'कर्नाटक सरकार जयललिता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाए'
कर्नाटक हाई कोर्ट से अपने चिर प्रतिद्वंद्वी और अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता को रिश्वतखोरी के मामले में आरोपमुक्त होने पर द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि ने सोमवार को कहा कि यह अंतिम फैसला नहीं है।
चेन्नई । कर्नाटक हाई कोर्ट से अपने चिर प्रतिद्वंद्वी और अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता को रिश्वतखोरी के मामले में आरोपमुक्त होने पर द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि ने सोमवार को कहा कि यह अंतिम फैसला नहीं है। माकपा ने कर्नाटक सरकार को जयललिता को बरी किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की मांग की है।
एक बयान में उन्होंने कहा, जो सोमवार को घोषणा की गई वह अंतिम फैसला नहीं है। मैं यह सबको याद दिलाना चाहूंगा कि महात्मा गांधी कहा करते थे कि सभी अदालतों से ऊपर भी एक अदालत है और वह है अंतरात्मा की अदालत है। एक सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कुमारस्वामी द्वारा अन्नाद्रमुक प्रमुख के वकील से निचली अदालत के जज ने जो विभिन्न चीजें पाई हैं उन्हें स्पष्ट करने और हर उलझन का उचित प्रमाण के साथ प्रतिकार करने को कहा था। क्या वे गांठें अब खुल गई हैं?
माकपा के राज्य सचिव जी रामकृष्णन ने एक बयान में कहा कि यह अंतिम फैसला नहीं है और जयललिता को बरी किए जाने के खिलाफ कर्नाटक सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए।
पीएमके के संस्थापक एस रामदास ने कहा कि जयललिता का दोषमुक्त होना लोकतंत्र और न्याय दोनों की हार है। यह आम राय है कि कर्नाटक सरकार द्वारा नियुक्त विशेष लोक अभियोजक जी भवानी सिंह ने जयललिता के खिलाफ नहीं बल्कि उनके लिए बहस की।
उधर बेंगलुरु में विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) बीवी आचार्य ने सोमवार को कहा कि जयललिता एवं तीन अन्य के खिलाफ इस मामले में फौजदारी मुकदमा गंभीर रूप से पक्षपात वाला था। ऐसा इस वजह से कि कर्नाटक और उसके द्वारा नियुक्ति एसपीपी को मौखिक दलील से हाई कोर्ट को विश्वास दिलाने का मौका ही नहीं दिया गया। आचार्य ने कहा कि उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ था जिसमें कहा गया था कि एक दिन के अंदर नियुक्त लोक अभियोजक को लिखित रूप से अपनी बात कहनी होगी। इस तरह मौखिक दलील का कोई अवसर नहीं था।