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कुछ ही महीनों बची हैं आतंकियों की जिंदगी : अरुण जेटली

देश में आइएस (इस्लामिक स्टेट) के खतरे पर रक्षा मंत्री ने कहा कि अपवाद स्वरूप कुछ वाकये हुए हैं, लेकिन देश में उसका कोई प्रभाव नहीं है।

By Manish NegiEdited By: Published: Sun, 13 Aug 2017 09:23 PM (IST)Updated: Sun, 13 Aug 2017 10:37 PM (IST)
कुछ ही महीनों बची हैं आतंकियों की जिंदगी : अरुण जेटली
कुछ ही महीनों बची हैं आतंकियों की जिंदगी : अरुण जेटली

नई दिल्ली, प्रेट्र। रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि कश्मीर घाटी से आतंकी अब भागने लगे हैं और अब वे दशकों तक लोगों को आतंकित नहीं कर सकते क्योंकि उनकी खुद की जिंदगी ही कुछ महीनों की बची है। उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता कश्मीर घाटी से हथियारबंद आतंकियों का पूरी तरह सफाया करना है।

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एक समाचार चैनल के कार्यक्रम में रक्षा मंत्री ने कहा कि नोटबंदी के बाद और गैरकानूनी विदेशी सहायता के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) की बड़े पैमाने पर की गई कार्रवाई के कारण कश्मीर में आतंकी जबर्दस्त दबाव में हैं। उन्होंने कहा कि पहले जब कोई मुठभेड़ होती थी तो सैकड़ों और हजारों लोग पत्थर फेंकने के लिए सड़कों पर उतर आते थे और कई बार उनकी आड़ में कई आतंकी बचकर निकल भागते थे, लेकिन अब ऐसे पत्थरबाजों की संख्या घटकर 20, 30 और 50 तक रह गई है। पहली बार देखा जा रहा है कि धन हासिल करने के लिए आतंकी बैंकों को लूट रहे हैं। घाटी में आतंकियों की संख्या में भी लगातार कमी आ रही है। उन्होंने इस संदर्भ (आतंकियों का सफाया करने) में जम्मू-कश्मीर पुलिस की भी जमकर सराहना की। जेटली ने कहा कि नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सेनाओं का पूरी तरह दबदबा है और आतंकियों के लिए सीमा पार करके आना बेहद मुश्किल है।

जब उनसे पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैन्यकर्मियों के सिर धड़ से अलग करने या उनके शव क्षतविक्षत करने संबंधी सवाल किया गया तो रक्षा मंत्री ने कहा, इसके बाद जो कुछ हुआ (सर्जिकल स्ट्राइक) उसे सभी ने देखा। हालांकि, डोकलाम में भारत और चीन के बीच जारी तनातनी पर जेटली ने कुछ भी बोलने से परहेज किया और कहा हमें अपने सुरक्षा बलों पर पूरा भरोसा करना चाहिए। रक्षा मंत्री ने कुछ आतंकी और माओवादी कृत्यों को महिमामंडित किए जाने पर चिंता भी जाहिर की।

देश में आइएस (इस्लामिक स्टेट) के खतरे पर रक्षा मंत्री ने कहा कि अपवाद स्वरूप कुछ वाकये हुए हैं, लेकिन देश में उसका कोई प्रभाव नहीं है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पिछले साल लगे भारत विरोधी नारों का जिक्र करते हुए उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि मुख्यधारा के कुछ राजनीतिक दलों का नारे लगाने वालों से जुड़ाव था।

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