Swachh Bharat: कूड़ा बीनने वालों के जीवन पर बरसों से जमा होती आई गर्द भी हो रही साफ
स्वच्छ भारत अभियान के तहत इन्हें ‘सफाई दूत’ की नई पहचान मिल जाने के बाद इनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की नई उम्मीद जगी है।
करनाल, पवन शर्मा। Swachh Bharat Mission आइये, मिलते हैं हरियाणा के करनाल में स्थित ढेहा बस्ती में बसे कूड़ा बीनने वाले सैकड़ों परिवारों से और जानते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान के समानांतर इनके जीवन में बरसों से जमा होती आई गर्द कितनी हट सकी है। ढेहा बस्ती, धक्का बस्ती, बंगाली बस्ती, कचरा बस्ती, सिपलों का डेरा, कूचों का मोहल्ला...। कूड़ा बीनने वालों की दुनिया का दायरा बस इन्हीं शब्दों तक सिमटा रहा है।
नगरों-महानगरों में इसी तरह के नाम वाली गंदी बस्तियां इनका आशियाना रही हैं। न कोई पहचान, न आगे बढ़ने की आस। बच्चे हों या बड़े, पीठ पर बोरा लाद कचरा बीनने निकल जाते। इसी कचरे से जीवन की गाड़ी चलती। करनाल सहित तमाम शहरों में बड़ी संख्या में ये बसे हैं, मगर इन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। स्वच्छ भारत अभियान के तहत इन्हें ‘सफाई दूत’ की नई पहचान मिल जाने के बाद इनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की नई उम्मीद जगी है।
बस्ती के घरों में अब उज्जवला योजना के तहत गैस कनेक्शन हैं और गैस चूल्हे पर खाना पकता है। जागरण
जीवन में क्या कुछ बदला? इसका उत्तर बस्ती के बुजुर्ग जीत, उनके पुत्र सोनू और बस्ती के पहले ग्रेजुएट गोपी घारू देते हैं। वे कहते हैं कि बिरादरी के लोग पूरे देश में फैले हैं, जिन्हें ढेहे, बंगाली, सिपले, बारावाले, सांसी जैसे नाम से जाना जाता है। हरियाणा में भी लगभग हर जिले में इनकी बस्तियां हैं। कुछ पीढ़ियों से कचरा बीनने का काम करते आए हैं। इनमें से अनेक घुमंतू बिरादरी के हैं, जो इस काम में लग गए। जीत का परिवार करनाल में 40 साल पहले ढेहा बस्ती में आ बसा। बस्ती में इस समय ढाई हजार स्त्री-पुरुष हैं। जीत कहते हैं, किसी तरह पेट भर जाए बस, इससे आगे कभी सोचा ही नहीं, लेकिन अब बदलाव होता देख आस बंधी है। सरकार हमारे कल्याण के लिए काम कर रही है। घर, गैस, बिजली, पानी, पढ़ाई, इलाज जैसी सुविधाएं मिलने लगी हैं।
अब तो सफाई दूत के रूप में नई पहचान भी मिल गई है। इसी बस्ती के सोनू देश के उन चुनिंदा कचरा बीनने वालों में हैं, जिनसे बीते गुरुवार को स्वच्छता सर्वेक्षण के नतीजे घोषित होने से पहले केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने संवाद किया था। सोनू ने बताया कि नगर निगम ने उन्हें आई कार्ड, सफाई कर्मी की ड्रेस और लांग बूट जैसे साजोसामान दिए। इससे हौसला बढ़ा है। हम काम तो अब भी कचरा बीनने का ही करते हैं, लेकिन इससे उम्मीद जगी है कि हम जीवन में कुछ बेहतर कर सकेंगे।
निगम हमारा कचरा खरीद लेता है, जिससे आय बढ़ी है। गले में पहचान पत्र लटके होने के कारण लोग शक की निगाह नहीं देखते। केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलने से स्थितियां बदली हैं। गैस चूल्हे पर खाना पकाते हैं, सिर पर छत है और घरों में पक्के शौचालय हैं। बच्चे स्कूल जाने लगे हैं और अधिकारी बनने का सपना देख रहे हैं। बुजुर्ग भविष्य की चर्चा में मशगूल हैं और बस्ती का नाम बदल कर कुछ सार्थक नामकरण की सोच रहे हैं। ये बदलाव ही तो है...।