साथ लड़े चुनाव मगर BJP और SHIVSENA दोनों के लिए नहीं रहा फायदेमंद, लगा राष्ट्रपति शासन
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना का प्रदर्शन चुनाव दर सुधरता गया मगर सबसे अधिक फायदा भाजपा को ही हुआ है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। महाराष्ट्र विधानसभा का इस बार का चुनाव भाजपा और शिवसेना दोनों में से किसी के लिए फायदेमंद नहीं रहा। साल 2014 में जब दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था तो इन दोनों के पास अधिक सीटें भी आई थी और 5 साल तक भाजपा ने सरकार चलाई थी। अब साल 2019 के चुनाव में जब दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा तो न तो उनके पास 2014 के मुकाबले सीटें आ पाई ना ही सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया। इस वजह से फिलहाल महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है।
जारी राजनीतिक उठापटक
महाराष्ट्र विधानसभा में राजनीतिक उठापटक जारी है। तीनों प्रमुख दलों को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल ने समय दिया मगर वो अपना-अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए, इस वजह से फिलहाल यहां राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। अब 6 माह तक राष्ट्रपति शासन लगे रहने के दौरान यदि कोई दल बहुमत का आंकड़ा पेश कर देगा तो उसको सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। उधर शिवसेना ने अपने को दिए गए कम समय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है, वहां भी इस मामले में सुनवाई होनी है।
29 साल में भाजपा को हुआ सबसे अधिक फायदा
यदि महाराष्ट्र विधानसभा के साल 1990 के इतिहास को देखें तो उस समय भाजपा के पास 42 और शिवसेना के पास विधानसभा में 52 सीटें थीं, धीरे-धीरे भाजपा महाराष्ट्र में मजबूत होती गई और आज उसके पास 105 सीटें हैं जबकि शिवसेना के पास मात्र 56 सीटें ही हैं। इससे पहले साल 2014 में भाजपा के पास 122 सीटें थी और शिवसेना के पास 63 सीटें थीं। दोनों पार्टियों ने इस बार मिलकर चुनाव लड़ने पर रजामंदी की थी जिससे उनके पास इतनी सीटें आ जाएं कि वो दोनों मिलकर सरकार बना सकें, इन दोनों के पास 2014 के मुकाबले सीटें तो नहीं आई मगर इतनी सीटें आ गई कि वो मिलकर सरकार बना पाएं। सीटें पर्याप्त मिल जाने के बाद दोनों में मुख्यमंत्री पद को लेकर रार हो गई और अब राष्ट्रपति शासन लग गया।
19 साल के बाद हुआ भाजपा को हुआ लगभग तीन गुना सीटों का फायदा
महाराष्ट्र में 1990 में भाजपा के पास 42 और शिवसेना के पास 52 सीटें थी। 1995 में कुछ इजाफा हुआ। इस बार भाजपा को 65 और कांग्रेस को 73 सीटें मिली। इसके बाद फिर सीटों में गिरावट आई। 1999 के चुनाव में भाजपा को 56 और शिवसेना को 69 सीटें मिली। इसके बाद साल 2004 में सीटों में और कमी आई, इस साल भाजपा को 54 सीटें मिलीं और शिवसेना को 62 सीटें मिली थीं। इससे बाद साल 2009 का चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए नुकसानदेह रहा। भाजपा को मात्र 46 सीटें मिली और शिवसेना भी इन्हीं के आसपास रही, शिवसेना को भाजपा से मात्र दो कम सीटें मिलीं।
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद बदल गया गणित
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद महाराष्ट्र विधानसभा का गणित भी बदल गया। साल 2014 के चुनाव में भाजपा ने महाराष्ट्र में 122 सीटें हासिल कर ली मगर शिवसेना को इतना अधिक लाभ नहीं हुआ। उनको मात्र 56 सीटें ही मिल सकी। शिवसेना के लिए ये चुनाव भी 1990 के चुनाव जैसा ही था, उस साल चुनाव में शिवसेना को 52 सीटें मिली थीं। मगर इस बार के चुनाव में भाजपा और शिवसेना दोनों की सीटें कम हो गई मगर यदि दोनों चाहतीं तो मिलकर सरकार बना सकती थीं मगर मुख्यमंत्री पद की लड़ाई की वजह से सरकार नहीं बन पाई और यहां राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। अब देखना ये होगा कि यहां पर सरकार कौन बना पाता है या फिर सरकार दुबारा से चुनाव कराएगी?