देश में गर्त में ले जा रहे 'इन रावणों' का संहार जरूरी, जानें कैसे पहुंचा रहे नुकसान
पूरा मुल्क सपनों का भारत बनाने में जुटा है। लेकिन इस काम में आज भी कई ऐसी चुनौतियां हैं जो रावण की भांति हमारे सामने खड़ी हैं। आइये डालते हैं उन चुनौतियों पर एक नजर...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश की आजादी को सात दशक बीत गए। अब हमारी धमक दुनिया के हर मंच पर महसूस की जाने लगी है। करीब तीन सौ साल भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों ने सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश के संसाधनों का जमकर दोहन किया। जब वे गए तो गरीबी, लाचारी और बेबसी के रूप में अनगिनत समस्याएं छोड़ गए। आजादी मिलने और आज जब दुनिया हमारी उपस्थिति हर मंच पर दर्ज करने को अभिलाषी हो रही है, इस कालखंड के दौरान हमने देश की इन समस्याओं को एक-एक चुनौती माना। सपनों का भारत बनाने में पूरा देश जुटा। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश और दुनिया के सबसे युवा और कार्यकारी मानव संसाधनों के बूते हमारी उपलब्धियों में सुर्खाब के पर लगते गए। लेकिन आज भी कई ऐसी चुनौतियां हैं जो रावण की भांति हमारे सामने खड़ी हैं। आइये डालते हैं उन चुनौतियों पर एक नजर...
धरती को जहरीली बना रहा यह रावण
खुले में शौच से मुक्त हुआ देश प्लास्टिक से परहेज करने में जुटा हुआ है। इसकी पर्याप्त वजह भी है। प्लास्टिक जल, जमीन और हवा को प्रदूषित करने वाला सबसे बड़ा कारक बनता जा रहा है। आज देश की सारी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। इनके प्रदूषित होने की दर हाहाकारी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित नदियां पिछले पांच साल में 121 से बढ़कर 275 हो गई थीं। भूजल की स्थिति भी विकराल है। तेजी से स्तर गिर रहा है जो बचा खुचा जल धरती की कोख में मौजूद है वह प्रदूषित होता जा रहा है। कई शहरों में वायु प्रदूषण सर्दियों के दौरान मास्क पहनने पर विवश कर देता है।
अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई
साल 2006 से 2016 के दस साल के बीच देश में 27.1 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले। संपत्ति के निर्माण, कुकिंग फ्यूल्स, साफ-सफाई और पोषण के क्षेत्रों में देश ने उल्लेखनीय तरक्की की। एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के एक आंकड़े देश की गुलाबी तस्वीर जरूर पेश करते हैं, और हालात में उत्तरोतर बदलाव भी दिखने लगा है, लेकिन बापू के सपनों का भारत बनाने में अभी अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई को पाटना जरूरी है। आंकड़े बताते हैं कि देश में एक फीसदी लोगों के पास देश की 73 फीसद संपत्ति है। जबकि देश में गरीब लोगों की आबादी 50% है और इनकी संपत्ति में सिर्फ एक फीसद इजाफा दिखाई दिया है।
शिक्षकों की कमी बड़ी चिंता
निचली कक्षाओं में अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम शिक्षक-छात्र अनुपात देश की पठन-पाठन प्रणाली पर गंभीर प्रतिकूल असर डाल रहा है। उच्च शिक्षा में भी हम इस मामले में ब्राजील और चीन जैसे देशों से पीछे हैं। उच्च शिक्षा में भारत के एक अध्यापक के जिम्मे 24 छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। जबकि कई देशों में यह अनुपात हमसे बेहतर है। देश की उच्च शिक्षा में पांच लाख अध्यापकों की कमी हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6600 प्रोफेसर पद रिक्त हैं जो 33 फीसद कमी का प्रतीक है। आइआइटी संस्थानों में शिक्षकों की 35 फीसद कमी है। यह पहलू देश के अध्यापन और शोध क्षेत्र पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में साक्षरता दर 74.04 फीसदी है। पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 फीसदी जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 फीसदी है।
हर हाथ को मिले काम
दुनिया के कई ताकतवर देशों की कार्यकारी आबादी उम्रदराज होती जा रही है लेकिन भारत की दिनोंदिन युवा होती जा रही है। देश की 121 करोड़ में से आधी आबादी 26 साल से नीचे है। 2020 तक देश की माध्य आयु 29 रहने का अनुमान है जो इसे दुनिया का सबसे युवा देश बनाता है। लेकिन इस युवा कार्यकारी आबादी को हुनरमंद बनाकर राष्ट्र के विकास में लगाना बड़ी चुनौती है। आंकड़ों पर नजर डालें तो हर साल 1.20 करोड़ लोग भारत की श्रमशक्ति में शामिल होते हैं। हर साल 12 लाख इंजीनियर भारत में तैयार होते हैं जिन्हें रोजगार उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
सेहत का सवाल भी अहम
राष्ट्र निर्माण में सेहत का दर्जा शिक्षा से ऊपर आता है। तभी तो हमारे मनीषी कहा करते रहे हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग रहता है। रुग्ण शरीर न तो अच्छा सोच सकता है और न ही कुछ सृजनात्मक सकता है। स्वच्छता और साफ-सफाई को लेकर पैदा हुई संस्कृति ने सेहत के बड़े प्रश्नवाचक चिह्न को छोटा जरूर किया है और आयुष्मान भारत योजना ने देश के गरीबों में ऑक्सीजन का संचार किया है, लेकिन आज भी सेहत के मोर्चे पर राष्ट्र के लिए बड़ी चुनौती है। आज भी एक हजार बच्चों में से जन्म के समय 34 काल कवलित हो जाते हैं। प्रसव के दौरान दस लाख महिलाओं में से 167 की मृत्यु हो जाती है।
आधी आबादी की पूरी ताकत
संयुक्त राष्ट्र के 219 देशों में किए गए एक अध्ययन के अनुसार अगर महिलाएं एक साल और पढ़ाई कर लेती हैं तो शिशु मृत्यु दर में 9.5 फीसद की कमी आती है। फार्च्यून 500 कंपनियों पर आधारित ओईसीडी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिन कंपनियों में महिला निदेशक ज्यादा होती हैं वे तुलनात्मक रूप से अधिक मुनाफा कमाती हैं। देश में महिलाओं को केंद्र में रखकर कई योजनाएं चल रही हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और सुकन्या समृद्धि योजना प्रमुख हैं। मातृत्व अवकाश 12 से बढ़ाकर 26 हफ्ते होना भी इसी का परिचायक है।
...तो बढ़ जाएगी देश की आमदनी
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अगर भारत में लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल कर लिया जाए तो 2025 तक देश की जीडीपी में 700 अरब डॉलर की अतिरिक्त आय जुड़ जाएगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार श्रमशक्ति में समान भागीदारी से भारत की जीडीपी में 27 फीसद इजाफा संभव है। देश की करीब आधी महिलाएं ही सेलफोन का इस्तेमाल करती हैं। इनमें से 80 फीसद इंटरनेट नहीं इस्तेमाल करतीं। यदि पुरुषों के बराबर ही महिलाएं भी फोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने लगें तो जागरूकता के साथ अगले पांच साल में फोन कंपनियों के खाते में 17 अरब डॉलर जुड़ सकते हैं।
नारी सशक्तीकरण के चमत्कारिक फायदे
वैश्विक रूप से महिलाएं 80 फीसदी खरीद निर्णयों को प्रभावित करती हैं और खर्च की जाने वाली 20 लाख करोड़ डॉलर की भारी-भरकम राशि पर नियंत्रण करती हैं। नारी सशक्तीकरण के सामाजिक फायदे भी हैं। महिलाएं अपनी आय का 90 फीसद अपने परिवार पर खर्च करती हैं। आर्थिक रूप से समृद्ध महिला अर्थव्यवस्था में मांग में इजाफा करती है। आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत की श्रमशक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी 29% है जबकि 50 फीसदी महिलाएं गैर भुगतान वाले कार्यों से जुड़ी हुई हैं। वहीं देश के कृषि श्रमिकों में 40 फीसदी महिलाएं हैं जबकि महज नौ फीसदी जमीन पर महिलाओं का स्वामित्व है। 60% महिलाएं देश में ऐसी हैं जिनके नाम कोई कीमती चीज नहीं है जबकि जीडीपी में महिलाओं की हिस्सेदारी 17 फीसदी है।