्य और देश की स्थिरता बनाए रखने के लिए संविधान द्वारा स्थापित सरकार का होना जरूरी है।

इस कानून के द्वारा दबाने की होती है भरपूर कोशिश

इस कानून का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि ब्रिटिश काल में बनाए गए एक औपनिवेशिक कानून को हम अभी तक क्यों लागू किए हुए हैं? उनका मानना है कि सरकार के प्रति असहमति और आलोचना लोकतंत्र के प्रमुख तत्व होते हैं, जिन्हें इस कानून के द्वारा दबाने की भरपूर कोशिश की जाती है।

ऐसे में यह कानून लोकतंत्र के विरुद्ध है। उनका तर्क है कि जब ब्रिटिश सरकार ने खुद ही इसे 2009 में समाप्त कर दिया और आस्ट्रेलिया में भी यह कानून 2010 में समाप्त हो गया था तो ऐसे में भारत में इस कानून को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है।

इस कानून के द्वारा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को न दबाया जाए

सरकार को यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इस कानून के द्वारा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को न दबाया जाए और न ही इसका प्रयोग असहमति की स्थिति में किया जाए। साथ ही इस कानून का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग करना चाहिए। यानी वह निर्धारित करे कि इस कानून का उपयोग कब किया जाएगा और कब नहीं किया जाएगा।

राजद्रोह का कानून उन अपराधों तक सीमित होना चाहिए, जो भारत की सुरक्षा और अखंडता के लिए खतरा हैं। साथ ही ‘घृणा’ और ‘असंतोष’ जैसे शब्दों को भी और अधिक स्पष्ट करने की आवश्यकता है, ताकि इस कानून का दुरुपयोग न हो सके। कुल मिलाकर सरकार और न्यायपालिका को ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जो देश की सुरक्षा एवं अखंडता और नागरिकों की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रख सके।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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