Malacca Strait: चीन की दुखती रग है मलक्का जलसंधि, ...तो इसलिए है ड्रैगन के लिए महत्वपूर्ण
Malacca Strait हमेशा से ही शांति और पड़ोसियों से मधुर संबंधों के हिमायती रहे भारत ने इस बार चीन की आक्रामकता को उसी की भाषा में जवाब दिया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। Malacca Strait भारत और चीन के मध्य तनाव अप्रैल के बाद से लगातार बढ़ रहा है। ताजा मामला दोनों देशों के बीच सीमा पर गोली चलने को लेकर है। हमेशा से ही शांति और पड़ोसियों से मधुर संबंधों के हिमायती रहे भारत ने इस बार चीन की आक्रामकता को उसी की भाषा में जवाब दिया है। हालांकि चीन को जमीन से ज्यादा बड़ी चिंता सागर की सता रही है। हिंद महासागर में मलक्का जलसंधि है। चीन का अधिकांश कारोबार इसी जलमार्ग से होता है। दोनों देशों में तनाव बढ़ा तो कभी भी भारत इस रास्ते को रोक सकता है। ये बात चीन को हमेशा सालती रहती है।
इसलिए है चीन के लिए महत्वपूर्ण : चीनी अपने कारोबार और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए इसी मार्ग पर निर्भर रहता है। करीब 80 फीसद तेल की आर्पूित इसी मलक्का जलसंधि मार्ग से होती है। इस मार्ग पर भारत का नियंत्रण चीन को गहरी चोट पहुंचा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो चीन के जहाजों को लंबा रास्ता चुनना होगा और इससे पड़ने वाले आर्थिक बोझ को संभालना इस वक्त उसके लिए संभव नहीं होगा। सामरिक विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर रास्ता बंद होता है तो यह चीन के बहुत बड़ा झटका होगा।
चीन को बड़ी आर्थिक चपत : सप्ताह भर बंद रहने से ही चीन की समुद्री यातायात की लागत 6.40 करोड़ डॉलर तक बढ़ जाएगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक, यदि यह मार्ग बंद होता है तो चीन को अपेक्षाकृत लंबा समुद्री मार्ग चुनना होगा। इससे चीन को एक साल में 84 अरब डॉलर से 200 अरब डॉलर तक की अतिरिक्त चपत लग सकती है।
सालों से नया रास्ता खोजने की कोशिश : चीन सालों से नया रास्ता तलाश रहा है, जिससे समुद्री यातायात में उसे सुविधा हो। कुछ समय पूर्व ही वह थाइलैंड से एक नया समुद्री व्यापारिक मार्ग बनाने की कोशिश में है। अपने महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के साथ वह थाइलैंड को जोड़कर क्रा इस्थमस नहर बनाना चाहता है, जिसे थाई कैनाल के नाम से भी जाना जाता है। इस पर करीब 50 अरब डॉलर के खर्च आने की बात कही जा रही है। हालांकि कभी चीन के मित्र रहे थाईलैंड ने हाल ही में इस परियोजना को मना कर दिया है।
व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मार्ग : यह एक उथला और संकरा समुद्री मार्ग है, जो करीब 800 किमी लंबा है। यह सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया के मध्य स्थित है। साथ ही यह दुनिया के सबसे भीड़भाड़ वाले व्यापारिक समुद्री मार्गों में से भी एक है। यहां से करीब 75 हजार जहाज हर साल गुजरते हैं। यह हिंद महासागर में स्थित अंडमान सागर को दक्षिण चीन सागर से जोड़ता है।
थाइलैंड की दुविधा : इस नहर के बनने से बड़े जहाज यहां से गुजर सकेंगे, लेकिन इसे बनाने के लिए भारी खर्च होगा। जिसे थाइलैंड के लिए चीन के साथ मिलकर उठाना भी बेहद मुश्किल होगा। साथ ही सवाल ये भी है कि किसी विदेशी ताकत और वो भी चीन जैसे देश जो अपनी विस्तारवादी नीतियों के लिए पहले से ही बदनाम है, मिलकर काम करना देश को उसे सौंपने जैसा नहीं होगा? चीन की फितरत से वाकिफ यह देश ऐसा खतरा नहीं उठा सकता है। जहां से नहर बनाई जानी है, वह बहुत दुर्गम और पहाड़ी इलाका है, जिसे काटकर नहर बनाने में बहुत वक्त लगेगा और पर्यावरण से जुड़े खतरे भी हैं।
हू जिंताओ ने बताया था धर्मसंकट : चीन के लिए मलक्का जलसंधि मार्ग बहुत बड़ी चिंता है। 2003 में ही चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ इसे लेकर अपनी चिंता जता चुके हैं। उन्होंने उस वक्त इसे मलक्का दुविधा के रूप में संर्दिभत किया था। यह मार्ग चीन के लिए लाइफलाइन की तरह है और भारत के लिए इसे रोकना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। ऐसे में जिंताओ ने जिस दुविधा की बात की थी, वह इस दौर में आसानी से समझी जा सकती है।