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यूपी का बंटवारा : हकीकत कम शिगूफा ज्यादा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। प्रशासनिक प्रभावी कामकाज के नजरिए से जरूरत है उत्तर प्रदेश के बंटवारे की, लेकिन राजनैतिक दलों के लिए इसमें शिगूफा ज्यादा है, हकीकत कम। यही वजह है कि राजनेता उत्तर प्रदेश बंटवारे की बात चाहे जितनी करें, जनता उनके साथ नहीं होती। अलग राज्य के लिए आंदोलन भी नहीं होते।

By Edited By: Published: Fri, 02 Aug 2013 01:25 AM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2013 04:47 AM (IST)
यूपी का बंटवारा : हकीकत कम शिगूफा ज्यादा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। प्रशासनिक प्रभावी कामकाज के नजरिए से जरूरत है उत्तर प्रदेश के बंटवारे की, लेकिन राजनैतिक दलों के लिए इसमें शिगूफा ज्यादा है, हकीकत कम। यही वजह है कि राजनेता उत्तर प्रदेश बंटवारे की बात चाहे जितनी करें, जनता उनके साथ नहीं होती। अलग राज्य के लिए आंदोलन भी नहीं होते। फिर भी, आंध्र प्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य के एलान के बाद बसपा समेत दूसरे दलों ने भी उत्तर प्रदेश बंटवारे को हवा देनी शुरु कर दी है। उधर, सपा उत्तर प्रदेश ही नहीं, तेलंगाना के भी विरोध में उतर गई है।

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केंद्र की तरफ से अलग तेलंगाना के एलान के बाद केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह और बसपा प्रमुख मायावती ने उत्तर प्रदेश के भी बंटवारे को हवा देना शुरु कर दिया है। इस मुद्दे पर कौन कितना गंभीर है? अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में पिछली बार मुख्यमंत्री रहते मायावती ने प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव तब पारित किया, जब विधानसभा चुनाव नजदीक आ गया। केंद्र में मंत्री बनने से पहले चौधरी अजित सिंह ने रालोद की लगभग हर सभा में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अलग हरित प्रदेश के लिए आंदोलन व एकजुटता की बात करते थे। यह अलग बात है कि संप्रग सरकार में मंत्री बनने के बाद उन्होंने इस मुद्दे को तूल नहीं दिया।

केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश प्रशासनिक कामकाज व विकास के नजरिए से उत्तर प्रदेश के बंटवारे को अब जरूरी बता रहे हैं। तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के बंटवारे पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह कहते हैं,'निश्चित तौर पर शासन-प्रशासन की दृष्टि जो जरूरी हो, वह होना चाहिए, लेकिन महज सियासी कारणों से छोटे राज्यों की राजनीति नहीं होनी चाहिए'। नेताओं के इस तरह के बयानों की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश को तीन-चार हिस्सों में बांटने की तमाम पैरवी के बाद भी जनता आंदोलन के लिए आगे नहीं आयी।

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