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वित्तीय संकट के चलते धान की खरीद प्रभावित

वित्तीय संकट से जूझ रहे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के लिए धान की खरीद को जारी रखना तो दूर वेतन व भत्तों का भुगतान करना भी मुश्किल हो रहा था। इसे देखते हुए वित्त मंत्रालय ने उसे 10 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए है।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2016 09:01 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2016 09:39 PM (IST)
वित्तीय संकट के चलते धान की खरीद प्रभावित

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। वित्तीय संकट से जूझ रहे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के लिए धान की खरीद को जारी रखना तो दूर वेतन व भत्तों का भुगतान करना भी मुश्किल हो रहा था। इसे देखते हुए वित्त मंत्रालय ने उसे 10 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए है। नई राशन प्रणाली में अति रियायती अनाज की आपूर्ति और बढ़ते न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर से सब्सिडी का बोझ बहुत अधिक हो गया है। एफसीआइ का सब्सिडी बकाया साठ हजार करोड़ रुपये है। धन की किल्लत के चलते एफसीआइ की अनाज की खरीद व राशन प्रणाली की गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।

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एफसीआइ ने इस संकट से उबरने के लिए वित्त मंत्रालय से 20 हजार करोड़ रुपये के भुगतान की गुजारिश की है। इस धन को खाद्य सब्सिडी के तहत समायोजित करने का भी आग्रह किया गया है। वित्त मंत्रालय से मिले 10 हजार करोड़ रुपये से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन का भुगतान व अन्य दैनिक खर्च पूरे हो सकेंगे।

धन की किल्लत के चलते अनाज की विकेंद्रीकृत खरीद करने वाले राज्यों में धान की खरीद की गति धीमी कर दी गई है। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक एफसीआइ को पूरक बजट का आवंटन मार्च 2016 के पहले नहीं मिल पाएगा। जबकि जनवरी से मार्च के बीच धान की खरीद का पीक सीजन चलता है। इसीलिए धन की कमी को पूरा करने के लिए निगम ने भारतीय स्टेट बैंक व पंजाब नेशनल बैंक समेत 15 बैंकों के समूह से 30 हजार करोड़ रुपये का अल्पकालिक ऋण लेने के बाबत टेंडर जारी किया है।

चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 97 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी राशि आवंटित की है, जबकि भारतीय खाद्य निगम का खर्च 1.18 लाख करोड़ रुपये है। निगम के लिए जारी आवंटित सब्सिडी तीन तिमाही में ही खर्च हो चुकी है। बाकी के लिए धन की कमी से मुश्किलें पैदा हो गई हैं। एफसीआइ ने इसके लिए वित्त मंत्रालय से फौरी राहत के बावत 20 हजार करोड़ रुपये की गुहार लगाई है।

सब्सिडी का बड़ा हिस्सा राशन प्रणाली में खर्च हो जाता है। मौजूदा प्रणाली में सब्सिडी की हिस्सेदारी लगातार बढ़ने से धन की जरूरतें अधिक हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ने और राशन के अनाज की कीमतों में बढ़ते अंतर से सब्सिडी का बोझ बढ़ा है।


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