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जब अब्दुल कलाम से हाथ मिलाने के लिए लगी थी लंबी कतार...

कभी एपीजे तो कभी मिसाइल मैन के नाम से संबोधित किए जाने वाले अब्‍दुल कलाम की सादगी का हर कोई कायल था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 15 Oct 2018 11:07 AM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2018 11:24 AM (IST)
जब अब्दुल कलाम से हाथ मिलाने के लिए लगी थी लंबी कतार...
जब अब्दुल कलाम से हाथ मिलाने के लिए लगी थी लंबी कतार...

नई दिल्‍ली [जागरण स्पेशल]। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आज जयंती है। कलाम का नाम जहन में आते ही एक ऐसे शख्‍स की छवि दिमाग में आती है जिसकी बराबरी कभी कोई नहीं कर सका। कभी एपीजे तो कभी मिसाइल मैन के नाम से संबोधित किए जाने वाले अब्‍दुल कलाम की सादगी का हर कोई कायल था। उनकी सादगी में उस वक्‍त भी कोई बदलाव नहीं आया जब उन्‍होंने देश के राष्‍ट्रपति का पदभार संभाला था। राष्‍ट्रपति पद पर रहते हुए भी वह भारत को मिसाइल तकनीक में कैसे और अधिक विकसित बना सकते हैं, के लिए वैज्ञानिकों से चर्चा करते थे। अपने से मिलने वालों को वो कभी निराष नहीं करते थे। हर किसी का सम्‍मान करना और उसका उत्‍साह बढ़ाना उनसे जुड़े कुछ अहम बिंदुओं में से एक था।

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हाथ मिलाने के लिए लगी थी लंबी कतार

यही वजह थी कि जब एपीजे जब राष्‍ट्रपति पद पर रहते हुए आईआईटी मुंबई आए तो उनसे मिलने वाले स्‍टूडेंट्स का तांता ऑडिटोरियम के बाहर लगा हुआ था। इतना ही नहीं उनके आने की खबर से वहां के स्‍टूडेंट्स उन्‍हें सुनने के लिए रात से ही अपनी जगह घेर कर वहां बैठ गए थे। जिन्‍हें जगह नहीं मिली उनके लिए भी उन्‍हें सुनने का इंतजाम किया गया था। स्‍पीच के बाद जब वह बाहर निकले तो वहां मौजूद स्‍टूडेंट्स उनकी एक झलक पाने और उनसे हाथ मिलाने के लिए लालायित दिखाई दिए थे। लेकिन किसी को भी एपीजे ने निराश नहीं किया। वह जहां जाते थे हर जगह एक ही नजारा दिखाई देता था। वह अपने आगमन पर प्रोटोकॉल का भी ध्‍यान नहीं रखते थे। उनके बारे में एक बात बड़ी प्रचलित थी और वह ये कि जब उनकी गाड़ी रुकती थी वह तुरंत गेट खोलकर जहां जाना होता था उस ओर निकल पड़ते थे।

पोखरण परमाणु टेस्‍ट

11 मई 1998 में जब भारत ने दुनिया को अपनी ताकत के बारे में बताया तो पूरी दुनिया इससे हिल गई। दरअसल, इसी दिन 3 बजकर 45 मिनट पर भारत ने अपना दूसरा बड़ा परमाणु परीक्षण किया था। इसकी खबर अमेरिका समेत दुनिया के किसी भी मुल्‍क को तब तक नहीं मिली जब तक तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के परमाणु संपन्‍न देश होने की घोषणा नहीं कर दी थी। यह एपीजे ही थे जिन्‍होंने राजस्‍थान के पोखरन में तप्‍ती दोपहरी में दुनिया की सैटेलाइट से ओझल होकर इस परीक्षण को अंजाम दिया था। हालांकि इस परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगाए थे।

जब फाइटर पायलट का टेस्‍ट पास नहीं कर सके थे कलाम

युवाओं के लिए तो वह आदर्श थे। वर्ष 2006 में राष्‍ट्रपति पद पर रहते हुए जब वह सुखोई विमान में बैठे थे तब उन्‍होंने अपनी जिंदगी से जुडे कुछ दिलचस्‍प किस्‍से भी सुनाए थे। उन्‍होंने कहा था कि वह भी एक फाइटर पायलट बनना चाहते थे, लेकिन वे एग्‍जाम पास नहीं कर पाए। इसके बाद भी उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और आगे बढ़ते रहे। उन्‍होंने बताया कि सपने देखना कितना जरूरी होता है। इस पर मीडिया की तरफ से जब पूछा गया कि आपको 74 साल की उम्र में सुपरसोनिक फाइटर एयरक्राफ्ट चलाने में डर नहीं लगा? तो कलाम ने कहा कि '40 मिनट की फ्लाइट के दौरान इस विमान के यंत्रों को कंट्रोल करने में ही इतने बिजी रहे कि डर मन में आ ही नहीं पाया।

जब जवान से कहा ‘Thank you, buddy’

वर्ष 2015 में जब वह शिलांग गए थे। अपनी गाड़ी के आगे चल रही खुली जिप्‍सी में खड़े जवान को देखकर वह काफी दुखी हुए थे। उन्‍होंने अपने साथ में बैठे व्‍यक्ति से कहा था कि कोई वायरलैस पर मैसेज भेजकर इस जवान को बैठने को कहे, यह काफी थक गया होगा, इतने समय से लगातार खड़ा है। तब उन्‍हें बताया गया कि इस जवान को उनकी सिक्‍योरिटी का आदेश है, इसलिए वह खड़ा है। एपीजे का कहना था कि इस जवान के लिए यह सजा मिलने जैसा है। इसके बाद जब वह अपनी जगह पर पहुंचे तो उन्‍होंने अपने सिक्‍योरिटी गार्ड को अपने कमरे में बुलाकर उसका न सिर्फ अभिवादन किया बल्कि कहा कि ‘Thank you, buddy’।

साराभाई को मानते थे गुरू

यह उनका आखिरी सफर था और शायद आखिरी बोल भी यही थी। एपीजे यहां पर आईआईएम में एक लेक्‍चर देने के लिए वहां गए थे। इसके कुछ समय बाद वह अचानक गिर पड़े और दुनिया से विदा हो गए। यह पल सभी के लिए दर्द का अहसास कराने वाला था। एपीजे भारत की ताकत को उस वक्‍त से बढ़ाने में जुटे थे जब थुंबा से भारत ने अपना पहला रॉकेट भेजा था। बल्कि शायद उससे भी पहले से वह इसमें जुटे थे। विक्रम साराभाई को वह अपना गुरू मानते थे। साराभाई ही वह इंसान थे जिसने उनमें आसमान के तारे तोड़ लाने की ललक जगाई थी। यह बेहद कम लोग जानते हैं कि एपीजे अपने पहले ही प्रोजेक्‍ट के फेल होने से काफी निराश हो गए थे। उस वक्‍त साराभाई ने ही उनमें वह भरोसा दिलाया था जिसके दम पर वह इतने बड़े मुकाम पर पहुंच सके। वह हमेशा कहते थे कि एक्‍सीलेंस कभी अचानक नहीं आती है बल्कि लगातार काम करने से आती है। एक लीडर के तौर पर इंसान को हार का भी स्‍वाद पता होना चाहिए। किसी भी विपरीत स्थिति से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उससे निकलने और आगे बढ़ने पर विचार करना चाहिए।

जब पाक वैज्ञानिक ने उड़वाई अपनी हंसी

एपीजे अब्‍दुल कलाम की मौत पर जब पूरे भारत में शोक का माहौल था तब एक पाकिस्‍तान के वैज्ञानिक का ऐसा बयान भी आया जिसने न सिर्फ अपनी बल्कि पूरे पाकिस्‍तान की हंसी उड़वाने का काम किया था। इस वैज्ञानिक का नाम था डॉक्‍टर अब्‍दुल कादिर खान। यह वही वैज्ञानिक है जिसने पैसों के लालच में परमाणु मिसाइल की तकनीक दूसरे देशों को बेची थी। कादिर के इस बयान के बाद की एपीजे एक बेहद सामान्‍य वैज्ञानिक थे, लोगों ने उसकी जमकर खिंचाई की। कादिर ने बीबीसी से एक इंटरव्‍यू में कहा था कि भारत का मिसाइल प्रोग्राम रूस की मदद से बना है, लिहाजा कलाम इतने बड़े वैज्ञानिक नहीं थे। कादिर ही नहीं वर्ष 2002 में जब कलाम को राष्‍ट्रपति बनाया गया था तब भी पाकिस्‍तान ने उन्‍हें नाकाबिल राष्‍ट्रपति बताने की गलती की थी। उस वक्‍त पाकिस्‍तान का कहना था कि कलाम को केवल मुस्लिम चेहरे की वजह से इस पद पर बैठाया गया है। लेकिन दोनों ही बार पाकिस्‍तान को मुंह की खानी पड़ी थी।  


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