टिश्यू पेपर पर लिखी वसीयत भी मान्य, नोटरी और स्टाम्प जरूरी नहीं
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 के मुताबिक वसीयत से उत्तराधिकार का निर्णय होता है।
नईदुनिया, इंदौर। उत्तराधिकार का कानून देश में धर्म के आधार पर लागू होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 के मुताबिक वसीयत से उत्तराधिकार का निर्णय होता है। फिल्मों में देखकर यह धारणा बन गई है कि वसीयत के लिए स्टाम्प पेपर और नोटरी जरूरी है। यह सिर्फ भ्रांति है। टिश्यू पेपर पर लिखी वसीयत भी कानूनी तौर मान्य होती है। शनिवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में सीए ब्रांच द्वारा आयोजित फ्यूचर ट्रेंड्स इन टैक्सेशन विषय पर आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस में प्रोफेशनल्स को कानून के ऐसे तमाम पहलुओं से अवगत कराया गया।
- मुंबई के डॉ. शाह ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 के प्रावधानों को समझाया
- दो दिवसीय सीए नेशनल कॉन्फ्रेंस का आगाज
दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस के पहले दिन तकनीकी सत्र में मुंबई से आए डॉ. अनूप पी शाह ने कहा कि सिख, जैन और बौद्ध नागरिकों पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 लागू होता है। ईसाई, पारसी और यहूदी के लिए भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम है, जबकि मुसलमानों में उत्तराधिकारी, संपत्ति विभाजन से लेकर विवाह संबंधी मामलों में निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर होता है।
हिंदू संयुक्त परिवार में एस्टेट प्लानिंग व वसीयत में उत्तराधिकारी का फैसला क्लास-वन, क्लास-टू के संबंधियों के आधार पर होता है। इस श्रेणी में उत्तराधिकारी नहीं होने एग्नेट्स यानी पिता के संबंधी और यदि वे भी न हो तो कॉग्नेट्स यानी माता के संबंधी उत्तराधिकारी होते हैं। अधिनियम के अनुसार पुत्र की संपत्ति में मां तो पहले स्तर की उत्तराधिकारी हो सकती है, लेकिन पिता को पहले स्तर का उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा। उन्होंने कहा कि हिंदू संयुक्त परिवार में कर्ता लड़की भी बन सकती है। शर्त यह है कि कर्ता वह संतान बनेगी जो बड़ी हो भले ही वह लड़का हो या लड़की।
तकनीकी सत्र के दौरान मुंबई के सीए भद्रेश दोषी ने सेक्शन 270(ए) के अंतर्गत पेनल्टी पर कहा कि आयकर अधिनियम में ताजा संशोधनों के बाद यह बात हर कोई कह रहा है कि गलत विवरणी पर 200 प्रतिशत पेनल्टी देय होगी। यह पूरा सच नहीं है। 2016 में वित्त विधेयक के जरिये किए इस संशोधन में बदलाव को अंजाम दिया गया है। अघोषित आय है तो यह प्रावधान लागू नहीं होगा। इस स्थिति में 10 प्रतिशत पेनल्टी ही लगेगी।
बोगस बिल अघोषित आय नहीं
नई दिल्ली के सीए रवि गुप्ता ने बताया कि अगर किसी एक व्यक्ति के यहां सर्च हुई और दूसरे व्यक्ति की एफडीआर या संपत्ति वहां मिली तो सर्च करने वाला असेसिंग ऑफिसर उस दूसरे व्यक्ति के ऑफिसर को उसकी जानकारी सौंपेगा। दूसरे व्यक्ति का असेसिंग ऑफिसर इस आधार पर उस व्यक्ति को नोटिस जारी कर छह साल के रिटर्न का ब्योरा मांगेगा।
हालांकि, इसके लिए पहले व्यक्ति को साबित करना होगा कि यह संपत्ति उसकी नहीं है। सर्च में सामान्य तौर पर बीते छह वित्तीय वर्ष के स्टेटमेंट मांगे जाते हैं। लेकिन 50 लाख से ज्यादा का असेट मिला है तो बीते 10 वर्ष तक के स्टेटमेंट लेने का अधिकार भी असेसमेंट ऑफिसर को है।