भारतीय सेना के पराक्रम का वह दिन जब पाक सेना के कमांडर की आंखों से बह निकले थे आंसू
16 दिसंबर को ही वो दिन था जब भारत ने पाकिस्तान को 1971 के युद्ध में हराया था इसमें लगभग 93000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों ने भारत की सेना के सामने घुटने टेक दिए थे। इस युद्ध की वजह से इतिहास में भारतीय सेना का पराक्रम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया।
14 दिसंबर को भारतीय सेना के हाथ एक गुप्त संदेश मिला कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है। इसके बाद भारतीय सेना ने कार्रवाई करते हुए उस भवन पर बम गिराए। बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों ने भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी गई। इस हमले ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ दी थी। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल नियाजी के पास अब कोई उपाय नहीं रह गया, तब उन्होंने भारतीय सेना के सामने आत्म समर्पण कर दिया।
16 दिसंबर की सुबह मिला था आत्म समर्पण का संदेश
16 दिसंबर की सुबह सवा नौ बजे जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें। पूर्वी पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल नियाजी को पता चला कि सरेंडर कराने के लिए भारत की तरफ से सेना के एक अधिकारी आ रहे हैं तो रिसीव करने के लिए एक कार ढाका हवाई अड्डे पर भेजी गई। जैकब कार से थोड़ी दूर ही आगे बढ़े थे कि मुक्ति वाहिनी के लोगों ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी। इस हमले से बचाने के लिए जैकब को अपना परिचय बताना पड़ा कि हम भारतीय सेना से हैं। इसके बाद जैकब ने नियाजी को आत्मसमर्पण की शर्तें पढ़ कर सुनाई। नियाजी की आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने कहा कि कौन कह रहा है कि मैं हथियार डाल रहा हूँ। इन सबके बाद आखिरकार नियाजी को हार मानना ही पड़ा। इसी युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के 93000 सेना को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था।
5 सैन्य युद्धों में मानेकशॉ ने लिया था हिस्सा
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। सैम ने करीब चार दशक फौज में गुजारे और इस दौरान पांच युद्ध में हिस्सा लिया। फौजी के रूप में उन्होंने अपनी शुरुआत ब्रिटिश इंडियन आर्मी से की थी। दूसरे विश्व युद्ध में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। 1971 की जंग में उनकी बड़ी भूमिका रही। इस जंग में भारतीय फौज की जीत का खाका भी खुद मानेकशॉ ने ही खींचा था। बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराने के लिए जब 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैन्य कार्रवाई करने का मन बनाया तो तत्काल ऐसा करने से सैम ने साफ इनकार कर दिया था।
इंदिरा को किया था 'ना'
इंदिरा गांधी खुद भी बेहद तेज-तर्रार महिला प्रधानमंत्री थीं जिन्हें कोई भी न कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था, लेकिन मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी के सामने बैठकर उन्हें इनकार कर दिया था। इस पूरे किस्से को उन्होंने एक बार इंटरव्यू में बताया था। जून 1972 में वह सेना से रिटायर हो गए थे। 3 जनवरी 1973 को सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना का फील्ड मार्शल बनाया गया था। उनका पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ था।
जंग के लिए तैयार नहीं फौज
उन्होंने कहा कि अभी वह इसके लिए तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री को यह नागवार गुजरा और उन्होंने इसकी वजह भी पूछी। सैम ने बताया कि हमारे पास अभी न फौज एकत्रित है न ही जवानों को उस हालात में लड़ने का प्रशिक्षण है, जिसमें हम जंग को कम नुकसान के साथ जीत सकें। उन्होंने कहा कि जंग के लिए अभी माकूल समय नहीं है, लिहाजा अभी जंग नहीं होगी। इंदिरा गांधी के सामने बैठकर यह उनकी जिद की इंतहा थी। उन्होंने कहा कि अभी उन्हें जवानों को एकत्रित करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए समय चाहिए और जब जंग का समय आएगा तो वह उन्हें बता देंगे।
इंदिरा गांधी की नाराजगी
उनके इस कथन पर प्रधानमंत्री काफी समय तक नाराज रहीं, लेकिन न चाहते हुए भी इंदिरा गांधी को उनकी बात माननी ही पड़ी। कुछ माह बाद जब फौजियों को एकत्रित करने और प्रशिक्षण देने के बाद वह उनसे मिले तो उनके पास जंग का पूरा खाका तैयार था। इस पर इंदिरा गांधी और उनके सहयोगी मंत्रियों ने सैम से जानना चाहा कि जंग कितने दिन में खत्म हो जाएगी। जवाब में सैम ने कहा कि बांग्लादेश फ्रांस जितना बडा है। एक तरफ से चलना शुरू करेंगे तो दूसरे छोर तक जाने में डेढ से दो माह लगेंगे,लेकिन जब जंग महज चौदह दिनों में खत्म हो गई तो उन्हीं मंत्रियों ने उनसे दोबारा यह सवाल किया कि उन्होंने पहले चौदह दिन क्यों नहीं बताए थे। तब सैम ने कहा कि यदि वह चौदह दिन बता देते और पंद्रह दिन हो जाते तो वहीं उनकी टांग खींचते।
सरेंडर एग्रीमेंट
उन्होंने बताया कि जब जंग अपने अंतिम दौर में थी तब उन्होंने एक सरेंडर एग्रीमेंट बनाया और उसे पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को फोन पर लिखवाया और कहा कि इसकी चार कापी बनाई जाएं। इसकी एक कॉपी जनरल नियाजी को दूसरी प्रधानमंत्री को तीसरी जनरल अरोड़ा को और चौथी उनके ऑफिस में रखने के लिए कहा गया था। उन्होंने बताया कि जंग खत्म होने पर जब वह लगभग नब्बे हजार से ज्यादा कि पाकिस्तानी फौजियों के साथ भारत आए तो उन्होंने पूरी पाक फौज के लिए रहने और खाने की व्यवस्था करवाई। एक वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान फौज के सरेंडर के कुछ दिन बाद वह पाक कैंप में फौजियों से मिलने गए जहां कई सूबेदार मेजर रैंक के अफसर थे। उन्होंने उनसे हाथ मिलाया और कैंप में मिल रही सुविधाओं के बारे में पूछा और उनके साथ खाना खाया।
फौजियों से बेहद प्यार
दरअसल सैम मानेकशॉ एक ऐसे अफसर थे जो अपने फौजियों को बेहद प्यार किया करते थे और उनकी हर खुशी और दुख में शरीक होते थे। फिर चाहे वह मोर्चे पर हों या कहीं और किसी से मिलने में उन्हें कोई परहेज नहीं था। इसी दम पर वह अपनी फौज में सबके चहेते थे। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने नीलगिरी की पहाड़ियों के बीच वेलिंगटन को अपना घर बनाया। अंतिम समय तक वह यहीं पर रहे। इस दौरान उनके ड्राइवर रहे कैनेडी 22 वर्षों तक उनके साथ रहे। सैम के निधन के बाद सामने आए कैनेडी ने बताया था कि हर रोज जब वह सैम को लेने के लिए घर पहुंचते थे तो वह खुद अपने साथ बिठाकर उनके लिए चाय बनाते और ब्रेड खाने को देते थे। उनकी सादगी को लेकर हर कोई सैम का दीवाना था।
पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर बढ़ा जुल्म तो इंदिरा गांधी ने बनाई रणनीति
पूर्वी पाकिस्तान में भूखमरी और गरीबी का भी बोलबाला था। ऐसे वक्त में जब पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों व वहां के नेताओं पर जुल्म बढ़ने लगा तो हिंदुस्तान की सत्ता हरकत में आ गई। दिल्ली की सत्ता इंदिरा गांधी के हाथों में थी। पाकिस्तान द्वारा बंग्लादेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के आरोप में जब भारत को घेरा जाने लगा तो इंदिरा ने तय किया कि हर हाल में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को आजादी मिलनी चाहिए।